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राजकोषीय घाटे को नियंत्रित करने की चुनौती-- जयंतीलाल भंडारी

इस समय देश के समक्ष चालू वित्तीय वर्ष 2018-19 के दौरान बढ़े हुए राजकोषीय घाटे की चिंताएं मुंह बाए खड़ी हैं। वित्तीय वर्ष 2018-19 के बजट में राजकोषीय घाटे का लक्ष्य 6.24 लाख करोड़ रुपये या सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) का 3.3 प्रतिशत रखा गया था। नवंबर, 2018 के अंत तक यह 7.17 लाख करोड़ रुपये पर पहुंच गया है, जो बजट अनुमान से करीब 15 प्रतिशत ज्यादा है। इसका मतलब यह है कि सरकार को लक्ष्य पूरा करने के लिए राजकोषीय अधिशेष की जरूरत होगी।

लेकिन इस समय कच्चे तेल की कीमतें 60 डॉलर प्रति बैरल से नीचे जाने तथा डॉलर की तुलना में रुपए के 70 के स्तर पर पहुंचने से अर्थव्यवस्था की स्थिति में सुधार आया है। लेकिन चालू वित्तीय वर्ष 2018-19 के पिछले 9 माह में जो राजस्व और राजकोषीय घाटा ऊंचाई पर पहुंच गया है, उसे पाटा जाना मुश्किल है। पिछले दिनों भारतीय स्टेट बैंक की शोध शाखा ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि प्रत्यक्ष कर (डायरेक्ट टैक्स) एवं वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) संग्रह लक्ष्य से कम रहने के कारण सरकार की इस वित्त वर्ष 2018-19 में खर्च करने की क्षमता पर असर पड़ेगा और निर्धारित राजकोषीय घाटा जीडीपी के 3.3 फीसदी के स्तर पर बनाए रखने के लिए इस वित्त वर्ष में सरकार को 700 अरब रुपए के लगभग पूंजीगत व्यय में कमी करनी होगी जो कि वित्त वर्ष 2018-19 के कुल पूंजीगत व्यय का एक-चौथाई है। पूंजीगत व्यय में ऐसी कमी करना बहुत कठिन है। पूंजीगत व्यय में कमी किए जाने का सबसे नकारात्मक असर सड़क तथा बुनियादी ढांचा क्षेत्र पर पड़ेगा।

 


यकीनन बढ़ते हुए राजकोषीय घाटे से आम आदमी से लेकर अर्थव्यवस्था तक की मुश्किलें लगातार बढ़ी हैं। चालू वित्त वर्ष 2018-19 में जहां एक ओर सरकारी आमदनी लक्ष्य के अनुरूप नहीं है वहीं दूसरी ओर सरकारी खर्च लक्ष्य से अधिक बढ़ते गए हैं। परिणामस्वरूप सरकार के समक्ष राजकोषीय घाटे का लक्ष्य पूरा करना एक कठिन चुनौती है। स्पष्ट है कि चालू वित्तीय वर्ष में प्रत्यक्ष कर एवं अप्रत्यक्ष कर संग्रह लक्ष्य से नीचे है। विनिवेश लक्ष्य प्राप्ति से दूर है। तेल सब्सिडी व अनाज सब्सिडी का अतिरिक्त बोझ स्पष्ट दिखाई दे रहा है। निश्चित रूप से सुस्त जीएसटी संग्रह और अतिरिक्त व्यय प्रतिबद्धताओं की वजह से सरकार नाजुक संतुलन स्थापित करने का मुश्किल भरा काम कर रही है। अनुमान है कि अगर सरकार व्यय में बहुत ज्यादा कटौती नहीं करती है तो राजकोषीय घाटा जीडीपी के 3.5 प्रतिशत तक पहुंच सकता है।

 

 


