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योजना की आड़ में खिलवाड़- निराला की रिपोर्ट(तहलका, हिन्दी)

राष्ट्रीय स्वास्थ्य बीमा योजना के मूल उद्देश्य का सत्यानाश करके बिहार में कई निजी अस्पतालों ने सिर्फ पैसा कमाने के लिए 16 हजार महिलाओं की बच्चेदानी निकाल दी. निराला की रिपोर्ट.

एक आदमी सपरिवार सफर में था. ट्रेन में पहुंचा. उसकी सीट पर कुछ लफंगे पहले से बैठे थे. सीट से हटने को लेकर बहस हुई. लफंगों ने आदमी को एक तमाचा जड़ दिया. उस आदमी ने कहा, ‘मुझे मार दिया लेकिन मेरी बीवी को हाथ भी लगाया तो...!’ लफंगों ने बीवी को भी एक तमाचा जड़ा. पूछा, ‘क्या कर लोगे, करके दिखाओ!’ आदमी बोला, ‘मुझे मारा, मेरी बीवी को मारा, लेकिन मेरे बच्चों को हाथ भी लगाया तो समझ लेना.’ लफंगों ने बच्चों को भी तमाचे रसीद कर दिए और फिर पूछा- ‘क्या करोगे, करके दिखाओ.’ आदमी राहत की सांस लेते हुए बोला, ‘अब ठीक है, अकेले मैं मार खाता तो घर पहुंचने पर बीवी-बच्चे ताना देते कि कैसे पिट गए, अब सभी को लप्पड़ लग गए हैं तो कोई कुछ नहीं कहेगा.’

यहां इस चुटकुले की चर्चा की एक वजह है. पिछले दिनों बिहार के समस्तीपुर जिले से राष्ट्रीय स्वास्थ्य बीमा योजना की लाभार्थी गरीब महिलाओं की बच्चेदानी (गर्भाशय) निकाले जाने की खबर आई. ऐसा ही कुछ राज्य के दूसरे जिलों में भी होने के संकेत मिले. बिना किसी जांच-पड़ताल और ठोस वजह के कई महिलाओं की बच्चेदानी निकालकर निजी अस्पतालों द्वारा लाखों रुपये बनाने की खबरें आईं तो यह गंभीर सवाल राज्य के श्रम संसाधन मंत्री जनार्दन सिंह सिग्रिवाल के सामने रखा गया. उनका जवाब था, ‘यह सिर्फ बिहार में थोड़े ना हो रहा है, ऐसा तो पूरे देश में हो रहा है.’ 

हालांकि सिग्रिवाल बाद में यह आम जुमला जोड़ना नहीं भूले कि जांच चल रही है और दोषियों को बख्शा नहीं जाएगा. लेकिन ऐसी जांचों का क्या नतीजा निकलता है यह सब जानते हैं. और वैसे भी जिस विभाग पर राष्ट्रीय स्वास्थ्य बीमा योजना की देखभाल का जिम्मा है उसके मंत्री ही दूसरे राज्यों में भी ऐसी घटनाएं होने की बात कहकर समस्या से पल्ला झाड़ रहे हों तो दोषी डॉक्टर और निजी अस्पताल भी कुछ इसी किस्म के तर्क देकर बच निकलेंगे, यह सोचना अस्वाभाविक नहीं.

बहरहाल, आगे की जांच से सांच भले न बांचा जा सके, यह बात सामने आ चुकी है कि धोखे में रखकर सैकड़ों महिलाओं की बच्चेदानी निकाली जा चुकी है. 20 से 30 साल की उम्र के बीच की जिन महिलाओं के साथ यह हुआ है उनके लिए जिंदगी के मायने बदल गए हैं. अब वे कभी मां नहीं बन पाएंगी. साथ ही उन्हें कई मानसिक बीमारियां भी घेर सकती हैं. 

राष्ट्रीय स्वास्थ्य बीमा योजना केंद्र सरकार की लोकप्रिय योजनाओं में से एक है. यह अप्रैल, 2008 में लागू हुई थी. केंद्र सरकार ने इसे गरीबी रेखा से नीचे रहने वाले परिवारों के लिए लागू किया है. इसके लिए ऐसे परिवारों को स्मार्ट कार्ड दिए जाते हैं. एक कार्ड पर परिवार के पांच सदस्यों के इलाज का इंतजाम रहता है जिसके लिए सालाना अधिकतम 30 हजार रुपये तक की राशि खर्च की जा सकती है. इसके लिए सरकार ने बीमा कंपनियों से समझौते किए हैं. ये बीमा कंपनियां निजी अस्पतालों की एक सूची तैयार करके गरीबों को वहां स्वास्थ्य सेवा उपलब्ध कराती हैं. मरीजों को सीधे पैसा नहीं मिलता बल्कि बीमा कंपनियां अस्पतालों को भुगतान करती हैं.

