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मोदी के खिलाफ याचिका खारिज

नयी दिल्ली (ट्रिन्यू) : देश की सर्वोच्च अदालत ने बुधवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को बड़ी राहत देते हुए सहारा-बिड़ला डायरी से संबंधित जांच कराने की याचिका को यह कहकर खारिज कर दिया कि इसमें नरेंद्र मोदी के खिलाफ पर्याप्त सुबूत नहीं हैं। कॉमन कॉज की ओर से प्रशांत भूषण ने अपनी याचिका के समर्थन में कुछ दस्तावेज भी सुप्रीम कोर्ट को सौंपे थे। कोर्ट ने दस्तावेजों को देखने के बाद साफ कहा कि इन दस्तावेजों के आधार पर जांच के आदेश नहीं दिए जा सकते। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इस तरह के आरोप लगाने के लिए कुछ पुख्ता सबूत होने जरूरी हैं। न्यायमूर्ति अरुण मिश्रा और न्यायमूर्ति अमिताभ रॉय की खंडपीठ ने यह आदेश पारित किया। अटॉर्नी जनरल मुकुल रोहतगी ने कहा, ‘ऐसा कोई विश्वसनीय दस्तावेज नहीं है जो साबित कर सके कि कॉर्पोरेट घरानों ने नरेंद्र मोदी को पैसे दिए थे।'

 

कॉमन कॉज की ओर से दाखिल याचिका में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर सहारा और बिड़ला समूह से रिश्वत लेने का आरोप लगाया गया है। डायरी में लिखे नाम के आधार पर कहा गया है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 2003 में रिश्वत ली थी, उस समय वे गुजरात के मुख्यमंत्री थे।

 

यह है मामला
आयकर की छापेमारी में सहारा के दफ्तर से एक डायरी मिली थी। इसमें कथित रूप से यह लिखा है की 2003 में गुजरात के मुख्यमंत्री को 25 करोड़ रुपये दिये गये। उस समय नरेंद्र मोदी गुजरात के मुख्यमंत्री थे। इनके अलावा तीन और मुख्यमंत्रियों को पैसे देने का इसमें जिक्र किया गया है। आयकर विभाग ने बिड़ला समूह के दफ्तर में भी छापेमारी की थी और वहां से भी एक डायरी जब्त की थी। इसमें भी मोदी नाम से एंट्री की गयी है। कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल भी दस्तावेज के आधार पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर रिश्वत लेने के आरोप लगा चुके हैं।

 

चंदे पर आयकर छूट सही
सुप्रीम कोर्ट ने राजनीतिक दलों को मिलने वाले चंदे पर आयकर छूट के खिलाफ दायर जनहित याचिका को खारिज कर दिया। बुधवार को चीफ जस्टिस जेएस खेहर और न्यायमूर्ति धनंजय वाई चंद्रचूड की पीठ ने कहा कि आयकर से छूट देने का निर्णय एक ‘कार्यकारी' कार्रवाई है और इससे संविधान के किसी भी प्रावधान का उल्लंघन नहीं हुआ है। ऐसी स्थिति में न्यायालय इसमें हस्तक्षेप नहीं कर सकता है।

 

जनहित याचिका वकील मनोहरलाल शर्मा ने दायर की थी। उनका आरोप था कि राजनीतिक दलों को संविधान के प्रावधानों का उल्लंघन करके आयकर से छूट प्रदान की गयी है। उनका यह भी तर्क था कि यह सुविधा आम जनता को उपलब्ध नहीं है। याचिका में आयकर कानून की धारा 13ए और जनप्रतिनिधित्व कानून की धारा 29 को निरस्त करने का अनुरोध किया गया था।

 

करते हुये दावा किया गया था कि इससे संविधान के अनुच्छेद 14 के तहत समता के अधिकार का हनन होता है, क्योंकि ये चंदे के मामले में सिर्फ राजनीतिक दलों को ही आयकर से छूट प्रदान करती हैं।

याचिका में न्यायालय से सीबआई को इस मामले में प्राथमिकी दर्ज करने और राजनीतिक दलों व विमुद्रीकरण के आलोक में उन्हें मिले धन की जांच का निर्देश देने का अनुरोध किया गया था।