निश्चित रूप से चालू वित्तीय वर्ष 2018-19 में सरकार की आमदनी और व्यय वैश्विक स्तर पर कच्चे तेल की बढ़ी हुई कीमतों और डॉलर की तुलना में रुपये की कीमतों में भारी गिरावट से प्रभावित हुई है। केंद्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड (सीबीडीटी) के चेयरमैन सुशील चंद्रा ने प्रत्यक्ष कर संग्रह की वृद्धि दर को लेकर सावधानी बरतने को कहा है और साथ ही यह भी कहा है कि यह बजट अनुमानों पर विपरीत असर डाल सकता है। सीबीडीटी के आंकड़ों से पता चलता है कि सरकार ने अप्रैल से दिसंबर 2018 के दौरान कुल 7.43 लाख करोड़ रुपये आयकर राजस्व जुटाए हैं जो पिछले साल की समान अवधि के दौरान एकत्र किए गए कर से 13.6 प्रतिशत ज्यादा है। जबकि बजट में 14.7 फीसदी वृद्धि का अनुमान लगाया गया था।

 

 


इसी तरह जीएसटी और विनिवेश से आमदनी का निर्धारित लक्ष्य पाना भी मुश्किल है। उपलब्ध आंकड़ों को देखें तो जीएसटी के माध्यम से उम्मीद से 1 लाख करोड़ रुपये कम कर आने की संभावना है। इसके साथ ही अतिरिक्त अनुमानित व्यय 28,000 करोड़ रुपये है। केंद्र सरकार के आंतरिक व्यय अनुमान से पता चलता है कि वर्ष 2018 में मोटे अनाज और दलहन के लिए घोषित न्यूनतम समर्थन मूल्य बाध्यताओं को पूरा करने के लिए 20,000 करोड़ रुपये अतिरिक्त आवंटन की जरूरत होगी। यह बजट में अनुमानित 1.69 लाख करोड़ रुपये खाद्य सब्सिडी के ऊपर होगा। इस साल के लिए ईंधन सब्सिडी 25,000 करोड़ रुपये रखी गई है। चालू वित्तीय वर्ष में पहले आठ महीनों तक कच्चे तेल की कीमत बढ़ी होने के कारण सरकार को इस मद में भी 12,500 करोड़ रुपये अतिरिक्त खर्च करने पड़े। सरकार ने घोषणा की थी कि वह सरकारी विमान कंपनी एयर इंडिया को बजट में घोषित 16,300 करोड़ रुपये धन के अतिरिक्त 2,000 करोड़ रुपये मुहैया कराएगी। वहीं आयुष्मान भारत का बजट 3,500 करोड़ रुपये बढ़ सकता है।

 

 

इसमें कोई दो मत नहीं है कि सरकार ने वैश्विक आर्थिक घटनाक्रम के कारण देश के राजकोषीय घाटे की बढ़ती चिंताएं लगातार अनुभव की हैं। यही कारण है कि वर्ष 2018 में कमजोर हुए रुपये की वजह से सरकार लगातार अपने जमा और खर्च के अकाउंट की समीक्षा करती रही है। इस दौरान कई कम जरूरी खर्चों पर नियंत्रण किया गया और कई क्षेत्रों में आमदनी बढ़ाने का भी प्रयास हुआ है।
 
 
अब सरकार ने वित्त वर्ष 2018-19 के दौरान बचे महीनों में होने वाले गैर जरूरी खर्चों पर लगाम लगाने की रणनीति भी बनाई है। मौजूदा वित्त वर्ष में सरकार अपना उधारी कार्यक्रम पहले ही 70 हजार करोड़ रुपये घटाकर 6.05 लाख करोड़ रुपये कर चुकी है।

 

 


निश्चित रूप से राजकोषीय घाटे को लक्ष्य के अनुरूप सीमित रखने के लिए सरकारी संस्थानों से अतिरिक्त लाभांश की जरूरत होगी। वित्त मंत्रालय भारतीय रिजर्व बैंक से कम से कम 23,100 करोड़ रुपये लाभांश की मांग कर रहा है। व्यय के हिसाब से देखें तो सरकार कुछ लंबित सब्सिडी भुगतान अगले वित्त वर्ष 2019-20 तक टाल सकती है।
 
 
ऐसे में यदि सरकार राजकोषीय घाटे को नियंत्रित करने के विभिन्न प्रयासों से राजकोषीय घाटे को लक्ष्य के अनुरूप जीडीपी के 3.3 फीसदी के स्तर पर बनाए रखने में सफल होगी तो यह सरकार की बड़ी उपलब्धि होगी। ऐसे स्तर पर आम आदमी से लेकर अर्थव्यवस्था को मुश्किलों से राहत मिल सकेगी।

 

लेखक ख्यात अर्थशास्त्री हैं।