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लोकपाल विधेयक पर दो नए मतभेद उभरे

नई दिल्ली। प्रधानमंत्री, न्यायपालिका और संसद में सांसदों के आचरण को लोकपाल के दायरे में लाने के विवादास्पद मुद्दे पर सरकार और समाज के सदस्यों के कड़े रूख के बीच लोकपाल विधेयक पर गठित संयुक्त मसौदा समिति की बैठक सोमवार समाप्त हो गई। हालांकि कल 4.30 में फिर से बैठक होगी।

लोकपाल बिल बनाने के लिए गठित ड्राफ्टिंग कमिटी में शामिल सरकार और सिविल सोसाइटी के नुमाइंदों के बीच सोमवार को हुई बैठक नाकाम रही। इस बैठक के बाद भी जहां एक ओर कुछ मुद्दों पर पहले से ही मौजूद असहमति बरकरार है वहीं दो नए मुद्दों पर असहमति उभर कर सामने आई है।

इस बैठक के बाद आज दोनों पक्षों का रुख नरम रहा और वे एक-दूसरे पर हमलावर तेवरों के साथ मीडिया से नहीं मिले। टीम अन्ना की ओर से प्रशांत भूषण ने बताया कि बैठक का माहौल अच्छा था। कई मुद्दों पर सहमति बनी, लेकिन दो नए मामलों पर मतभेद भी उभर गए।

ड्राफ्टिंग कमिटी में शामिल सिविल सोसाइटी के प्रतिनिधि प्रशांत भूषण ने कहा कि लोकपाल को गठित करने वाली चयन समिति में कौन लोग शामिल होंगे, इस पर असहमति उभरकर सामने आई है। भूषण ने कहा कि सरकारी प्रतिनिधि चयन समिति में सरकार के प्रतिनिधियों को शामिल करना चाहते हैं। जबकि सिविल सोसाइटी के सदस्य स्वतंत्र लोगों को इस समिति में शामिल करने की मांग कर रहे हैं।

इसके अलावा लोकपाल समिति को हटाने के लिए अपील के अधिकार को लेकर भी मतभेद सामने आया है। सरकारी प्रतिनिधि चाहते हैं कि लोकपाल समिति को हटाने के लिए सुप्रीम कोर्ट में अपील का हक केंद्र सरकार के पास रहे। लेकिन सिविल सोसाइटी के सदस्यों का कहना है कि लोकपाल समिति को हटाने के लिए अपील का हक सबको होना चाहिए।

वहीं, ड्राफ्टिंग कमिटी में शामिल सिविल सोसाइटी के सदस्य अरविंद केजरीवाल ने कहा कि हमने लोकपाल बिल को लेकर सरकार को 40 बिंदू दिए थे। सरकार का कहना है कि इनमें से 11 पर सहमति बन गई है। लोकपाल को चुनने के लिए चयन समिति के गठन और उसे हटाने पर सरकार अपना नियंत्रण रखना चाहती है।'

वहीं, दूसरी ओर ड्राफ्टिंग समिति में शामिल सरकारी प्रतिनिधियों की तरफ से मीडिया से बातचीत करते हुए केंद्रीय मंत्री कपिल सिब्बल ने बातचीत को संतोषजनक बताया। कपिल सिब्बल ने बैठक के बाद कहा है कि कई मुद्दों पर समिति में शामिल सरकार और सिविल सोसाइटी के प्रतिनिधियों के बीच सहमति बनी है, लेकिन कुछ मुद्दों पर अब भी असहमति बनी हुई है। उनका कहना है कि जिन मु्द्दों पर पहले से टकराव था, उन पर अब भी कोई सहमति नहीं बन पाई है। सिब्बल ने यह भी कहा कि मंगलवार को शाम साढ़े चार बजे ड्राफ्टिंग कमिटी की बैठक में सरकार के प्रतिनिधि और सिविल सोसाइटी के प्रतिनिधि एक-दूसरे को अपना-अपना ड्राफ्ट सौंपेंगे।

सिब्बल ने यह जानकारी भी दी कि जुलाई में राजनीतिक दलों को लोकपाल बिल का ड्राफ्ट सौंपा जाएगा और उनकी प्रतिक्रिया ली जाएगी। जिसके बाद इसे कैबिनेट में ले जाया जाएगा और फिर संसद में इसे पेश किया जाएगा।

गौरतलब है कि नॉर्थ ब्लॉक में वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी के कार्यालय में 11 बजे शुरू हुई इस बैठक में समाज पक्ष की ओर से न्यायमूर्ति संतोष हेगड़े को छोड़ कर दस सदस्यीय समिति के सभी सदस्य भाग ले लिए थे।

यह बैठक कुछ विवादित मुद्दों को लेकर दोनों पक्षों में वादविवाद की पृष्ठभूमि में शुरू हुई और सरकार ने स्पष्ट कर दिया है कि वह प्रधानमंत्री को लोकपाल के दायरे में लाने के खिलाफ है।

इससे पहले, वरिष्ठ मंत्रियों ने सरकार की रणनीति को अंतिम रूप देने के लिए कल शाम विचारविमर्श किया था।

