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मौत की बड़ी वजह आधुनिक जीवनशैली

हाल ही में विश्व स्वास्थ्य संगठन ने अपने 2011 की रिपोर्ट  में कहा कि आधुनिक जीवन शैली की वजह से लोग कई बीमारियों की चपेट में हैं. सही खान-पान नहीं होने और बेतरतीब रहन-सहन से लोगों में हृदय रोग, कैंसर और मधुमेह जैसी बीमारियां तेजी से फ़ैल रही हैं. रिपोर्ट के अनुसार ये बीमारियां अब गरीब देशों को अपनी गिरफ्त में ज्यादा ले रही हैं. इसके लिए इन सरकारों को अपनी चिकित्सा सुविधाओं को बेहतर बनाने की जरूरत है. डब्ल्यूएचओ की रिपोर्ट के आधार पर आधुनिक लाइफ़ स्टाइल की खामियों और चिकित्सा सुविधाओं की पड़ताल करता आज का नॉलेज. .

शहरीकरण और ग्लोबलाइजेशन की तेज रफ्तार ने लोगों के बीच आधुनिक जीवन शैली को लोकप्रिय बना दिया है. इस शैली ने बीमारियों के वैश्विक परिदृश्य को ही बदल दिया है. परंपरागत रूप से संक्रमण से संबंधित बीमारियों से गरीब देशों की और गैर-संक्रमित बीमारियों से ( लाइफ़ स्टाइल डिजीज ) धनी देशों की पहचान होती थी. लेकिन इसमें तब्दीली आ गयी है. बढ़ते तंबाकू के चलन, गलत जीवन शैली और खानपान से उत्पन्न गैर-संक्रमित बीमारियां भी अब कम आय वाले देशों को अपने गिरफ्त में लेने लगी है.

हाल ही में जारी विश्व स्वास्थ्य संगठन ( डब्ल्यूएचओ ) की 2011 की रिपोर्ट में इसका खुलासा हुआ है. 2008 के आंकड़ों के आधार पर इस रिपोर्ट को तैयार किया गया है. रिपोर्ट के अनुसार कई ऐसी बीमारियां, जो कभी विकसित देशों के लोगों को अपना शिकार बनाती थीं, अब विकासशील देशों को अपने प्रभाव में ले रही हैं. रिपोर्ट के अनुसार भारत में रोगियों की संख्या में तेजी को देखते हुए सरकार को वर्तमान स्वास्थ्य सेवाओं   पर 32 डॉलर प्रति व्यक्ति प्रति वर्ष खर्च में बढ़ोतरी करने की जरूरत है. विकसित देशों की तुलना में यह राशि 140 गुना कम है, क्योंकि समृद्ध देशों में वर्तमान में प्रति व्यक्ति प्रति वर्ष 4590 डॉलर खर्च की जाती है.

इस प्रकार गरीब देश जहां अपनी जीडीपी का 5.4 फ़ीसदी हिस्सा ही स्वास्थ्य सेवा पर खर्च करते हैं, वहीं धनी देश अपनी जीडीपी का 11 फ़ीसदी हिस्सा स्वास्थ्य सेवा पर खर्च कर रहे हैं. गरीब देशों में प्रति व्यक्ित स्वास्थ्य सुविधा की दयनीय दशा के कारण ये देश गरीब और समृद्ध, दोनों वर्ग के लोगों को होने वाली बीमारियों के दोहरे बोझ का सामना कर रहे हैं.

जाने माने अर्थशास्त्री नोबेल पुरस्कार से सम्मानित प्रोफ़ेसर अमर्त्य सेन भी कहते रहे हैं कि ‘देश में स्वास्थ्य सेवा के बेहतर प्रबंधन की जरूरत है, क्योंकि लोगों के स्वस्थ जीवन का ओर्थक विकास से प्रत्यक्ष संबंध होता है.’ देश में सस्ती चिकित्सा प्रणाली बहाल करनी होगी. जिससे ज्यादा-से-ज्यादा लोगों को स्वास्थ्य सेवा मिल सके. हालांकि, बेहतर स्वास्थ्य सेवा मुहैया कराने की वजह विकसित देशों और भारत जैसे विकासशील देशों के बीच आय में अंतर एक बड़ा कारण है.

लेकिन कई अर्थशात्रियों का मानना है कि भारत अपने संसाधनों का बेहतर प्रबंधन करके इस अंतर को पाट सकता है. प्रोफ़ेसर अमर्त्य सेन ने अपनी किताब भारत विकास की दिशाएं में कहा है कि भारत के विभिन्न राज्यों में स्वास्थ्य सेवाएं और प्राथमिक शिक्षा के खर्चो में विषमता है. यही वजह कि विकास के मामले में राज्यों में अंतर देखी जा सकती है. गैर-संक्रामक रोगों की वजह से सालाना राष्ट्रीय आय में गिरावट होती है.

इन बीमारियों का इलाज करा रहे लाखों लोग गरीबी रेखा से नीचे जीने को मजबूर हो जाते हैं. क्योंकि उनकी आय का एक बड़ी हिस्सा बीमारियों के इलाज में खर्च हो जाता है. जिससे भारत में ओर्थक विषमता की खाई चौड़ी हो रही है. फ़िर यह विषमता भारत जैसे देशों में स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं पैदा करने का कारण बनता है. यह दुश्चक्र निरंतर जारी है.

कम हैं चिकित्सक

रिपोर्ट में कहा गया है कि विकसित और ज्यादा आय वाले देशों में भारत की तुलना में दस गुना अधिक प्रशिक्षित डॉक्टर, 12 गुना नर्स व दवाइयां और 30 गुना दांत के डॉक्टर रात दिन मरीजों के देखभाल में जुटे रहते हैं. आज दो तरह की बीमारियां उभर कर सामने आ रही हैं. जिसमें से एक संक्रमण से संबंधित बीमारियां, जिसकी चपेट में गरीब और मजदूर लोग ज्यादा आ रहे हैं. जिससे निर्धन वर्ग में बीमारियों का बोझ बढ़ा है. दूसरी बीमारी आधुनिक जीवन शैली से संबंधित है. डायबीटीज ( मधुमेह ), ( ब्रेन हेमरेज ) स्ट्रोक, कैंसर और हृदय जैसी बीमारियां इसके उदाहरण हैं. मध्य वर्ग के लोगों में ऐसे रोग तेजी से फ़ैल रहे हैं. डब्ल्यूएचओ ने 64वें विश्व स्वास्थ्य सम्मेलन के दौरान यह रिपोर्ट जारी किया है.

बढ़ रही है जीवन प्रत्याशा

देश में ग्रामीण क्षेत्रों में स्वास्थ्य सेवा की बदहाली के बावजूद डब्ल्यूएचओ का कहना है कि  भारत में मां और शिशु की उच्च मृत्यु दर, आय में भारी अंतर और बढ़ते संक्रामक और गैर-संक्रमण ( दिल के रोग, स्ट्रोक, मधुमेह और कैंसर ) रोगों के बावजूद यहां लोगों की जीवन प्रत्याशा में बढ़ोतरी हो रही है. जीवन प्रत्याशा का अर्थ है लोगों की औसत आयु में वृद्धि होना. वर्ष 2000 में देश में जहां लोगों की जीवन प्रत्याशा 61 वर्ष थी, वहीं 2009 में बढ़कर 65 वर्ष तक हो गयी है.