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रोजी-रोजगार का हाहाकार-- अनिल रघुराज

बिगाड़ना बड़ा आसान है, बनाना बहुत मुश्किल. इसी तरह रोजगार मिटाना बहुत आसान है, जबकि रोजगार बनाना बहुत मुश्किल. अगर ऐसा न होता, तो हर साल दो करोड़ नये रोजगार पैदा करने का वादा करनेवाली मोदी सरकार अपने आधे कार्यकाल तक कम-से-कम पांच करोड़ रोजगार तो पैदा ही कर चुकी होती. लेकिन, सरकार का श्रम ब्यूरो बताता है कि देश में रोजगार देनेवाले आठ प्रमुख उद्योग क्षेत्रों में अप्रैल से दिसंबर 2014 के दौरान 4.57 लाख, जनवरी से दिसंबर 2015 के दौरान 1.35 लाख और जनवरी से दिसंबर 2016 के दौरान 1.50 लाख रोजगार जोड़े गये हैं.


यानी, कुल मिला कर अब तक रोजगार के 7.42 लाख नये अवसर बने हैं, जो वादे का बमुश्किल डेढ़ प्रतिशत ठहरता है.ऐसे में वित्त मंत्री अरुण जेटली से बड़ी अपेक्षा थी कि वे बजट में रोजगार के बारे में जरूर कुछ ठोस बोलेंगे और करेंगे. बोलने में कोई कमी नहीं है. लेकिन, करने को लेकर भाजपा से जुड़े भारतीय मजदूर संघ तक ने अफसोस जताया है. उसका कहना है कि नोटबंदी के चलते असंगठित क्षेत्र की करीब ढाई लाख छोटी इकाइयां बंद हो गयीं. एक इकाई में पांच मजदूर भी गिनें, तो इससे 7.5 लाख मजदूर बेरोजगार हो गये. लेकिन, वित्त मंत्री ने बजट में इसका जिक्र तक नहीं किया और ऐसे लाखों मजदूरों की राहत के लिए कोई स्कीम नहीं पेश की.


इस बीच प्रधानमंत्री मोदी से लेकर भाजपा अध्यक्ष अमित शाह तक चुनावी सभाओं में डंका पीट रहे हैं कि रोजगार उनकी सरकार की पहली प्राथमिकता है. प्रश्न है कि यह कैसी प्राथमिकता है कि सरकार ने 31 महीनों में जितने रोजगार पैदा किये, उससे ज्यादा उसकी एक नीति ने मात्र दो महीने में छीन लिये. जितना बनाया, उससे ज्यादा बिगाड़ दिया. इस कड़वी हकीकत को देखते हुए परखना जरूरी है कि वित्त मंत्री ने बजट में जो घोषणाएं की हैं, उनसे रोजगार में कितनी वृद्धि हो सकती है.


बजट से एक दिन पहले आये आर्थिक सर्वे में कहा गया था कि टेक्सटाइल, खासकर परिधान क्षेत्र में रोजगार पैदा करने के भरपूर अवसर हैं. इसमें एक लाख रुपये का निवेश 23.9 नौकरियां पैदा करता है. वैसे तो बजट में प्रधानमंत्री परिधान रोजगार प्रोत्साहन योजना के लिए 200 करोड़ रुपये का प्रावधान किया है, लेकिन टेक्सटाइल क्षेत्र का आवंटन 2016-17 के संशोधित अनुमान 6286.10 करोड़ रुपये से घटा कर 6226.50 करोड़ रुपये कर दिया गया है.


इसमें भी किसानों से कपास खरीदने से संबंधित कॉटन कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया की मूल्य समर्थन स्कीम का आवंटन 609.75 करोड़ रुपये से घटा कर मात्र एक लाख रुपये कर दिया गया है. इससे नये वित्त वर्ष में कपास की कीमतों में काफी उठापटक हो सकती है, जिसका खामियाजा टेक्सटाइल क्षेत्र को भुगतना पड़ेगा.


आर्थिक सर्वे में रोजगार देने के मामले में चमड़ा उद्योग की भी तारीफ की गयी थी. लेकिन, बजट में बस इतना कहा गया कि चमड़ा व फुटवियर उद्योग में रोजगार पैदा करने के लिए विशेष स्कीमें लायी जायेंगी.


