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वन्यजीवों के लिए उजड़ेंगी बस्तियां

शिमला। हिमाचल के अभयारण्यों में वन्य जीवों के संरक्षण के लिए राज्य सरकार ने ग्रामीण बस्तियां हटाने का फैसला किया है। वन विभाग ने अभयारण्यों में बसे 767 गांवों की पहचान की है, जहां से करीब सवा लाख ग्रामीण हटाए जाएंगे। ग्रामीणों के पुनर्वास की योजना पर काम चल रहा है। सरकार ने केंद्र को तीन महीने पहले इस बारे में प्रस्ताव भेजा था। अभी केंद्र की अनुमति का इंतजार है। राज्य में 33 अभयारण्य और दो नेशनल पार्क हैं।

वन विभाग का कहना है कि इनके युक्तिकरण से राज्य में संरक्षित वन क्षेत्र में 1210 वर्ग मीटर क्षेत्र बढ़ा है। हिमाचल में देश का सबसे अधिक 15.11 फीसदी भौगोलिक क्षेत्र संरक्षित है। वन्य प्राणियों की कई प्रजातियां अनावश्यक मानवीय हस्तक्षेप के कारण लुप्त होने के कगार पर हैं। इस कारण प्रदेश में वन्य प्राणियों की संख्या लगातार कम हो रही है। पशु तस्करों की सक्रियता भी जंगलों से वन्य प्राणियों की संख्या में कमी का अहम कारण रही है। देशभर में 45 हजार वनस्पतियों में से राज्य में 3150 प्रजातियां पाई जाती हैं। इनमें 35 तरह की प्रजातियां ऐसी हैं, जिन्हें निर्यात करने के लिए चिह्न्ति किया गया है। इनमें चिलगोजा, चिकोरी, कुठ, शिंगली—मिंगली, धूप, बनख्शा, कुडू, पतीश प्रमुख हैं। औषधीय गुणों वाले इन जड़ी बूटियों को निर्यात करने के लिए परमिट जारी करने का अधिकार पंचायत प्रधानों को दिया गया है। प्रदेश को हर्बल राज्य के रूप में पहचान दिलाने के उद्देश्य से वन विभाग की ओर से सांझा वन—संजीवनी वन योजना शुरू की गई। वन संरक्षण के उद्देश्य से वन सरोवर और ईको टूरिज्म जैसे कार्यक्रमों के अलावा कई कार्यक्रम चलाए जा रहे हैं।


पक्षियों की 99 प्रजातियां लुप्त
प्रदेशभर में वन्यप्राणियों की प्रजातियां 664 ही रह गई हैं। इनमें भी 377 प्रजातियां ग्रेट हिमालयन नेशनल पार्क में हैं। इन्हें बचाने और पशु तस्करी पर अंकुश लगाने के लिए विभाग ने वन्य प्राणी अपराध प्रकोष्ठ खोलने का निर्णय लिया है। इसका काम प्रारंभिक स्तर पर शुरू हो चुका है। विभाग की अलग से फोरेंसिक लैबोरेटरी स्थापित करने की जरूरत पर भी बल दिया जा रहा है। देशभर में पाए जाने वाली पक्षियों की 1250 प्रजातियों में से 450 हिमाचल प्रदेश में पाई जाती हैं। इनमें भी 99 प्रजातियां ऐसी हैं जो लुप्त हो चुकी हैं। वन विभाग कैप्टिव ब्रीडिंग के माध्यम से लुप्त होने वाले वन्य प्राणियों और पक्षियों को बचाने में प्रयासरत हैं।

बंदरों की हत्या पर रोक
शिमला। हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने नवंबर महीने में जारी प्रदेश सरकार की उस अधिसूचना पर रोक लगा दी है, जिसके तहत फसलें बर्बाद करने वाले जानवारों को मारने की अनुमति दी गई है। चीफ जस्टिस कुरियन जोसेफ और जस्टिस वीके आहुजा की खंडपीठ ने पीपल फॉर एनीमल सोसायटी कसौली और चंडीगढ़ की जनहित याचिका पर सुनवाई के बाद यह आदेश दिए।

हाईकोर्ट ने कहा, यह निर्णय लेते वक्त सरकार ने संवैधानिक दायित्वों का पालन नहीं किया। जानवरों को डराने के लिए एयर गन, एयर पिस्टल और एयर राइफल के इस्तेमाल पर विचार किया जाए। सुनवाई अब 5 मार्च को होगी। याचिकाकर्ता सोसायटी ने कहा, सरकार ने खेती बचाओ संघर्ष समिति व ज्ञान विज्ञान समिति के दबाव में यह निर्णय लिया था, जिसमें बंदरों, नीलगाय व सूअरों को मारने की अनुमति दी गई थी।

नवंबर 2010 में जारी इस अधिसूचना में 27 वर्ष बाद ऐसी स्वीकृति दी गई है। ऐसा करने से देश ही नहीं अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी प्रदेश की छवि खराब हुई है। सरकार का कहना है कि विशेषज्ञों के सुझाए विकल्पों पर विचार व अमल के बाद ही यह निर्णय लिया गया था। क्योंकि फसलें बुरी तरह बर्बाद की जा रही थी।