सरकार ने न्यायपालिका और संसद में सांसदों के आचरण को भी लोकपाल के दायरे में लाए जाने का विरोध किया है जबकि अन्ना हजारे नीत समाज की राय है कि भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाने के लिए प्रधानमंत्री, न्यायपालिका और संसद में सांसदों के आचरण को लोकपाल के दायरे में लाया जाना चाहिए।

न्यायमूर्ति हेगड़े ने कहा कि जहां तक हो सके, हम मुद्दों के हल की कोशिश करेंगे। कुल छह मुद्दे हैं जिन पर हमारी राय अलग अलग है।

पिछली बैठक 15 जून को हुई थी जिसमें सरकार के प्रतिनिधियों ने समाज के सदस्यों से अपना प्रारूप पेश करने को कहा था। इन प्रतिनिधियों ने कहा था कि वह भी अपना प्रारूप पेश करेंगे। यह भी तय किया गया कि मसौदा विधेयक को उन बिंदुओं के साथ मंत्रिमंडल के पास भेजा जाएगा जिन पर मतभेद हैं।

कांग्रेस द्वारा कड़ा रूख अपनाने का संकेत देते हुए पार्टी प्रमुख सोनिया गांधी ने हजारे को एक पत्र भेज कर कहा कि उनके [हजारे] द्वारा उठाए गए मुद्दों पर वह [सोनिया] अपने विचार स्पष्ट कर चुकी हैं।

हजारे के अनशन पर हेगड़े की टिप्पणियों और दिल्ली में हुई बैठक में उनके भाग न लेने के कारण अटकलें लगाई जा रही थीं कि समाज पक्ष के प्रतिनिधियों में मतभेद हैं। इस बारे में हेगड़े ने कहा कि वह यह बताने के लिए 21 जून को होने वाली बैठक में भाग लेंगे कि समाज पक्ष में कोई मतभेद नहीं हैं। उन्होंने कहा कि पूर्व की प्रतिबद्धताओं के चलते वह आज की बैठक में भाग नहीं ले पा रहे हैं।

सरकार ने प्रधानमंत्री के पद को लोकपाल के दायरे में लाने से साफ इंकार किया है वहीं कांग्रेस के कोर समूह ने इस मुद्दे पर सर्वदलीय बैठक बुलाने का पक्ष लिया है।

सरकार के सूत्रों ने संकेत दिया है कि सर्वदलीय बैठक 30 जून के बाद बुलाई जा सकती है क्योंकि तब तक संयुक्त समिति का विधेयक तैयार करने का काम पूरा हो जाएगा।

वरिष्ठ मंत्री पी चिदंबरम और पार्टी के कुछ अन्य शीर्ष नेता कह चुके हैं कि प्रधानमंत्री पद को लोकपाल के दायरे में लाने को लेकर मतभेद हैं।

खबरें हैं कि इस बारे में संप्रग के घकों में भी मतभेद हैं। कहा जा रहा है कि कांग्रेस गठबंधन की अगुवाई कर रही है तो उसे सबको साथ लेकर चलना होगा। गौरतलब है कि सरकार ने इस मामले में राजनीतिक दलों से रायशुमारी के लिए अगले माह सर्वदलीय बैठक बुलाने का भी मन बना लिया है।

लोस अध्यक्ष मीरा कुमार ने बुधवार को सर्वदलीय बैठक बुला कर सरकार को लोकपाल पर विभिन्न दलों की राय जानने का मौका मुहैया करवाया दिया है। बदले राजनीतिक हालात में लोकपाल के अधिकार क्षेत्र को लेकर चुप्पी साधे बैठे विपक्ष के लिए जल्द ही अपना पक्ष साफ करना जरूरी होगा।

हालांकि, सरकार पहले ही तय कर चुकी है कि सोमवार और जरूरत होने पर मंगलवार को बैठक कर समिति अपना काम पूरा कर लेगी। कानून मंत्री वीरप्पा मोइली दावा कर चुके हैं कि समिति दो मसौदों की बजाय एक ही मसौदे में अलग-अलग राय समाहित कर कैबिनेट को सौंपेगी।

सूत्रों के मुताबिक, सर्वदलीय बैठक के लिए अगले माह के पहले हफ्ते की कोई तारीख तय की जाएगी। इस बैठक के जरिए लोकपाल से जुड़े मुद्दों पर सरकार विभिन्न दलों की राय लेना चाहती है। इस बीच लोकसभा अध्यक्ष ने भी बुधवार को सभी दलों के प्रमुख नेताओं को अपने घर पर बैठक के लिए बुलाया है।

आम तौर पर लोकसभा अध्यक्ष सत्र शुरू होने के पहले ऐसी बैठक बुलाती हैं। मगर इस बार यह बैठक सत्र की तारीख तय होने से पहले ही बुलाई गई है। बैठक में लोकपाल समेत विभिन्न मुद्दों पर चर्चा हो सकती है। पिछले दिनों कांग्रेस कोर ग्रुप ने तय किया है कि इस मामले पर संसद में बिल लाने से पहले सरकार सभी दलों की राय लेगी। इससे पहले विभिन्न दलों की राय लेने की सरकार की कोशिश नाकाम हो चुकी है।