इसी योजना के तहत महिलाओं की बच्चेदानी निकालने का खेल शुरू हुआ. धीरे-धीरे समस्तीपुर के लोगों को लगा कि बच्चेदानी निकालने के मामले जिस गति से बढ़ रहे हैं वह सामान्य बात नहीं. यहां दर्जन भर से अधिक निजी अस्पताल और क्लीनिक हैं जहां यह खेल चल रहा था. लेकिन बात कानाफूसी तक ही सिमट कर रह जा रही थी. विडंबना यह भी है कि इस स्वास्थ्य योजना के तहत ओपीडी में इलाज कराने का प्रावधान नहीं है इसलिए बच्चेदानी किस वजह से निकाली जा रही है, इसकी थाह लगाना सामान्य आदमी के बस की बात नहीं थी. इसीलिए डॉक्टरों और अस्पतालवालों से तर्क-वितर्क की गुंजाइश भी नहीं बच रही थी. चूंकि एक बच्चेदानी का ऑपरेशन करने में अस्पताल को 12 हजार रुपये की राशि मिलने का प्रावधान है, इसलिए अस्पताल वाले धड़ल्ले से ऑपरेशन करने में लगे रहे.

अब जब इस खेल से परदा आखिर में खुद वहां के जिला प्रशासन ने हटाया तो साफ हुआ है कि अकेले समस्तीपुर जिले में अस्पतालों ने करीब 1300 ऑपरेशन किए, जो संदेह के दायरे में हैं. इनमें उन 489 महिलाओं की बच्चेदानी निकाली गई जिन्हें ऑपरेशन की जरूरत ही नहीं थी. यानी सिर्फ पैसे बनाने के लिए 489 महिलाओं का गर्भाशय निकाल दिया गया. इसमें भी शर्मनाक यह रहा कि कई ऑपरेशन सिर्फ कागज पर कर दिए गए. बताया जा रहा है कि अस्पतालों ने कई पुरुषों के नाम पर भी बच्चेदानी निकालने का काम किया. 

निजी अस्पतालों, बीमा कंपनियों और कुछ संस्थाओं की मिलीभगत से चल रहे इस घिनौने खेल से अभी परदा नहीं उठता, लेकिन लगातार इस गोरखधंधे के बारे में शिकायत मिलने पर इसकी आरंभिक जांच शुरू की गई तो चौंकाने वाले तथ्य सामने आते गए. जानकारी के अनुसार समस्तीपुर जिले में पिछले साल से अब तक कुल करीब आठ हजार  ऑपरेशन हुए. 26,00 मरीजों की दोबारा जांच करवाई गई तो इनमें से आधे मामले संदेहास्पद पाए गए हैं. समस्तीपुर के निजी अस्पतालों ने एक साल में इस नाम पर 12 करोड़ रुपए भुगतान करने का दावा ठोका. बेगुसराय जिले में निजी अस्पतालों ने इस नाम पर करीब दस करोड़ रुपये भुगतान की मांग की.

बात अब समस्तीपुर या बेगूसराय तक की नहीं रही है. राज्य के दूसरे जिलों में भी यह खेल उसी रूप में चल रहा था. वहां भी जांच हुई तो और भी चौंकाने वाले तथ्य उभरे. छपरा में 17,00 ऑपरेशन संदेह के दायरे में आ गए और मधुबनी जिले में 12,00 . अब यह बताया जा रहा है कि बिहार में कुल मिलाकर 16 हजार महिलाओं की बच्चेदानी बिना किसी वजह के ही निकाल दी गई. आशंका जताई जा रही है कि आगे यह संख्या और बढ़ेगी. समस्तीपुर के डीएम कुंदन कुमार कहते हैं, ‘हमने जांच रिपोर्ट भेज दी है. यह सच है कि फर्जीवाड़ा हुआ है और कम उम्र की महिलाओं की भी बच्चेदानी निकाली गई है.’