कब और कैसे, इसकी कोई जानकारी नहीं दी गयी. यूं तो वित्त मंत्री और प्रधानमंत्री महोदय सिंचाई जैसे कार्यक्रम में भी रोजगार पैदा करने का तड़का लगा रहे हैं. लेकिन, इस बार प्रधानमंत्री रोजगार सृजन कार्यक्रम का आवंटन 2016-17 के 1120 करोड़ रुपये के संशोधित अनुमान से घटा कर 1024 करोड़ रुपये कर दिया गया है. बजट में अफोर्डेबल हाउसिंग की बात बार-बार की गयी. लेकिन, हाउसिंग व शहरी गरीबी उन्मूलन मंत्रालय में रोजगार पैदा कर सकनेवाले पूंजी खर्च के लिए एक भी धेला नहीं रखा गया है. हां, पुराने तंत्र को चलाते रहने का राजस्व खर्च जरूर 5285 करोड़ रुपये से बढ़ा कर 6406 करोड़ रुपये कर दिया गया है.


सरकार का दावा है कि कौशल विकास से रोजगार के भारी अवसर पैदा किये जा सकते हैं. सवाल उठता है कि जिनके पास पहले से हुनर है, उनकी रोजी बचाने के लिए क्या किया जा रहा है.


दूसरे, केंद्र सरकार के 20 अलग-अलग मंत्रालय कौशल बढ़ाने के करीब 70 कार्यक्रम चला रहे हैं. इनमें से किसको पकड़े, किसको छोड़े! साल 2015 में सरकार ने स्किल इंडिया मिशन शुरू किया, तो दावा किया कि अगले सात साल में 40 करोड़ भारतीयों को रोजगार पाने लायक बना देंगे. पहले साल इस मिशन में 17.6 लाख लोग शामिल हुए. इसमें से भी 5.8 लाख ने कोर्स पूरा किया और उसमें से भी केवल 82,000 लोग काम करने लायक पाये गये. यह है इस मिशन का यथार्थ.


बजट में वित्त मंत्री ने घोषणा की है कि सबसे ज्यादा रोजगार दे रहे एमएसएमइ क्षेत्र को प्रोत्साहित करने के लिए 50 करोड़ रुपये तक के सालाना टर्नओवर वाली कंपनियों पर इनकम टैक्स की दर घटा कर 30 से 25 प्रतिशत कर दी जायेगी. उन्होंने बताया कि रिटर्न दाखिल करनेवाली 6.94 लाख कंपनियों में से 6.67 लाख यानी 96 प्रतिशत कंपनियां इस श्रेणी में आती हैं.


लेकिन, इस घोषणा का यथार्थ यह है कि रिटर्न दाखिल करनेवाली 6.94 लाख कंपनियों में केवल 2.85 लाख कंपनियां ही लाभ कमाती और टैक्स देती हैं. इसमें से 96 प्रतिशत यानी 2.74 लाख कंपनियों की ही टैक्स घटाने का लाभ मिलेगा. वित्त मंत्री यह हकीकत छिपा गये कि एमएसएमइ क्षेत्र का अधिकांश हिस्सा कंपनियों का नहीं, बल्कि प्रॉपराइटरी व पार्टनरशिप फर्मों का है.


सरकार मनरेगा से अच्छा खेल रही है. लेकिन, याद करें कि भाजपा ने 2014 के चुनाव घोषणापत्र में कहा था कि वह अपने आर्थिक मॉडल में रोजगार के ज्यादा से ज्यादा अवसर उपलब्ध कराने को तवज्जो देगी. दिक्कत यह है कि जो अवसर उपलब्ध हैं, उन तक की स्थिति दयनीय है. सरकारी तंत्र की रिक्तियां सालों-साल से नहीं भरी जा रहीं. देश में शिक्षकों से लेकर डॉक्टरों तक की भारी कमी है. न्यायपालिका, कार्यपालिका और विधायी तंत्र में जरूरी पद खाली पड़े हैं.


इसकी तस्दीक के लिए बस एक उदाहरण काफी है. संसद की लाइब्रेरी व रिसर्च शाखा में स्वीकृत स्टाफ की संख्या 231 है, जबकि वहां केवल 176 लोगों को काम पर रखा गया है. जिस संसद में हमारे जन-प्रतिनिधि बैठते हैं, जहां खुद प्रधानमंत्री और तमाम मंत्रीगण विराजते हैं, वहां दीया तले अंधेरा होने की कहावत का इस तरह चरितार्थ होना अपने-आप में बहुत कुछ कह जाता है.