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लेबर की कमी होने से मजदूरी दो वर्षों में दोगुनी- शमशेर सिंह

रियल स्टेट डेवलपरों को नकदी के अभाव से भी बड़ी समस्या फिलहाल मजदूरों  की कमी लग रही है। मनरेगा की शुरुआत से यह संकट लगातार बढ़ता जा रहा है। मजदूरों की कमी के साथ ही इनकी मजदूरी में भी काफी तेजी से बढ़ोतरी हो रही है। आज हालात यह है कि मजदूरों की कमी प्रोजेक्ट में देरी की एक वजह बनती जा रही है।  मजदूरों की किल्लत के चलते उनकी मजदूरी पिछले दो वर्षों में दोगुनी हो गई है।

मनरेगा की शुरुआत सितंबर 2005 में हुई थी। इसकी वजह से ग्रामीण मजदूरों का पलायन शहरी क्षेत्रों की ओर धीरे-धीरे कम होना शुरू हो गया । रियल स्टेट पर इसका असर पिछले दो सालों से दौरान ज्यादा दिखाई दे रहा है। आज हालात यह है कि किसी भी रियल स्टेट डेवलपर के पास आवश्यकता के अनुसार मजदूर नहीं हैं। डेवलपरों को मजदूरों की सप्लाई अपने आप में एक बड़ा काम हो गया है। डेवलपर इसके लिए अलग से राशि खर्च करते है।

क्रेडाई उपाध्यक्ष मनोज सिंह कहते है कि मनरेगा की वजह से ग्रामीण क्षेत्रों में ही रोजगार के अवसर मिलने लगे है। इससे ग्रामीण क्षेत्रों से आने वाले मजदूरों का पलायन शहरों की ओर कम हो गया है। इसके अलावा रियल स्टेट में आने वाले ज्यादा मजदूर बिहार और छत्तीसगढ़ से होते थे।

इन दोनों ही राज्यों में विकास कार्य काफी तेजी से हो रहे हैं। इसकी वजह से वहां से भी मजदूर नहीं आ रहे हैं।  इसके अलावा अभाव की एक और वजह बताते हुए चिनार रियल्टी प्राइवेट लिमिटेड के निदेशक सुनील मूलचंदानी कहते है कि मध्य प्रदेश में पिछले कुछ सालों में फसलों का उत्पादन काफी अच्छा हो रहा है। साथ ही उस उत्पादन के दाम भी किसानों को अच्छे मिल रहे हैं।

इसके चलते मजदूरों को खेतों में काम करने पर भी अच्छी मजदूरी मिल जाती है। जब वहां मनरेगा का काम नहीं होता है तो उन्हें खेतों पर काम मिल जाता है। इन सारी वजहों से शहरों में मजदूरों का बड़ा अभाव हो गया है।  मजदूरों की कमी से डेवलपरों पर दोहरी मार पड़ रही है। पहली, इनकी पर्याप्त संख्या न होने की वजह से प्रोजेक्टों को पूरा करने में अधिक समय लग जाता है।

इससे मजदूरों को अपने यहां काम करवाने और जो काम कर रहे है उन्हें अपने यहां रोके रखने के लिए लगातार ज्यादा मजदूरी देनी पड़ रही है। दो साल में यह बढ़कर दोगुनी हो गई है। दो साल पहले यहां पर अकुशल मजदूरों की मजदूरी 100-150 रुपये थी, जो फिलहाल बढ़कर 200-250 रुपये हो गई है। इन दोनों ही प्रभावों से प्रोजेक्ट लागत में बढ़ोतरी होती है।