यह बात तो एक जिले के डीएम कह रहे हैं. बिहार में 38 जिले हैं. राज्य में गरीबी रेखा के नीचे रहनेवाले करीब 75 लाख लोगों को इस स्वास्थ्य बीमा योजना का लाभ उपलब्ध करवाया गया है. सभी जिलों से निष्पक्ष रिपोर्ट आएगी तो एक बड़ी साजिश से परदा उठेगा. मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने सभी जिलों में इस मामले के जांच के आदेश दिए हैं, लेकिन लोक जनशक्ति पार्टी के नेता रामविलास पासवान इस मामले की सीबीआई जांच की मांग कर रहे हैं. बकौल रामविलास पासवान, ‘जिनके गर्भाशय फर्जी तरीके से निकाले गए हैं, उन पीडि़तों को पांच-पांच लाख रुपये का मुआवजा भी दिया जाना चाहिए.’

इस मामले के संबंध में विधायक रेणु देवी की अध्यक्षता में एक जांच टीम गठित की गई है जो पांच सितंबर से 11 जिलों का दौरा करेगी. टीम इस दौरान पीडि़तों, अस्पतालों, डीएम आदि से मिलेगी. विधानसभा जांच समितियों के हश्र का एक लंबा काला इतिहास रहा है. इसलिए स्वाभाविक है कि इस बार भी जांच समिति से ज्यादा उम्मीदें नहीं हैं. बहरहाल, इसका सबसे बुरा असर उन महिलाओं पर पड़ने वाला है, जिनकी उम्र 20 से 30 साल के बीच की है और जिनके गर्भाशय निकाल लिए गए हैं. बेगूसराय में रहने वाले और पेशे से चिकित्सक व सामाजिक कार्यकर्ता डॉ विद्यापति राय कहते हैं, ‘जो भी ऐसी महिलाएं हैं उनके मानसिक बीमारियों की जद में आने की संभावना बढ़ेगी और उसका असर बाद में दिखेगा.’

हालांकि अपने बचाव में उतरे डॉक्टर कह रहे हैं कि बिना सहमति के कोई ऑपरेशन नहीं होता, सो इसमें गलत जैसा क्या हुआ है. लेकिन खुद को बचाने के लिए डॉक्टरों और निजी अस्पतालों द्वारा गढ़ा जा रहा यह एक बचकाना और बेहूदा बयान है. पेशे से चिकित्सक और केंद्र सरकार की 12वीं योजना के स्वास्थ्य संबंधी एप्रोच पेपर के वर्किंग ग्रुप के सदस्य डॉ शकील कहते हैं,  ‘डॉक्टरी के पेशे में कुछ रहस्यवाद होते हैं, उस रहस्यों पर परदा डाले रहना डॉक्टरों की नैतिकता पर निर्भर करता है. जब कोई मरीज अस्पताल में पहुंचेगा और डॉक्टर कहेंगे कि ऑपरेशन करना होगा तो कोई कैसे मना कर सकता है! जब उसे यह कहा जाएगा कि आप ऑपरेशन नहीं करवाएंगे तो कैंसर हो सकता है तो कोई भी डरकर बच्चादानी निकलवाने को राजी हो जाएगा. लेकिन यह तो एक सामान्य-सी बात है कि जब तक मां बनने की संभावना रहती है, तब तक बच्चेदानी के ऑपरेशन से बचना चाहिए.’

योजना में सुधार की जरूरत भी बताई जा रही है. डॉ शकील कहते हैं,  ‘राष्ट्रीय स्वास्थ्य बीमा योजना की सबसे बड़ी कमजोरी यह है कि इसकी मॉनिटरिंग की कोई व्यवस्था है ही नहीं, सो ऐसे खेल तो होंगे ही और दुर्भाग्य देखिए कि इसका जिम्मा श्रम संसाधन विभाग को दिया गया है, जिसके अधिकारी स्वास्थ्य सेवाओं का ककहरा तक नहीं जानते.’

राज्य मानवाधिकार आयोग ने मामले का संज्ञान लेते हुए सरकार से जवाब मांगा है. इस बीच मंत्री जनार्दन सिंह सिग्रिवाल ने एक और बयान दिया है कि यह घोटाला नहीं. उनका तर्क है कि देश भर में बच्चेदानी के ऑपरेशन का प्रतिशत सात है जबकि बिहार में तो यह पांच प्रतिशत ही है. सिग्रिवाल देश के दूसरे राज्यों में भी ऐसी घटना होने की बात कह कर इस मामले का सामान्यीकरण कर दें या राष्ट्र और राज्य के स्तर पर प्रतिशतता का आंकड़ा देकर खुद को तसल्ली दे दें, लेकिन वे यह सब कहते हुए एक बार भी नहीं सोच रहे कि उनके ऐसा कहने से निजी अस्पताल किस तरह का तर्क गढ़ लेंगे.