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राजनीतिक चंदे में गोरखधंधे को रोकें - ए. सूर्यप्रकाश

कई साल पहले सजग नागरिकों ने बाहुबल और धनबल के रूप में उन दो दुष्टों की पहचान की थी, जो हमारे लोकतंत्र को कलंकित कर रहे हैं। निर्वाचन आयोग की लगातार कोशिशों, सुरक्षा बलों की बड़े स्तर पर तैनाती और लंबी चलने वाली चुनाव प्रक्रिया को बधाई देनी चाहिए जिनसे पहले दुष्ट यानी बाहुबल पर काफी हद तक काबू पा लिया गया है। लेकिन धनबल की समस्या अभी तक चुनावी व्यवस्था का हलाहल बनी हुई है। भारत के पास विलक्षण 81 करोड़ 40 लाख मतदाताओं की जरूरतों को पूरा करने और स्तरीय ईवीएम के जरिए मतदान कराने वाली निर्वाचन आयोग जैसी संस्था है। फिर भी अबाध खर्च तथा मतदाताओं को लुभाने वाले नग्न तरीके न सिर्फ जारी हैं, बल्कि इन्होंने खतरनाक रूप धारण कर लिया है।

निर्वाचन आयोग द्वारा 'राजनीतिक धन और विधि आयोग की सिफारिशों" पर हाल में आयोजित राष्ट्रीय विचार-विमर्श के प्रमुख मुद्दों में से एक मुद्दा था - राजनीतिक दलों की फंडिंग और पार्टियों तथा उम्मीदवारों द्वारा चंदा जमा करने से संबंधित वर्तमान कानून। समस्या कितनी बड़ी है, इसका अंदाजा तब लगाया जा सकता है जब कोई व्यक्ति समझे कि देश में राजनीतिक दलों को मिलने वाले धन का बड़ा हिस्सा अज्ञात स्रोतों से आता है। एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक राइट्स (एडीआर) ने राजनीतिक दलों की फंडिंग पर हालिया अध्ययन में कहा है कि अज्ञात स्रोतों से 20 हजार रुपए से अधिक के चंदे की मात्रा 435.85 करोड़ रुपए या राजनीतिक दलों को मिलने वाले कुल धन का महज नौ प्रतिशत है। अन्य ज्ञात स्रोतों से प्राप्त आय 785.60 करोड़ रुपए यानी 16 प्रतिशत है, लेकिन राजनीतिक दलों द्वारा आय के अज्ञात स्रोतों से एकत्र धन 3674.50 करोड़ रुपए या कुल धन का 75 प्रतिशत है।

जनप्रतिनिधित्व अधिनियम ने उन चंदों की सीमा तय नहीं की है, जो राजनीतिक दल किसी व्यक्ति या संस्था से स्वीकार कर सकते हैं। वैसे अन्य कानूनी प्रावधान राजनीतिक दलों और संस्थाओं पर कुछ अंकुश लगाते हैं। मसलन, पार्टियों द्वारा एकत्र किए जाने वाले धन की कोई ऊपरी सीमा नहीं है, लेकिन कोई कंपनी राजनीतिक दलों को पिछले तीन सालों के औसत शुद्ध लाभ के 7.5 प्रतिशत से अधिक धन चंदे के तौर पर नहीं दे सकती।

इसी तरह एक कानून राजनीतिक दलों को मिलने वाले विदेशी चंदों पर रोक लगाता है। अन्य लोकतांत्रिक देशों के कानून में भी इस तरह के प्रतिबंध हैं। इस मुद्दे की जांच कर चुनाव सुधारों पर अपनी 255वीं रिपोर्ट में भारत के विधि आयोग ने पाया है कि ब्रिटेन में राजनीतिक दलों को व्यक्तिगत या कंपनी के चंदों की सीमा नहीं है, लेकिन वहां भी विदेशी चंदे पर प्रतिबंध है। जापान में भी विदेशी चंदों पर रोक है। दूसरी तरफ, ऑस्ट्रेलिया में व्यक्तियों या कंपनियों पर इस तरह की सीलिंग नहीं है। न ही विदेशियों, ट्रेड यूनियनों या सरकारी ठेकेदारों से चंदा लेने पर कोई प्रतिबंध है। वैसे कानून बेनामी चंदों पर रोक लगाता है। विधि आयोग ने पाया है कि फिलीपींस में राजनीतिक चंदे पर कई तरह के प्रतिबंध हैं। वहां राजनीतिक दलों और उम्मीदवारों पर 'कॉरपोरेट, विदेशी हितों, बेनामी चंदा देने वालों, अन्य वित्तीय संस्थाओं, सरकारी मदद प्राप्त करने वाली शैक्षणिक संस्थाओं और नागरिक सेवा या सशस्त्र बलों के अफसरों/कर्मचारियों से" चंदे लेने पर रोक है।

