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लालू यादव को SC से झटका, जानें क्या है 950 करोड़ का चारा घोटाला

मल्टीमीडिया डेस्क। चारा घोटाला एक बार फिर से बिहार की राजनीति में फन फैलाए खड़ा है। इसकी वजह सोमवार को सुप्रीम कोर्ट का वह आदेश है जिसमें कोर्ट ने सीबीआई की उस दलील को माना है जिसमें निचली अदालत द्वारा कुछ धाराओं को हटाने का आदेश दिया था। सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में साफ कर दिया है कि लालू यादव पर पूर्व में लगी सभी धाराओं पर अलग-अलग मुकदमा चलाया जाएगा। इसके बाद उनका जेल जाना भी तय माना जा रहा है। कोर्ट के इस आदेश के बाद बिहार की राजनीति का पारा चढ़ता हुआ दिखाई दे रहा है।

लालू की राजनीति पर लगा ग्रहण

वर्ष 1996 में सामने आए इस घोटाले की बदौलत ही लालू या‍दव का बिहार की राजनीति में कद कम हुआ था और उन्‍हें अपने सीएम पद को छोड़ना पड़ा था। उन्‍होंने इस पद से इस्‍तीफा देने के बाद अपनी पत्‍नी राबड़ी देवी को कुर्सी पर बिठाया था। इस मामले में सीबीआई की विशेष अदालत ने उन्‍हें दोषी करार देते हुए 3 अक्टूबर 2013 को पांच साल के कारावास की सजा सुनाई, साथ ही उन पर 25 लाख रुपए का जुर्माना भी लगाया गया था। दिसंबर 2013 में उन्‍हें कोर्ट से जमानत भी मिल गई थी जिसके बाद उन्‍हें रांची की बिरसा मुंडा जेल से रिहा कर दिया गया।

संसद से अयोग्‍य ठहराए जाने वाले पहले राजनेता

सजा पाने के बाद संसद से अयोग्‍य ठहराए जाने वाले वह देश के पहले राजनेता भी हैं। इतना ही नहीं इस घोटाले की बदौलत ही उनके करीब 11 वर्षों तक किसी भी तरह के चुनाव में शामिल होने पर प्रतिबंध लगा दिया गया था। कोर्ट ने इस मामले में जदयू नेता जगदीश शर्मा को भी दोषी ठहराया था। चारा घोटाले ने बिहार की राजनीति में भूचाल लाकर रख दिया था और राज्‍य की अर्थव्‍यवस्‍था को भी बेपटरी कर दिया था।

पशुओं के चारे के नाम पर हुई थी 950 करोड़ रुपए की निकासी

बिहार पुलिस ने 1994 में राज्य के गुमला, रांची, पटना, डोरंडा और लोहरदगा जैसे कई कोषागारों से फर्जी बिलों के जरिये करोड़ों रुपए की कथित अवैध निकासी के मामले दर्ज किए। रातों-रात सरकारी कोषागार और पशुपालन विभाग के कई कर्मचारी गिरफ्तार किए गए थे। इसके अलावा कई ठेकेदारों और सप्लायरों को हिरासत में लिया गया और पूरे राज्य में दर्जन भर आपराधिक मुकदमे दर्ज किए गए थे। लेकिन 1996 में इस घोटाले का पूरा खुलासा हुआ और इसमें बिहार की राजनीति के बड़े बड़े दिग्‍गज लपेटे में आ गए। यह बिहार में सबसे बड़ा घोटाला था जिसमें पशुओं को खिलाए जाने वाले चारे के नाम पर 950 करोड़ रुपए की निकासी सरकारी खजाने से फर्जीवाड़ा करके की गई थी।

जानिए चारा घोटाला मामले में कब-क्या हुआ

जनवरी, 1996

उपायुक्त अमित खरे ने पशुपालन विभाग के दफ्तरों पर छापा मारा और ऐसे दस्तावेज जब्त किए जिनसे पता चला कि चारा आपूर्ति के नाम पर अस्तित्वहीन कंपनियों द्वारा धन की हेराफेरी की गई है, जिसके बाद चारा घोटाला सामने आया।

11 मार्च, 1996

पटना उच्च न्यायालय ने केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) को इस घोटाले की जांच का आदेश दिया, उच्चतम न्यायालय ने इस आदेश पर मुहर लगाई।

27 मार्च, 1996

सीबीआई ने चाईंबासा खजाना मामले में प्राथमिकी दर्ज की।

23 जून, 1997

सीबीआई ने आरोप पत्र दायर किया और लालू प्रसाद यादव को आरोपी बनाया।

30 जुलाई, 1997

राष्ट्रीय जनता दल (राजद) के प्रमुख लालू प्रसाद ने सीबीआई अदालत में आत्मसमर्पण किया. अदालत ने उन्हें न्यायिक हिरासत में भेजा।

5 अप्रैल, 2000

विशेष सीबीआई अदालत में आरोप तय किया।

5 अक्टूबर, 2001

उच्चतम न्यायालय ने नया राज्य झारखंड बनने के बाद यह मामला वहां स्थानांतरित कर दिया।

फरवरी, 2002

रांची की विशेष सीबीआई अदालत में सुनवाई शुरू हुई।

13 अगस्त, 2013

उच्चतम न्यायालय ने इस मामले की सुनवाई कर रही निचली अदालत के न्यायाधीश के स्थानांतरण की लालू प्रसाद की मांग खारिज की।

17 सितंबर, 2013

विशेष सीबीआई अदालत ने अपना फैसला सुरक्षित रख लिया।

30 सितंबर, 2013

बिहार के दो पूर्व मुख्यमंत्रियों- लालू प्रसाद और जगन्नाथ मिश्र तथा 45 अन्य को सीबीआई न्यायाधीश प्रवास कुमार सिंह ने दोषी ठहराया।

3 अक्टूबर, 2013

सीबीआई अदालत ने लालू यादव को पांच साल के कारावास की सजा सुनाई, साथ ही उन पर 25 लाख रुपए का जुर्माना भी किया है। लालू यादव को रांची की बिरसा मुंडा जेल में बंद किया गया था।