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लाह की खेती से बेड़ाडीह में आयी खुशहाली

रांची के नामकुम प्रखंड की हहाप पंचायत का घने जंगलों के बीच बसा बेड़ाडीह गांव के लोग पहाड़ी-पथरीली भूमि पर थोड़ी-बहुत खेती कर व कुछ वनोपज तैयार कर अपनी जीविका चलाते रहे हैं. अन्य वनोपज की तरह वे लाह का भी उत्पादन करते रहे हैं, लेकिन तकनीक व वैज्ञानिक सोच के अभाव में ग्रामीणों में इससे आर्थिक समृद्धि नहीं आयी. किसी तरह लोग अपना गुजर-बसर कर लेते थे. पर, नामकुम स्थिल लाह एवं गोंद संस्थान के सेवानिवृत्त वैज्ञानिक यज्ञदत्त मिश्र के सहयोग व मागदर्शन से इन किसानों के दिन बहुरने लगे हैं. बेड़ाडीह को एनएआइपी परियोजना के तहत लाह के बीज ग्राम के रूप में विकसित किया जा रहा है.


पिछले साल यहां के किसानों ने एक साथ तीन ट्रक लाह छत्तीसगढ़ भेजा था. लाह की कमाई का असर है कल तक पैसों की कमी झेलने वाले यहां के लगभग 10 किसानों ने दो साल में ही मोटरसाइकिल खरीद ली है. इससे इस सुदूरवर्ती गांव से शहर जाने में सुविधा हो गयी. हहाप के मुखिया रमेश मुंडा बताते हैं कि पिछले साल लाह की खेती से पांच किसानों ने एक साथ एक ही दिन पांच पैशन मोटरसाइकिल खरीदी. बेड़ाडीह के किसान मनपुरन सिंह मुंडा ने 12 किलो लाह बीज से खेती शुरू की थी. पिछले साल इन्होंने पांच क्विंटल लाह का उत्पादन किया था, जिसकी कीमत लगभग दो लाख रुपये होती है. वहीं किसान दयानंद ने साढ़े चार क्विंटल लाह का उत्पादन किया.


बेड़ाडीह के 100 किसानों को मिला कर इसे लाह बीज ग्राम के रूप में विकसित किया जा रहा है. इस कार्य में नाबार्ड आर्थिक सहयोग दे रहा है व नेचर कंजरवेशन सोसाइटी के द्वारा यह परियोजना संचालित की जा रही है. लाह एवं गोंद संस्थान, नामकुम के सेवानिवृत्त लाह कृषि वैज्ञानिक यज्ञदत्त मिश्र व तकनीकी सहयोगी सुधा कुमारी प्रजापति किसानों को बेहतर ढंग से लाह उत्पादन की जानकारी देते हैं. इस परियोजना से पहले यहां का एक किसान मुश्किल से पांच से दस हजार रुपये प्रति माह लाह से कमाई कर पाता था, वहीं अब वे कई क्विंटल लाह का उत्पादन कर रहे हैं. यहां के किसानों की सफलता देख पड़ोसी गांव के किसान भी लाह की खेती करने में रुचि ले रहे हैं. यहां के किसान पड़ोसी गांव के किसानों को वैज्ञानिक विधि से लाह की खेती करने में सहयोग देते हैं. स्प्रे मशीन, बीज आदि उपलब्ध कराते हैं और उससे उन्हें आत्मनिर्भर तो बनाते ही हैं, खुद भी कमाई कर लेते हैं. ऐसे गांवों में उलातू, सिंगलसराय, ककड़ा, कोचड़ो, डुडुरदाग आदि शामिल हैं.


