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लोकपाल बिल पर टकराव:अन्ना से साथी नाराज, नेताओं की बढ़ी उम्मीद

नई दिल्ली. जन लोकपाल बिल का ड्राफ्ट तैयार करने वाली कमेटी की पहली बैठक 16 अप्रैल को होने की संभावना है, लेकिन इसके पहले ही सरकार और गैर सरकारी पक्ष में तकरार बढ़ गई है। केंद्रीय मंत्री सलमान खुर्शीद, जो कमेटी में शामिल पांच मंत्रियों में से एक हैं, ने आगाह किया कि गैर सरकारी सदस्यों को खुले दिमाग से बैठक में शामिल होना होगा। कर्नाटक के लोकायुक्त, संतोष एन हेगड़े जो गैर-सरकारी सदस्य हैं, ने कहा है कि जन लोकपाल बिल के दायरे में प्रधानमंत्री को शामिल किया जाना चाहिए।

जन लोकपाल बिल तैयार करने के लिए 10 सदस्यीय समिति में पांच-पांच, सरकारी और गैर-सरकारी सदस्य हैं। सरकारी सदस्यों में कपिल सिब्बल पहले ही कह चुके हैं कि लोकपाल बिल से आम जनता का लाभ नहीं होना है। हालांकि बाद में वे अपने बयान से बदल गए। 

अब दूसरे सदस्य सलमान खुर्शीद ने कहा है कि बैठक में भाग लेने के लिए सदस्य खुले दिमाग से आएं। उन्होंने कहा कि अभी सभी सदस्य अपनी राय खुले रूप में दे रहे हैं और फिर उससे पीछे हटने को तैयार नहीं हैं। यह कमेटी के लिए ठीक नहीं है। उन्होंने कहा कि सभी को मुद्दा और उसकी समस्याएं मालूम हैं। अब प्रश्न यही है कि हम बैठक में इन समस्याओं से किस हद तक उबर पाते हैं।

कर्नाटक के लोकायुक्त संतोष हेगड़े ने कहा है कि प्रधानमंत्री को भी जन लोकपाल विधेयक के दायरे में लाया जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि जिस तरह मुख्यमंत्री लोकायुक्त के दायरे में हैं, उसी तरह प्रधानमंत्री को लोकपाल विधेयक के दायरे में होना चाहिए। उन्होंने कहा कि नया बिल, कर्नाटक के लोकायुक्त एक्ट की तर्ज पर बनाया जाना चाहिए।

मोदी की तारीफ नागवार

अन्ना हजारे से इनदिनों हर पार्टी और विचारधारा के लोग उम्मीद लगाए बैठे हैं। जो काम राजनीतिक पार्टियों को खुद करना चाहिए, उसके लिए ये पार्टियां 72 साल के अन्ना हजारे से गुजारिश कर रही हैं। लेकिन गुजरात में ग्राम्य विकास के लिए मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी की तारीफ करना हजारे के सहयोगियों और समर्थकों को नागवार गुजर रहा है। सामाजिक कार्यकर्ता मेधा पाटकर, अरुणा रॉय, संदीप पांडे और कविता श्रीवास्तव ने एक साझा बयान जारी कर हजारे द्वारा मोदी की तारीफ किए जाने की आलोचना की है। बयान में कहा गया है कि यह बेहद दुर्भाग्यपूर्ण और मंजूर करने लायक नहीं है।

यह बयान नेशनल अलायंस ऑफ पीपल्स मूवमेंट (एनएपीएम) नाम के संगठन की ओर से जारी किया गया है। 

सामाजिक कार्यकर्ताओं के निशाने पर आए अन्ना हजारे ने एक ताज़ा बयान में कहा है कि उनका राजनीति से कोई लेना देना नहीं और वे इस मामले में कोई पार्टी नहीं हैं। उन्होंने यह भी कहा है कि उनका अभियान सिर्फ भ्रष्टाचार के खिलाफ है। हजारे ने एक विज्ञप्ति जारी कर यह सफाई दी है।

