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युवा बेरोजगारी भारत के लिए संकट- रविदत्त वाजपेयी

यह एक सुखद आश्चर्य है कि शताब्दियों का इतिहास संजोये रखने के बाद, आज भी भारत को एक युवा देश माना जाता है. सबसे विस्मयकारी तथ्य यह है कि इस सौभाग्य का श्रेय भारत की उस प्रचुर जनसंख्या को दिया जाता है जिसके विशाल आकार को लंबे समय से भारत की सबसे बड़ी समस्या बताया गया था. आखिरकार भारत की इतनी बड़ी आबादी जनसंख्या आपदा से जनसंख्या संपदा में कैसे बदल गयी.

आज भारत की कुल आबादी का 66 फीसदी भाग ऐसे लोगों का है जिनकी आयु 35 वर्ष से कम है, अर्थात विश्व के कुल युवा लोगों का सबसे बड़ा हिस्सा भारत में ही रहता है. एक उन्नत समाज-राष्ट्र निर्माण के लिए उस देश में मौजूद उत्पादक युवा लोगों की संख्या सबसे अनिवार्य घटक है.

किसी भी देश के गतिशील आर्थिक विकास के लिए 15-64 वर्ष की आयु के बीच के कामकाजी लोगों की संख्या और इन पर निर्भर गैर कामकाजी लोगों की संख्या का अनुपात बहुत महत्वपूर्ण है. वर्ष 2030 तक भारत में कामकाजी और गैर-कामकाजी जनसंख्या का निर्भरता अनुपात (डिपेंडेसी रेशियो) सारी दुनिया में सबसे अच्छा होगा, जब भारत की जनसंख्या का सबसे बड़ा भाग 15-64 आयु के लोगों का होगा.

यह स्थापित तथ्य है कि लोग अपने कामकाजी जीवन के दौरान सबसे अधिक संचय करते है, जबकि बचपन और वृद्धावस्था में अपनी कमाई से अधिक खर्च करते है. किसी देश में उपस्थित कामकाजी लोगों की बड़ी संख्या ही उस देश को प्रचुर मात्र में संचित आय उपलब्ध कराती है, बिना विदेशी सहयोग (बंधनों) या विदेशी ऋण के कोई देश इसी संचित आय को अपने आर्थिक विकास के लिए स्वतंत्रतापूर्वक उपयोग में ला सकता है.

इस तरह तो भारत की विशाल जनसंख्या संपदा निकट भविष्य में विशाल आर्थिक संपदा बनने की दहलीज पर खड़ी है, लेकिन जिस गति से भारत में युवा बेरोजगारी बढ़ रही है उससे लगता है कि संपन्नता की ओर बढ़ते भारत के कदम या तो दहलीज पर ही ठिठक कर रह जायेंगे या गंभीर आर्थिक विपन्नता व सामाजिक अस्थिरता की ओर मुड़ जायेंगे.

एक मोटे अनुमान से भारत में 50 फीसदी रोजगार कृषि में, 20 फीसदी उद्योगों में और 30 फीसदी सेवा उद्योगों में स्थित है. वर्ष 2000-2012 के बीच भारत में रोजगार की वृद्धि दर 2.2 फीसदी रही है, कृषि क्षेत्र में नए रोजगार नहीं बने है, उद्योगों में रोजगार बढ़ने की दर केवल चार फीसदी है, जबकि अधिकतर रोजगार सेवा उद्योग में बढ़े हैं.

भारत में सेवा उद्योग का दायरा बहुत बड़ा है, आइटी, बीपीओ जैसी सेवाओं के साथ ही हर दफ्तर, एटीएम के सामने खड़े चौकीदार और खोमचे-ठेले पर काम करने वाले भी सेवा उद्योग के अंतर्गत आते है. भारत के सेवा उद्योग में निचले स्तर पर बेहद कम वेतन पर और रोजगार सुरक्षा के बिना लाखों लोगों को काम करने की मजबूरी है, इनमें से अधिकतर लोग तकनीकी तौर पर तो बेरोजगार नहीं है लेकिन इस आधे-अधूरे रोजगार के बावजूद वे लगभग भुखमरी से जूझने को विवश है.

भारत में उत्पादन उद्योग (मैन्युफैक्चरिंग) में निवेश बहुत कम हुआ है, भारत में आधारभूत सुविधाओं की कमी, आवागमन के अपर्याप्त साधन, बिजली व कच्चे सामान की अनियमित आपूर्ति, अस्थिर प्रशासनिक व्यवस्था के कारण नए उद्योग भारत में निवेश नहीं करते है.

वर्ष 2011 में सिले-सिलाये वस्त्रों की आपूर्ति को चीन से हटाने को आतुर विदेशी कंपनियों ने भी भारत के स्थान अपने लिए वियतनाम, कंबोडिया, बांग्लादेश और इंडोनेशिया का रुख किया. इसका कारण कुशल भारतीय श्रमिकों की कमी से कहीं अधिक आवागमन के साधनों की कमी और विदेशी निवेशकों में भारत के श्रम कानूनों के प्रति अनिश्चितता थी.

नये उद्योगों की स्थापना से पहले भारत को अपनी बड़ी युवा जनसंख्या को उपयुक्त प्रशिक्षण देने की व्यवस्था करनी होगी, क्योंकि 18-29 आयु वर्ग में भारत में स्नातक या उससे अधिक पढ़े युवा लोगों में बेरोजगारी की दर सबसे ज्यादा है. 18-29 आयु वर्ग में बेरोजगारी की दर 13.3 फीसदी है जबकि इस आयु में ग्रामीण क्षेत्रों में हर तीसरा स्नातक (36 प्रतिशत) बेरोजगार है जबकि शहरी क्षेत्रों में हर चौथा स्नातक (26 प्रतिशत) बेरोजगार है.

जबकि इसी आयु वर्ग में अशिक्षित युवा लोगों में बेरोजगारी की दर केवल 3.7 प्रतिशत है, क्योंकि अशिक्षित लोगों को हर प्रकार का रोजगार स्वीकार्य है जबकि शिक्षित लोग अपनी पढ़ाई-उपाधि के अनुरूप रोजगार चाहते है. भारत में औपचारिक शिक्षा उपाधि तो दिला सकती है लेकिन यह रोजगार की योग्यता नहीं दे सकती है, आर्थिक मंदी के दौर में तो अच्छी शिक्षा भी रोजगार दिलाने में सक्षम नहीं है. बैंकों से शिक्षा ऋ ण लेकर उच्च शिक्षा हासिल करने वाले विद्यार्थियों को भी उपयुक्त रोजगार नहीं मिल पा रहे है जिसके पिछले पांच वर्षों में बैंकों के अनेक शिक्षा ऋ ण, गैर निष्पादित परिसंपत्तियों (एनपीए) में बदल गये हैं.

 

भारत सरकार ने वर्ष 2022 तक 50 करोड़ लोगों को रोजगार परक उपयुक्त शिल्प व कौशल का प्रशिक्षण देने के एक महत्वाकांक्षी योजना बनायी है, जिसका अर्थ है कि भारत सरकार ने अब तक के स्थापित प्रशिक्षण व शैक्षणिक संस्थानों की विफलता को स्वीकार कर लिया है.  दुर्भाग्यवश यदि यह योजना भी एक शिगूफा साबित हुई तो अगले 10 वर्षों में तैयार हुई बेरोजगारों की इतनी बड़ी संख्या, एक राष्ट्र के रूप में भारत के अस्तित्व के लिए बहुत बड़ा संकट बन सकती है.