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लहसुन की माला और नाड़े से कर रहे कुपोषण का इलाज!

खंडवा। सुमित अवस्थी। कम वजन के बच्चे, खांसी और बुखार से ग्रसित लेकिन डॉक्टरी इलाज की जगह झाड़-फूंक पर भरोसा। किसी बच्चे के गले में लहसुन की माला तो किसी के पीपल के पत्ते। किसी को मतरा हुआ पानी दिया जा रहा है तो कोई नाड़ा बांधे हुए है। पिछले 45 दिन में चार बच्चों की मौत के बाद भी कुपोषित बच्चों को न तो मां-बाप बाल शक्ति केंद्र ला रहे हैंष न ही शासकीय अमला इसमें गंभीरता दिखा रहा है।

ये हालात हैं आदिवासी बहुल विकासखंड खालवा के कई गांवों का। ग्राम आंवलिया में 22 माह की शिवानी का वजन महज 7 किलो है, वहीं छोटी बहन 14 माह की राजनंदनी पांच किलो की है। आयु के अनुसार दोनों बहनों का वजन 3 से 4 किलो कम है।

दोनों खांसी और बुखार से ग्रसित हैं लेकिन पिता रामदास और मां उर्मिला उन्हें अस्पताल नहीं ले जा रहे हैं। बेटियों के गले में लहसुन की माला और नाड़ा बांध दिया है। गांव की 'पड़िहाल" से उनकी झाड़-फूंक कराई जा रही है। आंगनवाड़ी कार्यकर्ता के अनुसार दोनों बालिकाओं को खालवा रेफर किया गया है लेकिन पड़िहाल के कहने पर वे कुपोषित बालिकाओं को मतरा हुआ पानी पिला रहे हैं।

ऐसे ही हालात अन्य ग्रामीण क्षेत्रों में है। ग्राम रायपुर में 18 माह की अंजली पिता राजेश का वजन महज 7 किलो है। ग्राम सेंधवाल में 17 माह के विजय पिता रामू का वजन 5 किलो है, उसकी मां बड़े बेटे अजय को खालवा के बाल शक्ति केंद्र ले गई है लेकिन विजय को उपचार नहीं मिल पाया है। इसी तरह ग्राम रेहटिया में 5 वर्ष की सुमित्रा पिता अनोखीलाल का वजन 11 किलो है लेकिन आगंनवाड़ी कार्यकर्ताओं की समझाइश के बावजूद परिजन अस्पताल नहीं ले जा रहे।

100 से अधिक कुपोषित एनआरसी में भर्ती

खंडवा, खालवा और रोशनी के एनआरसी सेंटर में मौजूदा स्थिति में 100 से अधिक कुपोषित बच्चे भर्ती हैं। केवल खालवा के एनआरसी सेंटर में एक साल में 477 कुपोषित बच्चे भर्ती हुए हैं। खालवा क्षेत्र में तीन हजार से अधिक बच्चे अंडर वेट हैं। खालवा के 167 गांव में 313 आंगनवाड़ी पांच स्वास्थ्य केंद्र, 50 उपस्वास्थ्य केंद्र, 42 एएनएम और 57 आशा कार्यकर्ता हैं।

कुपोषण के कारण

कुपोषित तंत्र - कुपोषण के दूर नहीं होने का बड़ा कारण सरकारी तंत्र का कुपोषित होना है। कई गावों में साल में एक बार भी सरकारी डॉक्टर नहीं पहुंचते।

अंधविश्वास - खालवा में बच्चे के बीमार होने पर उसे स्वास्थ्य केंद्र लाने की जगह चचुआ, झड़वाने और धागा बंधवाने में विश्वास ।

अशिक्षा - खालवा क्षेत्र में कुपोषण दूर नहीं होने का एक कारण अशिक्षा भी है। यहां की आबादी का बड़ा हिस्सा शिक्षित नहीं है।

पलायन - खालवा में रोजगार नहीं होने के कारण लोग पलायन कर दूसरे राज्य जाते हैं। इस दौरान छोटे बच्चों को पोषण आहार नहीं मिल पाता।

महिलाओं में पोषण की कमी - खालवा में महिलाओं कैल्शियम और आयरन की कमी के लक्षण मिलते हैं। इसका असर भी बच्चों पर पड़ता है और वे कुपोषित होते हैं।