लेकिन अन्ना की सफाई गुजरात के सामाजिक कार्यकर्ताओं के गले उतरती नहीं दिख रही है।  बड़ौदा के सामाजिक कार्यकर्ता रोहित प्रजापति और तृप्ति शाह ने अन्ना की इस सफाई पर कहा है, 'गुजरात की गरीब जनता का सच 11 अप्रैल को लिखी गई हमारी चिट्ठी से उजागर होता है। आप से गुजारिश है कि इसे पढ़िए। आपकी सफाई सिर्फ सांप्रदायिक सौहार्द और राजनीति को लेकर है, लेकिन हमारी चिट्ठी में यह मुद्दा है ही नहीं। आप या तो खुद गुजरात आइए या फिर जो लोग राज्य में बदतर ज़िंदगी जीने को मजबूर हैं, उन्हें बुलाइए।' 

वहीं, जन लोकपाल बिल पर अन्ना के समर्थन में अनशन पर बैठने वाली मल्लिका साराभाई ने भी मोदी की तारीफ करने पर हजारे की आलोचना की है। मल्लिका साराभाई की आलोचना के जवाब में अन्ना ने कहा, मुझसे नरेंद्र मोदी और नीतीश कुमार के विकास के काम को लेकर सवाल पूछा गया था। मीडिया में आई खबरों के हवाले से मैंने कहा कि गुजरात और बिहार में ग्रामीण विकास के मोर्च पर अच्छा काम हुआ है। लेकिन मल्लिका साराभाई हजारे के इस जवाब से सहमत नहीं दिखती हैं। साराभाई ने कहा कि हजारे के इस जवाब से साफ है कि वे नरेंद्र मोदी के प्रचार तंत्र से परे हटकर नहीं देख पा रहे हैं। 

'नक्सली समस्या हल करने के लिए आगे आएं हजारे'
छत्तीसगढ़ के बस्तर जिले में एक जनसभा में शामिल होने पहुंचे सामाजिक कार्यकर्ता स्वामी अग्निवेश ने कहा कि वे अन्ना हजारे से गुजारिश करेंगे कि वे नक्सली समस्या के समाधान के लिए आगे आएं। उन्होंने यह भी कहा है कि छत्तीसगढ़ के मौजूदा हालात को लेकर एक रिपोर्ट तैयार की जा रही है, जिसे अन्ना हजारे को सौंपा जाएगा। दिल्ली के अपने हालिया तजुर्बे के बारे में जिक्र करते हुए अग्निवेश ने कहा कि अहिंसा का रास्ता अपनाने की वजह से अभियान जन आंदोलन में तब्दील हो गया। उन्होंने कहा, 'शांति बहाली के लिए मैं नक्सलियों और सरकार के बीच मध्यस्थ का काम करने को तैयार हैं। लेकिन शांति बहाली को लेकर अपनी गंभीरता को साबित करने के लिए नक्सलियों को 6-12 महीनों तक हथियार छोड़ने होंगे। इस बीच हम सरकार पर दबाव बना सकते हैं।' अग्निवेश भ्रष्टाचार के खिलाफ हजारे के अभियान का अहम हिस्सा हैं।  
मायावती के खिलाफ आंदोलन करें अन्ना, चाहती हैं सियासी पार्टियां
केंद्र की सत्ता में मौजूद कांग्रेस चाहती है कि अन्ना हजारे उत्तर प्रदेश में अपने आंदोलन की शुरुआत करें। पार्टी ने उत्तर प्रदेश को सबसे भ्रष्ट राज्य बताते हुए हजारे से कहा है कि अगर वह राज्यों से भ्रष्टाचार विरोधी अभियान की शुरू कर रहे हैं तो वे इसकी शुरुआत यूपी से करें। कांग्रेस की उत्तर प्रदेश ईकाई की अध्यक्ष रीता बहुगुणा जोशी ने एक सवाल के जवाब में कहा कि यूपी में मानवाधिकार के उल्लंघन के सबसे ज़्यादा मामले हैं और यहां सबसे भ्रष्ट तंत्र है।
 
