Deprecated (16384): The ArrayAccess methods will be removed in 4.0.0.Use getParam(), getData() and getQuery() instead. - /home/brlfuser/public_html/src/Controller/ArtileDetailController.php, line: 73
 You can disable deprecation warnings by setting `Error.errorLevel` to `E_ALL & ~E_USER_DEPRECATED` in your config/app.php. [CORE/src/Core/functions.php, line 311]
Deprecated (16384): The ArrayAccess methods will be removed in 4.0.0.Use getParam(), getData() and getQuery() instead. - /home/brlfuser/public_html/src/Controller/ArtileDetailController.php, line: 74
 You can disable deprecation warnings by setting `Error.errorLevel` to `E_ALL & ~E_USER_DEPRECATED` in your config/app.php. [CORE/src/Core/functions.php, line 311]
Warning (512): Unable to emit headers. Headers sent in file=/home/brlfuser/public_html/vendor/cakephp/cakephp/src/Error/Debugger.php line=853 [CORE/src/Http/ResponseEmitter.php, line 48]
Warning (2): Cannot modify header information - headers already sent by (output started at /home/brlfuser/public_html/vendor/cakephp/cakephp/src/Error/Debugger.php:853) [CORE/src/Http/ResponseEmitter.php, line 148]
Warning (2): Cannot modify header information - headers already sent by (output started at /home/brlfuser/public_html/vendor/cakephp/cakephp/src/Error/Debugger.php:853) [CORE/src/Http/ResponseEmitter.php, line 181]
Notice (8): Undefined variable: urlPrefix [APP/Template/Layout/printlayout.ctp, line 8]news-clippings/युवा-मन-को-समझने-की-चुनौती-आशुतोष-चतुर्वेदी-12027.html"/> न्यूज क्लिपिंग्स् | युवा मन को समझने की चुनौती-- आशुतोष चतुर्वेदी | Im4change.org
Resource centre on India's rural distress
 
 

युवा मन को समझने की चुनौती-- आशुतोष चतुर्वेदी

पिछले दिनों सीबीआइ ने हरियाणा के गुरुग्राम में दूसरी कक्षा में पढ़ने वाले एक छात्र की हत्या के आरोप में स्कूल के ही 11वीं के एक छात्र की गिरफ्तारी कर पूरे देश को चौंका दिया. कुछ दिनों पहले दूसरी कक्षा के छात्र की स्कूल में हुई हत्या ने पूरे देश को हिला कर रख दिया था.

इसके लेकर धरने प्रदर्शन हुए, कैंडल मार्च हुए और हरियाणा पुलिस ने आनन-फानन में स्कूल बस के कंडक्टर को गिरफ्तार कर केस सुलझाने का दावा किया था. उसका मीडिया के सामने बयान भी कराया गया था, जिसमें उसने कहा था कि उसने स्कूल के बाथरूम में बच्चे की हत्या की. उसका इरादा ठीक नहीं था और बच्चा चिल्लाने लगा तो उसने अपनी जेब से चाकू निकाला और उसका गला रेत दिया. उसके बयान सुनने के बाद लोगों की भारी प्रतिक्रिया सामने आयी और लोग कंडक्टर को फांसी देने तक की मांग करने लगे थे.

स्थानीय बार एसोसिएशन ने तो कंडक्टर का केस न लड़ने का फैसला कर लिया था. हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर बच्चे के परिवार से मिलने उनके घर गये थे और उसके बाद उन्होंने परिवार की इच्छा को देखते हुए इसकी सीबीआइ जांच की घोषणा की थी.

सीबीआइ ने हाल में अपनी जांच पूरी की और मामला उलट दिया. सीबीआइ ने हत्याकांड के जिस पहलू की तरफ गुरुग्राम पुलिस ने देखने की जरूरत भी नहीं समझी थी. सीबीआइ ने उन्हीं पहलुओं पर गौर किया. सीबीआइ ने इस हत्या की वजह जो बतायी है, वह चौंकाने वाली है.

सीबीआइ का कहना है कि आरोपी छात्र ने पीटीएम और परीक्षा रद्द कराने के लिए यह हत्या की थी. ग्यारवीं कक्षा के इस बच्चे ने अपने एक दोस्त से कहा था कि वह परीक्षा टलवाने के लिए किसी भी हद तक जाने को तैयार है. यही नहीं सीबीआइ को इस छात्र ने यह भी बताया कि आरोपी छात्र ने यहां तक कहा था कि जरूरत पड़ी तो वह किसी भी छात्र का कत्ल कर सकता है ताकि परीक्षा टाली जा सके. सीबीआइ की शक की सुई का आधार यही बात बना. इसके बाद आरोपी छात्र ने हत्या की बात कबूल करते हुए सीबीआइ को कत्ल में इस्तेमाल चाकू भी बरामद करवा दिया.

इस घटना से दो सवाल उठते हैं, एक तो 11वीं का एक नाबालिग छात्र स्कूल परीक्षा को टलवाने के लिए बच्चे की हत्या जैसी बड़ी वारदात जैसी हद कैसे पार कर जाता है. इस घटना ने युवाओं के साथ संवादहीनता की स्थिति को उजागर कर दिया है. एक तो 11वीं का छात्र एक स्कूली बच्चे की हत्या की योजना बना रहा था और मां-बाप और स्कूल टीचर्स को इसका आभास तक नहीं था. दूसरे यह घटना हमारी पुलिस की कार्यप्रणाली पर भी बड़ा सवाल खड़े करती है. सीबीआइ का कहना है कि लोगों के दबाव में पुलिस ने कंडक्टर को अपराधी करार कर दिया. उससे अपराध भी कबूल करवा दिया और एक चाकू भी बाहर से लाकर रख दिया जिससे हत्या बतायी गयी.

