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लोकतांत्रिक अधिकार है इंटरनेट का इस्तेमाल-- ओसामा मंजर

पिछले महीने मेरी मुलाकात इंबिसात अहमद और शारिक अहमद से हुई। इन दोनों नौजवानों ने ‘राइज' नाम का एक एप बनाया है, जो जम्मू-कश्मीर, और खासतौर से घाटी के नौजवानों को प्रतियोगी परीक्षाओं से जुड़ी सलाहें देता है, और उन्हें अध्ययन सामग्री व जानकारियां मुहैया कराता है। राइज को इस साल ‘एमबिलियन्थ अवॉर्ड' भी मिला है। उनके एप और काम के अलावा देश की शिक्षा-व्यवस्था और घाटी के हालात पर मेरी इन दोनों से लंबी बातें हुईं, क्योंकि घाटी में कफ्र्यू लगे होने की वजह से उन्होंने दिल्ली में ही रुकने का फैसला किया था। आखिर बिना इंटरनेट के उनका काम भी कैसे हो सकता था? ‘द इंटरनेट इन इंडिया 2015' नामक रिपोर्ट बताती है कि अक्तूबर, 2015 तक भारत में 31.7 करोड़ लोग इंटरनेट का इस्तेमाल करते थे, जिनकी संख्या जून, 2016 तक 42.6 करोड़ होने का अनुमान जताया गया था। अगर प्रतिबंध लगेंगे, तो यह उपलब्धि भला कैसे हासिल होगी? हर हाथ में इंटरनेट की योजना कैसे साकार होगी, जब देश के कुछ हिस्सों में इंटरनेट पर बंदिशें होंगी? भारत ही नहीं, तमाम मुल्कों में तनाव की स्थिति में इंटरनेट और मोबाइल नेटवर्क बाधित कर दिए जाते हैं। पिछले चार वर्षों में भारत में 27 बार संचार-नेटवर्क बंद किए गए। ऐसा आमतौर पर सरकार की आलोचना और तनाव की स्थिति बनने पर किया गया। संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद के अनुसार, इंटरनेट पर बंदिश मानवाधिकार का उल्लंघन है।

भारत में हाल के वर्षों में इंटरनेट पर प्रतिबंध के मामले बढ़े हैं। ‘इंटरनेट शटडाउन इन इंडिया' नामक रिपोर्ट बताती है कि साल 2013 और 2014 में इंटरनेट पर दो-दो बार रोक लगाई गई, मगर 2015 में ऐसा 14 बार किया गया। इस साल मई और जून के बीच नौ बार ‘वर्चुअल कफ्र्यू' लगाया जा चुका है, जिसमें विगत आठ जुलाई से घाटी में लगी रोक शामिल नहीं है। तर्क यह दिया जाता है कि 11 बार तो ‘सुरक्षात्मक उपाय' के तहत रोक लगी, ताकि कानून-व्यवस्था को समस्या न हो। यह तस्वीर बताती है कि सरकार कानून-व्यवस्था बनाए रखने की अपनी मूल जवाबदेही से बच रही है और वह घटना के बाद अपनाए जाने वाले उपायों पर ध्यान दे रही है।‘वर्चुअल कफ्र्यू' भी उतना ही बुरा है, जितना वास्तविक कफ्र्यू। इससे वे तमाम लोग प्रभावित होते हैं, जो ऑनलाइन रहते हैं और इसकी कोई भौगोलिक सीमा नहीं होती। सरकार को समझना चाहिए कि संचार के दूसरे तमाम माध्यमों से कहीं ज्यादा इंटरनेट की जरूरत रचनात्मक उद्देश्यों को है। यहां तक कि कानून-व्यवस्था पर खतरे की स्थिति में भी यह फायदेमंद है। आपात स्थिति में ट्विटर जैसे प्लेटफॉर्म मददगार होते ही हैं। लिहाजा इंटरनेट का इस्तेमाल एक लोकतांत्रिक अधिकार है और ‘कानून-व्यवस्था' के नाम पर लोगों को इससे वंचित नहीं किया जाना चाहिए।
(ये लेखक के अपने विचार हैं)