वहीं, मायावती के धुर विरोधी मुलायम सिंह यादव की समाजवादी पार्टी भी अन्ना हजारे से उम्मीद लगाए बैठे है। पार्टी ने अन्ना हजारे से गुजारिश की है कि वे खुद उत्तर प्रदेश आएं और मायावती के भ्रष्टाचार को अपनी आंखों से देखें। गौरतलब है कि उत्तर प्रदेश में अगले साल विधानसभा के चुनाव होने हैं। नक्सलियों से कथित तौर पर सहानुभूति रखने वाले सामाजिक कार्यकर्ता स्वामी अग्निवेश भी चाहते हैं कि अन्ना हजारे नक्सली समस्या का हल खोजें। छत्तीसगढ़ के बस्तर के जिला मुख्यालय जगदलपुर में करीब 6,500 आदिवासियों की जनसभा में शामिल होने के लिए पहुंचे स्वामी अग्निवेश ने कहा, 'माओवाद के फैलने की वजहों में भ्रष्टाचार एक अहम कारक है और हम अन्ना हजारे से इस मुद्दे पर बात करेंगे।' उन्होंने कहा कि छत्तीसगढ़ में मौजूदा हालात पर एक विस्तृत रिपोर्ट तैयार की जा रही है और इसे अन्ना हजारे के साथ साझा किया जाएगा। अग्निवेश ने कहा कि वे चाहेंगे कि अन्ना हजारे नक्सली समस्या का हल खोजने में अपना योगदान दें। 

भ्रष्टाचार के खिलाफ जबर्दस्त जनसमर्थन हासिल करने वाले अन्ना हजारे को राजनीतिक पार्टियां अपने सियासी मकसद के लिए ही इस्तेमाल करना चाहती हैं। क्योंकि एक तरफ तो पार्टियां उन्हें उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों में भ्रष्टाचार के खिलाफ खड़े होने की अपील कर रही हैं, वहीं दूसरी ओर वे अन्ना हजारे की आलोचना करने में भी पीछे नहीं हैं। कांग्रेस चाहती है कि यूपी में मायावती सरकार के खिलाफ अन्ना हजारे आंदोलन करें, लेकिन भ्रष्टाचार में नेताओं के शामिल होने के बयान को लेकर कांग्रेस हजारे को निशाने पर लेने से नहीं चूकी है। कांग्रेस महासचिव दिग्विजय सिंह ने कहा कि इसकी जांच होना चाहिए कि आंदोलन का खर्च किसने उठाया। उन्होंने हजारे पर निशाना साधते हुए कि चुनाव हर उस आदमी को लडऩा चाहिए जो राजनेताओं को गाली देता है। जबकि केंद्र में मुख्य विपक्षी पार्टी बीजेपी ने भी अन्ना पर हमला करने का मौका नहीं गंवाया है। भाजपा के शीर्ष नेता लालकृष्ण आडवाणी ने मंगलवार को अपने ब्लॉग में लिखा कि देश में बहुत से ईमानदार और समझदार नेता मौजूद हैं। हर नेता को भ्रष्ट करार देना लोकतंत्र की अवमानना है। जो लोग राजनीति और राजनेताओं के खिलाफ घृणा का माहौल बना रहे हैं, वे लोकतंत्र को नुकसान पहुंचा रहे हैं। वहीं, बीजेपी की मध्य प्रदेश ईकाई के अध्यक्ष प्रभात झा ने अन्ना के खिलाफ मोर्चा खोलते हुए कहा कि वे ईमानदारी का विश्वविद्यालय नहीं चलाते। राजनेताओं को उनके प्रमाणपत्र की जरूरत नहीं है।