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Resource centre on India's rural distress
 
 

मोदी सरकार सब कुछ रातोंरात करना चाहती है- एम के वेणु

सैद्धांतिक रूप से यह बात सही लगती है कि पुराने नोट हटाकर आप नए नोट चलन में लाएं तो अर्थव्यवस्था से कालाधन निकाल सकते हैं लेकिन हिंदुस्तान एक जटिल अर्थव्यवस्था है जहां छोटे कारोबारी हैं, गांव में किसान लोग हैं, उनका क्या होगा. आप अस्पताल जाएं तो कैश लेकर जाते हैं. छोटे स्तर पर नकदी अर्थव्यवस्था ही चलती है.

उनको बड़ी असुविधा हो जाएगी. बड़े उद्योगों के पास तो सारी सुविधाएं होती हैं, वे इससे निपटने के लिए रास्ता निकाल लेंगे. उन्हें जो भी हेरा-फेरी करनी होगी, कर लेंगे. मुझे लग रहा है कि अगले दो-तीन महीने में हर तरफ अफरा-तफरी का माहौल होगा.

 


एक ऐसे समय में जब अर्थव्यवस्था सुस्त है, लोगों कम खर्च करेंगे, उपभोग पर असर पड़ेगा. इस फैसले को अमल में लाना इतना आसान नहीं है. राजस्व सचिव खुद कह रहे हैं कि 20-25 दिन लोगों को दिक्कत होगी. मेरे हिसाब से इससे उपजी असुविधा कम से कम तीन महीने तक जारी रह सकती है.

 

जो नोट लिए जाने हैं और लोगों को जो समय-सीमा दी गई है, मुझे लगता है कि इसे लागू करने के लिए कोई तैयारी नहीं की गई है. मुझे बड़ा अचंभा लगा कि उन्होंने कहा एक आदमी के बदले 10 आदमी उसकी नकदी को बदल सकता है.

मसलन किसी के पास एक करोड़ नकदी कालाधन है तो वह हजार लड़कों को इकट्ठा करके कहेगा आप बैंक जाकर इसे बदल लाओ. छोटी-छोटी रकम के जरिए ये किया जा सकता है. यह एक तरह से बिना टैक्स लिए पिछले दरवाजे से छूट देने का रास्ता भी हो सकता है. हिंदुस्तान में लोग ऐसे पैंतरे अपना सकते हैं.

इसका मतलब यह नहीं है कि इसे ब्लैक मनी की समस्या खत्म हो जाएगी और सरकार को टैक्स मिल जाएगा. मुझे लगता है कि सरकार की कोशिश लोगों को बैंकों से जुड़ने के लिए प्रोत्साहित करने की है. भारत में बहुत से लोग नकदी का लेन-देन करते हैं.

सरकार ने जन-धन योजना में करोड़ों लोगों को बैंकिंग व्यवस्था से जोड़ा है लेकिन इन खातों का लगभग 20 फीसदी ही ऑपरेशनल है. मुझे लगता है कि इससे लोगों को बैंकिंग व्यवस्था से जुड़ने का रुझान बढ़ेगा. लोग अपनी नकदी बैंकों में जमा करेंगे. मुझे केवल इसी बात से दिक्कत है कि इसे बिना तैयारी के लागू किया जा रहा है.

यह फैसला लोगों के लिए चौंकाने वाला है. यह शादियों का सीजन है. गांवों में सीमित आमदनी वाले लोग भी इस सीजन में 8-10 लाख रुपये खर्च कर देते हैं. ये रकम नकद खर्च की जाती है और ऐसा करने वाले किसान लोग हैं. उनके लिए भाग-दौड़ बढ़ जाएगी. ग्रामीँण भारत में लोग अस्पताल भी कैश लेकर ही जाते हैं.

छोटे स्तरों पर लोगों के लिए बड़ी मुसीबत होने वाली है. बड़े कारोबारियों को कोई दिक्कत नहीं होने वाली है, उन्हें कभी कोई दिक्कत होती भी नहीं है. राजनीतिक दलों से उनके ताल्लुकात अच्छे होते हैं.

थोड़े के समय के लिहाज से देखें तो लोग कम खर्च करेंगे और खपत गिरेगी, उपभोग कम होगा. ब्लैक मनी के पीछे बड़े लोग हैं, इसके अपने नुकसान हैं लेकिन छोटे-मोटे कारोबार में लगे लोग, जिनका सारा बिजनेस नकद में होता है, उन्हें बहुत दिक्कत होने वाली है.

 

उसे बैंक जाने की आदत नहीं रही. आदत बनाने में वक्त लगता है. उन्हें शिक्षित किए जाने की जरूरत है. यह रातोंरात नहीं होने वाला है, सरकार की यही दिक्कत है, वह सब कुछ रातोंरात करना चाहती है.
बीबीसी संवाददाता वात्सल्य राय से बातचीत पर आधारित.