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रफ्तार की रोड से गायब होती साइकल

कहा जाता है साइकल का मतलब है सादगी और सादगी का मतलब खुशी। ऑस्ट्रेलिया के पूर्व प्रधानमंत्री जॉन हावर्ड के मुताबिक साइकल दुनिया का सबसे शानदार वाहन है। इसका यात्री ही इसका इंजन होता है। यह बात आज के दौर में मौजूं है, लेकिन नए जमाने की पक्की सड़कों से साइकल नदारद होती जा रही है। समय की कमी, रफ्तार की मांग, ऑटो सेक्टर में इनोवेशन और परिवहन के नए विकल्प जैसे कई कारण हैं जो स्वाभाविक रूप से साइकल को लोगों से दूर कर चुके हैं।

पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति जॉन एफ. कैनेडी मानते थे कि साइकल पर सवारी करने से ज्यादा सुकून भरा अहसास दूसरा नहीं हो सकता। लेकिन इस सुकून से भारतीय अब दूर हो रहे हैं। भारत में साइकल के इस्तेमाल को लेकर द एनर्जी एंड रिसॉर्सेस इंस्टिट्यूट (टीईआरआई) ने सरकारी आंकड़ों के आधार पर ‘पैडलिंग टूवर्ड्स अ ग्रीनर इंडिया' रिपोर्ट तैयार की है। इसमें बताया गया है कि किस तरह देश में साइकल का इस्तेमाल लगातार घट रहा है।

मसलन, राजधानी दिल्ली में आज महज 4 फीसद आना-जाना साइकल से किया जाता है। जबकि पचास साल पहले यानी 1957 में यह आंकड़ा 35 फीसद था। रिपोर्ट के मुताबिक, देश के अधिकांश शहरों में साइकल का स्थान आधुनिक वाहन लेने लगे हैं। खासतौर पर शहरों में अन्य दोपहिया और चार पहिया वाहनों की भीड़ है, वहीं साइकल वालों के लिए अतिरिक्त स्थान का बंदोबस्द नहीं किया जा रहा है। ऐसे लोगों की संख्या लगातार कम हो रही है, जिनके पास साइकल है।

दुनिया के अन्य देशों में भी साइकल का चलन कम हुआ है, लेकिन भारत में स्थिति चिंताजनक बताई जा रही है। चीन के शहरों में परिवहन में साइकल का हिस्सा 11 से 47 फीसद तक है।

दो दशक पहले की स्थिति

रिपोर्ट के मुताबिक, दो दशक पहले देश के अधिकांश शहरों में एक तिहाई आना-जाना साइकल पर होता था। 2007 में यह आंकड़ा घटकर 12 फीसद रह गया तथा आगामी वर्षों में इसमें और गिरावट की आशंका है। इसका कारण यह बताया गया है कि शहरों में साइकल चलाने के पक्ष में माहौल बनाने के लिए कोई कवायद नहीं की जा रही है।

यूरोपीय देशों में नया ट्रेंड, पर हम रह गए पीछे

ऐसा नहीं है कि आधुनिक वाहनों का प्रयोग भारत में ही तेजी से बढ़ रहा है। लगभग तमाम देशों में ऐसा है, लेकिन यूरोपीय देशों ने आधुनिक दौर में भी साइकल का महत्व समझा और भीड़-भाड़ वाली सड़कों पर साइकल चालकों के लिए अलग बंदोबस्त किए हैं। अलग ट्रैक बनाए गए हैं, किराए से साइकल देने के लिए नई व्यवस्था की गई है, साइकल की पार्किंग का भी खास ख्याल रखा गया है।

साइकल शेयरिंग की अवधारणा खासतौर पर पसंद की जा रही है। जापान, चीन, अमेरिका, जर्मनी, ब्रिटेन जैसे देशों में यह नई व्यवस्था लोकप्रिय है। पर्यावरण और स्वास्थ्य के प्रति जागरूक लोग अपना रुतबा और रईसी छोड़कर इन साइकलों का इस्तेमाल करते हैं। नीदरलैंड में तो सरकार ने साइकल को बढ़ावा देकर स्वास्थ्य पर होने वाला अपना खर्च घटा लिया।

भारत में बेंगलुरू से शुरू होने के बाद दिल्ली, इंदौर, गुडगांव समेत कई शहरों में साइकिल ट्रैक बनाने की योजनाएं शुरू की गई हैं, लेकिन इनमें कई खामियां हैं।

साइकल चालकों की सड़क पर मौजूदगी

37% चेन्नई

33% पुणे

31% नई दिल्ली

26% हैदराबाद

26% कोलकाता

23% बेंगलुरू

09% मुंबई

साइकल चालकों की मृत्यु

(2011 में हुए कुल हादसों का प्रतिशत)

4% मुंबई

4% दिल्ली

4.1% चेन्नई

7% कोलकाता

7.1% लखनऊ

7.4% सूरत

अलग साइकल ट्रैक के फायदे

दिल्ली में साइकल चालकों की गति 8 किमी/घंटा से बढ़कर 12 किमी/घंटा हो गई

2.5 मिनट बचते हैं हर एक किलोमीटर पर

सड़क हादसों में भी 99 फीसद की कमी

दिल्ली और बेंगलुरू में भी यूरोपीय देशों की तर्ज पर साइकल को बढ़ावा देने की कोशिश की गई है। हालांकि यह उतना अच्छा प्रतिसाद नहीं मिला है। चीन के वुहान और होंगजोउ तो दुनिया के सबसे बड़े शहर हैं, जहां लोग साइकल पर चल रहे हैं। - आरके पचौरी, महानिदेशक, टीईआरआई

अगर लोग साइकल पर चलते हैं तो इससे स्वास्थ्य सुधरेगा। अतिरिक्त चर्बी को निजात पाने में यह बहुत कारगर साबित हो सकता है। इस बारे में उचित योजना बनाने के लिए मैं स्वयं सड़क परिवहन मंत्रालय को लिखूंगा। - डॉ. हर्षवर्धन, केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री

जापान में है अंडरग्राउंड पार्किंग


जापान में साइकलिंग की आदर्श व्यवस्था है। पार्किंग पर खास ध्यान दिया गया है। इस तरह बड़ी संख्या में लोग सड़कों पर चलते हैं, लेकिन कहीं अव्यवस्था नहीं होती। पूरे सिस्टम को ईसीओ साइकल सिस्टम नाम दिया गया है। (देखें फोटो)

दुनिया के श्रेष्ठ बायसिकल फ्रेंडली शहर

हेमबर्ग (जर्मनी), पेरिस (फ्रांस), बार्सिलोना (स्पेन), रियो डी जेनेरियो (ब्राजील), नागोया (जापान), मॉन्ट्रियल (कनाडा), म्यूनिख (जर्मनी), टोक्यो (जापान), वॉशिंगटन (अमेरिका), डब्लिन (आयरलैंड), बर्लिन (जर्मनी)