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रंग लाने लगी बेटी बचाने की मुहिम

झज्जार, जागरण संवाद केंद्र : आखिर रंग लाई जन्म से पहले बेटी को बचाने की हमारी मुहिम। साल 2012 में अप्रैल तक जिले में जन्म लेने वाले बच्चों के बीच लिंगानुपात के आंकड़े अब बदलाव की कहानी बताने लगे है। इसे जागरूकता अभियानों का नतीजा कहें या फिर एक्टिव ट्रेकर का असर। जिले में इस बार जन्मी लड़कियों की संख्या एक नई शुरुआत की दस्तक लगने लगी है।

साल 2001 में झज्जार जिले में लिंगानुपात 847 और फिर 10 साल बाद यानि 2011 में बढ़कर 861 पर पहुंच गया, लेकिन लिंगानुपात की यह स्थिति माथे पर परेशानी की लकीरे तो पैदा कर ही रही थी, क्योंकि 2011 की जनगणना में प्रदेश में प्रति हजार पुरुषों पर महिलाओं की संख्या 877 थी, जो झज्जार जिले के आंकड़ों से 16 अधिक थी, लेकिन समस्या का हल तो ढूंढना ही था। उपायुक्त अजित बालाजी जोशी की पहल पर जिले के 29 अल्ट्रासाउंड केंद्रों पर लगाए गए एक्टिव ट्रेकर सिस्टम से सकारात्मक परिणाम मिले है। देश भर में झज्जार ऐसा पहला जिला था, जहां अल्ट्रासाउंड केंद्रों पर ऐसी अत्याधुनिक तकनीक प्रयोग की गई। इस तकनीक के लगातार इस्तेमाल के बाद मिले नतीजों ने झज्जार जिले में एक नई उमंग को पैदा किया।

साल 2011 में जनवरी से दिसंबर तक जन्म लेने वाले बच्चों के बीच लिंगानुपात की स्थिति 815 थी, जबकि जिले में एक्टिव ट्रैकर के इस्तेमाल के बाद 2012 में फरवरी माह तक ही यह स्थिति 837 पर पहुंच गई। दो महीने के नतीजों ने ही बड़े अंतर को जाहिर कर दिया। स्वास्थ्य विभाग के आंकड़ों की बात करे तो अप्रैल के दौरान ग्रामीण क्षेत्रों में लिंगानुपात की स्थिति 876 पर पहुंच गई, जबकि झज्जार नगर पालिका क्षेत्र में 959 तथा बेरी में 963 तक उछाल देखा गया, जबकि साल 2011 में जनवरी से दिसंबर तक झज्जार नगर पालिका क्षेत्र में लिंगानुपात की स्थिति 788 तथा बेरी नपा क्षेत्र में लिंगानुपात 787 दर्ज हुआ। बदलाव की यह दस्तक काफी चौंकाने वाली रही है।

हालांकि लिंगानुपात में सुधार की कवायद पहले भी कई बार हुई थी। पीएनडीटी एक्ट को सख्ती से लागू करने में स्वास्थ्य विभाग ने पहले भी कई बार कदम उठाए थे। हालात सुधरते भी, लेकिन अक्सर नतीजे माथे पर परेशानी लाते ही रहे। सरकारी विभाग व सामाजिक संस्थाए लड़कियों के प्रति समाज की धारणा को बदलने की अपनी कोशिशों में लगातार जुटी रही। इन जागरूकता अभियानों के नतीजे भी कई बार सकारात्मक मिले, लेकिन इन कोशिशों के बीच बने खालीपन को भरने के लिए एक नए प्रयोग की अरसे से जरुरत महसूस की गई।

बेहद एडवांस सिस्टम है एक्टिव ट्रेकर

उपायुक्त अजित बालाजी जोशी ने बताया कि महाराष्ट्र के कोल्हापुर में साइलेंट ऑब्जर्वर सिस्टम के बारे में जानकारी मिलने के बाद झज्जार में भी ऐसे सिस्टम की जरूरत महसूस की गई। हालांकि शुरुआती दौर में साइलेंट ऑब्जर्वर का प्रयोग सफल रहा था, लेकिन कोल्हापुर की केस स्टडी के बाद बेहद एडवांस सिस्टम पर काम किया गया। जब सभी प्रयोग सफल रहे तो देश भर में पहली बार झज्जार जिले में एडवांस एक्टिव ट्रेकर सिस्टम का इस्तेमाल किया गया। जिले के सभी सोनोग्राफी सेंटर में अल्ट्रासाउंड मशीनों पर ट्रेकर लगाए गए। इस ट्रैकर के जरिये स्वास्थ्य विभाग और प्रशासन के अन्य अधिकारी इन सेंटर्स पर सीधे नजर रखने लगे। उसका परिणाम जिले में लिंगानुपात में निरंतर सुधार के रूप में देखने को मिल रहा है।