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यहां कान्वेंट स्कूल छोड़कर सरकारी स्कूल में पढ़ने आते हैं बच्चे

तुलाराम भोई, महासमुंद। सरकारी स्कूलों से बच्चों को निकालकर कान्वेंट स्कूलों में भर्ती कराना आम बात है लेकिन यदि हम आपसे कहें कि एक सरकारी स्कूल ऐसा भी है जहां निजी स्कूल छोड़कर बच्चे पढ़ रहे हैं तो आपको शायद यकीन नहीं होगा।

छत्तीसगढ़ के महासमुंद जिला अंतर्गत पिथौरा ब्लॉक स्थित भैरोपुर गांव में है यह प्राथमिक शाला। यह कमाल और कोई नहीं, यहां के एक शिक्षक भोजराज प्रधान ने किया है। पाठशाला भवन, खूबसूरत उद्यान, शिक्षा की आधुनिक तकनीक आदि सब कुछ आज यदि इस स्कूल में है तो इसका पूरा श्रेय शिक्षक भोजराज को ही जाता है।

शिक्षा के प्रति अभूतपूर्व समर्पण के चलते ही उन्हें वर्ष 2017 में मुख्यमंत्री गौरव अलंकरण से सम्मानित भी किया जा चुका है। भोजराज को भैरोपुर प्राथमिक पाठशाला में पढ़ाते 10 साल से अधिक बीत चुके हैं।

सन 2007 में जिन दिनों उनकी नियुक्ति हुई तब स्कूल एक झोपड़ी में चलता था। शिक्षक थे नहीं, बच्चे भी गिनती के ही थे। अभिभावक अपने बच्चों को पढ़ने के लिए दूसरे गांवों के स्कूलों में भेजते थे। शिक्षा को लेकर बहुत ही निराशा भरा माहौल था। परिस्थितियां बिल्कुल विपरीत थीं।

भोजराज चाहते तो शिक्षा के नाम पर केवल औपचारिकता निभाते हुए समय काट सकते थे, लेकिन उन्होंने ऐसा न कर इसे चुनौती के रूप में लिया। सबसे पहले पाठशाला विकास समिति बनाई। ग्रामीणों को शिक्षा के प्रति जागरूक किया।

बारबार आवेदन देकर पाठशाला भवन तो स्वीकृत करा दिया लेकिन जगह सही नहीं थी। पहाड़ की बड़ी-बड़ी चट्टानें थीं, इस पर भी भोजराज डिगे नहीं। साथी शिक्षक प्रेमनाथ प्रधान व ग्रामीणों को साथ लेकर भिड़ गए छेनी-हथौड़ी व सब्बल के साथ।

श्रमदान व सहयोग से हुआ संभव

आज स्कूल व उसके आसपास की तस्वीर ही बदल गई है। स्कूल की चहारदीवारी तैयार होते ही ग्रामीणों की मदद से वहां पहले मुरुम डाली गई, फिर मिट्टी। करीब 250 ट्रैक्टर ट्रॉली मिट्टी डालने के बाद वहां खूबसूरत उद्यान तैयार किया गया।

आज यहां खिले रंग-बिरंगे फूल इस बात की गवाही दे रहे हैं कि इंसान यदि ठान ले तो पत्थर पर भी फूल खिला सकता है। क्यारियों के बीच के रास्ते का कंक्रीटीकरण कर दिया गया है जिससे स्वच्छता बनी रहती है। क्यारियों की दीवारों को भी रंगा गया है। यह सब कुछ सभी के श्रमदान व सहयोग से संभव हो पाया।

पढ़ाई में निजी स्कूलों को मात

यहां बच्चों को पाठ्यक्रम के अलावा सामान्य ज्ञान, नैतिक शिक्षा, भारतीय संस्कृति, अनुशासन और स्वच्छता का पाठ भी पढ़ाया जाता है। पिछले तीन साल में यहां के चार बच्चों माधुरूी पटेल, कल्पना जगत, ऋतु प्रधान व अंजली नायक का नवोदय स्कूल में चयन हुआ है।

अब इस गांव का कोई भी बच्चा दूसरे गांव के स्कूलों में पढ़ने नहीं जाता। उलटा दूसरे गांव के बच्चे अब यहां पढ़ने आ रहे हैं। यहां कक्षा पहली से पांचवी तक बच्चों की दर्ज संख्या 63 है, जिनमें 30 बच्चे दूसरे गांवों के हैं।

भोजराज की पत्नी रेखा भी यहां शिक्षिका हैं। पति की उपलब्धियों में उनकी बड़ी भूमिका है। ग्राम सलडीह के बच्चों के लिए ई-रिक्शा सेवा भी शुरू कर दी गई है।

योजना के अनुसार पढ़ाई

यहां बच्चों की रुचि के अनुसार पढ़ाई का स्वरूप तय किया जाता है। खेल-खेल में पढ़ाई, ज्ञानवर्धक कहानियां सुनाना, महापुरुषों की जीवनी से परिचित कराना, नई-नई चीजें सिखाना, शैक्षणिक भ्रमण पर ले जाना आदि। इन सबसे बच्चों के ज्ञान में वृद्धि हो रही है।

इतना ही नहीं, चार साल से रोजाना एक घंटे एक्स्ट्रा क्लास भी यहां ली जाती है। रविवार सहित अन्य अवकाश के दिनों में भी यहां घंटे-दो घंटे पढ़ाई जरूर होती है। यही वजह है कि यहां के बच्चों की उपस्थिति सौ फीसद रहती है।

ग्राम सलडीह के अधिवक्ता कृष्णकुमार पाणिग्राही, शिक्षक नवीन प्रधान, ग्राम भगत देवरी के उमाचरण सोनवानी व मोहगांव के शिक्षक देवराज प्रधान अपने बच्चों को इंग्लिश मिडियम स्कूल से निकलवाकर अब यहीं पढ़ा रहे हैं।

- भोजराज शिक्षा क्रांति के सच्चे सिपाही हैं... और यदि वे यह कर सकते हैं तो सरकारी स्कूलों के अन्य शिक्षक क्यों नहीं? पढ़ाई को लेकर शिक्षकों की कमी का रोना बंद होना चाहिए। भोजराज से प्रेरणा लेनी चाहिए अन्य गुरुओं को। - मनोज स्वाई शिक्षाविद् भिलाई


- सरकारी स्कूलों के सभी शिक्षकों को प्रधान से प्रेरणा लेनी चाहिए। सांस्कृतिक स्रोत व प्रशिक्षण केंद्र छत्तीसगढ़ के अधिकारियों से बात कर ऐसे स्कूलों की जानकारी ली जाएगी। हमारी टीम जब भी छत्तीसगढ़ जाएगी, भैरोपुर स्कूल जरूर पहुंचेगी। - विनोद कुमार प्रशासन अधिकारी, सांस्कृतिक स्रोत व प्रशिक्षण केंद्र (सीसीआरटी) नई दिल्ली