मैं इसे पुलिस का अक्षम्य अपराध मानता हूं. गुरुग्राम पुलिस ने एक निरीह कंडक्टर को पकड़कर उसे अपराधी घोषित कर दिया. मीडिया के सामने उससे इसकी पुष्टि करा दी. अगर मामला सीबीआइ के पास नहीं जाता तो आप अंदाज लगा सकते हैं कि गरीब कंडक्टर सजा पा गया होता. यह पहला ऐसा मामला नहीं है. अन्य कई मामलों में पुलिस की कार्यप्रणाली पर सवाल उठे हैं.

आरुषि मामले में हाल में उसके माता पिता कई साल जेल में बिताने के बाद अदालत से बरी हुए हैं. न तो यूपी पुलिस और न ही सीबीआइ यह साबित करने में कामयाब हो पायी कि आखिर आरुषि की हत्या किसने की थी. अब आते हैं बच्चों की ओर. मेरी हमेशा से दिलचस्पी बच्चों के मनोवैज्ञानिक अध्ययन में रही है. जब भी और जहां भी मुझे मौका मिलता है, मैं उनसे संवाद करने की कोशिश करता हूं. उन्हें जानने-समझने का प्रयास करता हूं. उसे समाज के सामने लाने की कोशिश भी करता हूं. मैंने महसूस किया है कि पुरानी पीढ़ी युवा मन को समझ नहीं पा रही है. हम उनसे बिल्कुल कट गये हैं. एक ब्रिटिश मनोविज्ञानी से मुलाकात का मैं फिर उल्लेख करना चाहूंगा.

वह भारत में एक रिसर्च के सिलसिले में आयीं हुईं थीं. मैंने जब उनसे पूछा कि उन्होंने भारत में क्या देखा तो उन्होंने कहा कि भारतीय मां-बाप बच्चों को लेकर ‘नहीं' का इस्तेमाल बहुत करते हैं. वे बात-बात में ये नहीं, वह नहीं, ऐसा नहीं, वैसा नहीं, यहां मत जाओ, ऐसा मत करो, वैसा मत करो, का बहुत अधिक इस्तेमाल करते हैं. इसमें सच्चाई भी है. उनका कहना था कि इसमें माताएं बहुत आगे हैं जबकि ‘नहीं' शब्द का इस्तेमाल बहुत सोच समझकर किया जाना चाहिए. इससे एक तो बच्चों में नकारात्मक प्रभाव पड़ता है, उनका मन विद्रोही हो सकता है, दूसरे अत्यधिक इस्तेमाल से बच्चों पर ‘नहीं' का असर समाप्त हो जाता है. जहां आवश्यकता हो, इसका जरूर इस्तेमाल करें.

कुछ समय पहले बच्चों को जानने-समझने के लिए प्रभात खबर ने झारखंड में बचपन बचाओ अभियान की पहल आयोजित की थी. हमने मनोवैज्ञानिकों के साथ विभिन्न स्कूली बच्चों के साथ संवाद किया. हम जानना चाहते हैं कि बच्चे क्या सोच रहे हैं, मां बाप और शिक्षक के बारे में उनके विचार क्या हैं, उनकी अपेक्षाएं और महत्वाकांक्षाएं क्या हैं. इस पहल से यह बात निकलकर आयी कि माता पिता और बच्चों में संवादहीनता की स्थिति है.

मेरा मानना है कि बच्चा, शिक्षक और अभिभावक तीन महत्वपूर्ण कड़ी हैं. इनमें से एक भी कड़ी ढीली पड़ने पर पूरी व्यवस्था गड़बड़ा जाती है. यह भी देखा गया है कि बच्चे से माता-पिता कुछ भी कहने से डरते हैं कि वह कहीं कुछ न कर ले. दूसरी ओर टीचर्स के सामने समस्या है कि वह बच्चों को अनुशासित कैसे रखें. इसमें कोई शक नहीं कि नयी पीढ़ी के बच्चे अत्यंत प्रतिभाशाली हैं.

हमें यह बात भी स्वीकार करनी पड़ेगी कि बच्चों में बहुत बदलाव आ गया है. आप गौर करें कि युवा पीढ़ी के सोने, पढ़ने के समय, हाव भाव और खानपान सबमें बदलाव आ चुका है. आप सुबह पढ़ते थे, बच्चा देर रात तक जगने का आदी है. उसे मैगी, मोमो, बर्गर, पिज्जा से प्रेम है, आपकी सुई अब भी दाल रोटी पर अटकी है. यह व्हाट्सएप की पीढ़ी है, यह बात नहीं करती, मैसेज भेजती है, लड़के लड़कियां दिन-रात आपस में चैट करते हैं.

होता यह है कि अधिकांश माता-पिता नयी परिस्थितियों से तालमेल बिठाने के बजाए पुरानी बातों का रोना रोते रहते हैं. परिवर्तन तो हो गया, उस पर आपका बस नहीं है. अब जिम्मेदारी आपकी है कि आप जितनी जल्दी हो सके नयी परिस्थिति से सामंजस्य बिठाएं ताकि बच्चे से संवादहीनता की स्थिति न आने पाए.