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वंचित रह जाते हैं 95% किसान, बंद करें धान खरीद-- पुष्यमित्र

आरा : करथ पंचायत भोजपुर जिले के तरारी ब्लॉक में स्थित है और इस इलाके को धान का कटोरा माना जाता है. यहां किसान एक एकड़ में 25 से 30 क्विंटल तक धान उपजा लेते हैं. पिछले खरीफ में भी धान की अच्छी पैदावार हुई. मगर तकरीबन 1500 किसानों के इस पंचायत में सिर्फ 66 किसान अपनी उपज पैक्सों को बेच पाये. यहां यह भी जानना रोचक होगा कि करथ पैक्स में सदस्यों की संख्या भी 12 सौ से अधिक हैं. यानी तकरीबन 1140 पैक्स सदस्य भी अपनी उपज पैक्स में बेचने में सफल नहीं हो पाये. क्योंकि पैक्स अध्यक्ष के मुताबिक उसके पास धान खरीदने के लिए इतने ही पैसे थे. ऐसे में शेष किसानों को अपना धान एक हजार से 1050 रुपये प्रति क्विंटल की दर से बेचने के लिए विवश होना पड़ा. 

अब किसान कह रहे हैं कि अगर गांव के पांच फीसदी किसानों का ही धान खरीदा जाना है तो इस खरीद का क्या मतलब? इसे बंद कर दीजिए. 5000 एकड़ रकबा वाली इस पंचायत में औसतन 80 हजार क्विंटल धान उपजता है, जबकि करथ पैक्स ने इस साल कुल 4964 क्विंटल धान की खरीद की है. यहां ज्यादातर धान खुले बाजार में ही बिका. सहकारिता विभाग का दावा है कि उसने अपने लक्ष्य का 60 फीसदी धान खरीद लिया है. आखिर इसकी वजह क्या है? भोजपुर के एक किसान नेता शेषनाथ सिंह कहते हैं, सरकार ने अपना लक्ष्य ही सिर्फ 30 लाख मीटरिक टन रखा है. जबकि बिहार में धान की पैदावार अमूमन एक करोड़ मीटरिक टन से अधिक होती है. विभाग का यह कहना सही है कि सरकार हर किसी का धान नहीं खरीद सकती. उसका कहना भी है कि यह प्रणाली मुख्यत: सीमांत किसानों के लिए है. 

खरीद में कुछ ऐसी गड़बड़ी हुई कि सीमांत किसान छंट गये और पैक्स अध्यक्ष के नजदीकी थोड़े से बड़े किसानों को ही इसका लाभ मिला.महादलित समुदाय के किसान श्रीभगवान राम 2 एकड़ जमीन पर धान उगाते हैं. उन्होंने कहा कि 40-50 क्विंटल धान को कब तक जोगा कर रखते. दिसंबर में कटा था और खरीद फरवरी के अंत में शुरू हुई. फिर पैक्स अध्यक्ष के पीछे दौड़-भाग करना, रसीद कटाना, नंबर लगाना, इतनी परेशानी का काम है, कि सोचे जो भाव मिलता है, उसी में व्यापारी को ही बेच देते हैं.

यही वजह है कि इन 66 लोगों में सिर्फ 11 किसान ही ऐसे हैं, जिन्होंने 50 क्विंटल से कम धान पैक्स को बेचा है, यानी जो सीमांत किसान कहे जा सकते हैं. जबकि शेष 55 लोग बड़े किसान हैं. यह उस राज्य में धान खरीद की स्थिति है, जहां 90 फीसदी किसान सीमांत किसानों की श्रेणी में आते हैं, यानी जिनकी जोत 2.5 एकड़ से कम है. 

करथ गांव की अपनी यात्रा के वक्त यह संवाददाता अपने साथ उन 66 किसानों की सूची लेकर गया था, जिन्हें अपना धान पैक्स को बेचने में सफलता मिली. 

सूची को कई जगह किसानों के बीच पढ़ा गया. किसानों ने सूची पर टिप्पणी करते हुए कहा कि इसमें शुरु आती नामों में ज्यादातर पैक्स अध्यक्ष के घर के लोग और सगे संबंधी हैं. एक किसान परशुराम सिंह ने कहा कि कई ऐसे लोगों का भी नाम है, जो खेती नहीं करते. 

रोचक यह है कि इस प्रक्रि या में वे लोग भी छट गये जिन्होंने दिसंबर में ही खरीद के लिए ऑनलाइन आवेदन दिया था. ऐसे ही एक किसान कमलेश कुमार का कहना है कि उनका नौवां नंबर था, उन्होंने अपनी परची भी दिखायी. किसान अमति कुमार का 23 वां नंबर था. मगर ऑनलाइन नंबर लगाने के बावजूद ये दोनों उन 66 सौभाग्यशाली किसानों की सूची में जगह नहीं बना पाये, जिनकी उपज को सरकारी भाव मिला. 

करथ के पैक्स अध्यक्ष संजय सिंह किसी भी भेदभाव की बात से इनकार करते हैं. मगर यह जरूर कहते हैं कि उनके पास सीमति किसानों का धान खरीदने का ही पैसा था और खरीदारी देर से शुरू हुई थी, इसलिए हर किसी का धान वे खरीद नहीं सकते. वे कहते हैं, पिछले साल अधिक पैसा था तो उन्होंने 186 किसानों से 12,400 क्विंटल धान खरीदा था. इस साल पैसे ही कम थे, उनके पास कोई चारा नहीं था.

किसान नेता शेषनाथ सिंह कहते हैं, यह किसी एक पैक्स का अनूठा मामला नहीं है, बिहार राज्य में तकरीबन सभी पैक्सों में ऐसी ही पद्धति अपनायी गयी होगी. क्योंकि खरीदने के लिए पैसे कम थे, पैक्स अध्यक्षों ने अपने करीबियों को ही स्वाभाविक रूप से तरजीह दी होगी और ज्यादातर सीमांत किसान छंट गये होंगे. 

अब वक्त आ गया है कि विभाग अपनी खरीद की नीति पर विचार करे. या तो वह सभी किसानों का सारा धान खरीदने की हिम्मत जुटाये, या सरकारी खरीद की प्रक्रि या को ही बंद कर दे, जिससे ज्यादातर किसान वंचित रह जाते हैं और समाज का माहौल भी विषाक्त होता है.