राजनीतिक दलों को कॉरपोरेट से चंदा लेने पर भारत में पहले प्रतिबंध था। बाद में चंदे की अनुमति के लिए कानून में संशोधन किया गया, लेकिन जैसा कि ऊपर कहा गया है, इसमें सीमा निर्धारित की गई। जापान में पीएफसीए राजनीतिक दलों को कॉरपोरेट चंदे पर सीमा लगाता है। इस कानून का एक हिस्सा यह है कि पिछले वर्षों में लाल घेरे में रही कंपनियां राजनीतिक दलों को चंदा नहीं दे सकतीं।

राजनीतिक फंडिंग पर एडीआर का विश्लेषण स्थिति की गंभीरता को दिखाता है और जब तक इसे दूर नहीं किया जाता है, स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव के दावे कम विश्वसनीय कहे जाएंगे। जनप्रतिनिधित्व अधिनियम (आरपीए) की धारा 29सी में गड़बड़ी का मुख्य स्रोत है जिसमें किसी पार्टी को 20 हजार रुपए या इससे कम चंदा देने वाला व्यक्ति अज्ञात रह सकता है। राजनीतिक दलों को इस छेद का दोहन करने में कोई पछतावा नहीं है। वे इस तरह के छोटे चंदों का अपने पार्टी फंड में बड़ा अंशदान दिखाते हैं।

वस्तुत: यह रास्ता राजनीतिक दलों के खजाने और इस तरह चुनावी व्यवस्था में बड़ी मात्रा में काले धन को सुलभ बनाता है। कानून से बचने के लिए राजनीतिक दल दिखाते हैं कि उन्होंने एक ही व्यक्ति से कई बार 20 हजार रुपए का चंदा लिया है। चुनाव सुधारों पर अपनी हालिया रिपोर्ट में विधि आयोग ने यह कहते हुए इस धारा में संशोधन की सिफारिश की है कि अगर किसी व्यक्ति का चंदा एक साल में 20 हजार से अधिक होता है तो संबंधित दल उसका नाम बताने को बाध्य होगा। एक अन्य संशोधन कहता है कि किसी वित्तीय वर्ष में 20 हजार रुपए से कम के चंदे जब कुल मिलाकर 20 करोड़ रुपए या कुल चंदे के 20 प्रतिशत, जो भी कम हो, हो जाएं तो राजनीतिक दल को इस तरह के चंदा दाताओं के नाम उजागर करने होंगे।

इसी तरह, आयोग ने चुनाव खर्च पर अपना ध्यान केंद्रित किया है और हर चुनाव के 75 दिनों के अंदर चुनाव खर्च का विवरण हर राजनीतिक दल को जमा करने के लिए बाध्य करने के लिहाज से और संशोधन करने की सिफारिश की है। इस बात पर भी जोर देने को कहा है कि राजनीतिक दलों द्वारा किए जाने वाले सभी चुनावी खर्च के भुगतान चेक या ड्राफ्ट से ही किए जाएं, नगद नहीं। विधि आयोग की इन सिफारिशों का राष्ट्रीय विचार-विमर्श के दौरान सभी ने पूरी तरह समर्थन किया।

अगर सरकार भ्रष्टाचार से निपटने के लिए सचमुच प्रतिबद्ध है तो उसे राजनीतिक फंडिंग से शुरुआत करनी चाहिए जो भ्रष्टाचार की गंगोत्री है। सरकार को जनप्रतिनिधित्व अधिनियम में तुरंत संशोधन करना चाहिए। यह स्वच्छ भारत का अलग आयाम होगा!

-लेखक प्रसार भारती के अध्‍यक्ष हैं