स्थानीय किसान बरसात के दिनों में बैर के पेड़ पर और गरमी के दिनों में कुसुम के पेड़ पर लाह की खेती करते है. बेड़ाडीह के आसपास 500 कुसुम के पेड़ हैं, जबकि बैर के पेड़ हजारों में हैं. बैर के पेड़ पर जुलाई में और कुसुम के पेड़ पर फरवरी में लाह चढ़ाया जाता है. हालांकि कई बार किसानों के द्वारा कच्च लाह बेच दिये जाने के कारण दिक्कतें आती हैं. जैसा कि यज्ञदत्त मिश्र बताते हैं : किसानों के साथ कई तरह की दिक्कतें होती हैं, कई बार उन्हें तुरंत पैसे चाहिए होता है, ऐसे में वे कच्च लाह बेचकर ही नकद रुपये पा लेते हैं, जिससे लाह की खेती को नुकसान पहुंचता है.


जैसे बगल के पहाड़टोली के किसानों को लाह की बीज दिया गया था, लेकिन उन लोगों ने कच्च लाह ही उतार का बेच दिया. हालांकि किसानों को इस प्रवृत्ति से बचने की सलाह दी जाती है. जानकार बताते हैं कि कुसुम के पेड़ पर लाह ज्यादा मात्र में होती है. एक पेड़ से डेढ़ से दो क्विंटल तक लाह का उत्पादन हासिल किया जा सकता है. लाह को लोग प्राकृतिक प्लास्टिक भी कहते हैं. यहां के कुछ किसानों ने फलदार पेड़ भी लगाया है. जैसा कि लाह की खेती करने वाले फगुआ मुंडा कहते हैं : हमलोगों ने आम व लीची के पौधे भी लगाये हैं. लाह की खेती से स्थानीय किसानों का आत्मविश्वास भी मजबूत हुआ है.


इन्होंने खरीदी मोटरसाइकिल

लाह की कमाई से पिछले ढाई वर्ष में यहां के कई किसान लखपति हो गये. मनपुरन सिंह मुंडा, जाैरा, दयानंद सिंह मुंडा, छोटूराय, करम सिंह, सूरजय, चंद्रपाल आदि ऐसे किसान हैं, जिन्होंने मोटरसाइकिल खरीदी.


ऐसे हुई शुरुआत

हहाप पंचायत में लाह की खेती की शुरुआत 2011 के फरवरी में हुई. लाह एवं गोंद संस्थान, नामकुम की ओर से प्रायोजित नेशनल एग्रीकल्चर इनोवेशन प्रोग्राम (एनएनआइपी) व नाबार्ड के वित्तीय सहयोग से हहाप के शशिभूषण सिंह मुंडा को 10 किग्रा लाह बीज दिया दिया गया. शशिभूषण ने उस 10 किग्रा बीज से 500 किग्रा बीज तैयार कर लिया है. बेड़ाडीह को फोकस कर काम आगे बढ़ाया गया.


लाह का उपयोग

लाह बहुउपयोगी है. इसका उपयोग लकड़ी के फर्नीचर के लिए फ्रेंच पॉलिस बनाने में होता है. दवाओं के ऊपर कोटिन चढ़ाने व एन कैप्सूलेशन में, चॉकलेट पर कवर चढ़ाने में, फास्ट फूड पर कवर चढ़ाने में, रक्षा उत्पाद बनाने में इसका उपयोग होता है. इससे मक्खियां इसे प्रदूषित नहीं कर पातीं. कीमती रसायन, डियोड्रेंट, सुगंधित प्रसाधन बनाने में इसका उपयोग होता है. लाह का उपयोग करने से खुशबू अधिक दिनों तक रहती है. फसलों के कीटनाशक बनाने में इसका उपयोग किया जाता है. इससे बनाये जाने वाला कीटनाशक की गंध मादा कीड़ों से निकलने वाली सुगंध जैसी होती है, जिससे नर कीड़े इस ओर आकर्षित होते हैं. इस कारण इनका प्रजनन रूक जाता है. लाह का उपयोग कर बनाये जाने वाले उत्पाद महंगे होते हैं. इसलिए भारत में उत्पादित दो तिहाई लाह धनी देशों में निर्यात कर दिया जाता है. झारखंड अकेल देश का दो तिहाई लाह का उत्पादन करता है. छत्तीसगढ़ भी इस क्षेत्र में आगे बढ़ रहा है.