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विकास का पैसा कहां जाता है- विनीत नारायण

राज्य सरकारों ने 'वाटरशेडकार्यक्रम की जो रिपोर्ट भेजी है, उससे केंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्री जयराम रमेश सहमत नहीं हैं। बंजर भूमि, मरूभूमि और सूखे क्षेत्र को हरा-भरा बनाने के लिए केंद्र सरकार हजारों करोड़ रुपये राज्य सरकारों को देती आई है। लेकिन जिले के अधिकारी और नेता मिलीभगत से सारा पैसा डकार जाते हैं। झूठे आंकड़े राज्य सरकारों के माध्यम से केंद्र सरकार को भेज दिए जाते हैं। आईआईटी के पढे़ श्री रमेश को कागजी आंकड़ों से गुमराह नहीं किया जा सकता। उन्होंने उपग्रह कैमरे से हर राज्य की जमीन का चित्र देखा और पाया कि जहां-जहां सूखी जमीन में हरियाली लाने के दावे किए गए थे, वे सब झूठे निकले। इसलिए पिछले दिनों प्रांतीय ग्रामीण विकास मंत्रियों के सम्मेलन में उन्होंने अपनी नाराजगी जाहिर की।

 

यह कोई नई बात नहीं है। विकास योजनाओं के नाम पर हजारों करोड़ रुपये इसी तरह वर्षों से राज्य सरकारों द्वारा बहाए जाते हैं। पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी का यह जुमला अब पुराना पड़ गया कि केंद्र के भेजे एक रुपये में से केवल 15 पैसे जनता तक पहुंचते हैं। सूचना का अधिकार कानून भी जनता को यह नहीं बता पाएगा कि उसके इर्द-गिर्द की एक गज जमीन पर पिछले 60 वर्षों में कितने करोड़ रुपये का विकास किया जा चुका है। सड़क निर्माण हो या सीवर, वृक्षारोपण हो या कुंडों की खुदाई, नलकूपों की योजना हो या बाढ़ नियंत्रण, स्वास्थ्य सेवाएं हों या शिक्षा का अभियान-अरबो-खरबों रुपये कागजों पर खर्च हो चुके हैं। पर देश की हालत कछुए की गति से भी नहीं सुधर रही। जनता दो वक्त की रोटी के लिए जूझ रही है और नौकरशाही, नेता और माफिया हजारों गुना तरक्की कर चुके हैं। जो भी इस क्लब का सदस्य बनता है, कुछ अपवादों को छोड़कर, दिन दूनी रात चौगुनी तरक्की करता है। कैग, सीबीआई और अदालतें उसका बाल भी बांका नहीं कर पातीं।

 

जिले में योजना बनाने वाले सरकारी कर्मी इस दृष्टि से योजना बनाते हैं कि काम कम करना पड़े और कमीशन तगड़ा मिल जाए। इन्हें स्थानीय विधायकों और सांसदों का संरक्षण मिलता है। इसलिए ये नेता आए दिन बड़ी-बड़ी योजनाओं की घोषणा करते रहते हैं। अगर इनकी घोषित योजनाओं की लागत और मौके पर हुए काम की जांच करवा ली जाए, तो यथार्थ सामने आ जाएगा। अगर मीडिया प्रतिबद्ध हो, तो इस तरह के तंत्र का फलना-फूलना संभव नहीं है।

 

उधर जिले से लेकर राज्य तक और राज्य से लेकर केंद्र तक पेशेवर सलाहकारों का एक बड़ा तंत्र खड़ा हो गया है, जो सरकार से दस गुनी फीस वसूलता हैं और उसमें से 90 फीसदी तक काम देने वाले अफसरों और नेताओं को पीछे से कमीशन में लौटा देता है। बिना क्षेत्र का सर्वेक्षण किए, स्थानीय अपेक्षाओं को जाने और परियोजनाओं की सफलता का मूल्यांकन किए केवल खानापूरी के लिए डीपीआर (विस्तृत कार्य योजना) बना दी जाती है। फिर चाहे जेएनआरयूएम हो या मनरेगा, पर्यटन विभाग की डीपीआर हो या ग्रामीण विकास की- सबमें फरजीवाडे़ का प्रतिशत काफी ऊंचा रहता है। यही वजह है कि योजनाएं खूब बनती हैं, पैसा भी खूब आता है, पर हालात नहीं सुधरते।

 

आज सूचना क्रांति के दौर में ऐसी चोरी पकड़ना बाएं हाथ का खेल है। उपग्रह सर्वेक्षणों से हर परियोजना के क्रियान्वयन पर पूरी नजर रखी जा सकती है और काफी हद तक चोरी पकड़ी भी जा सकती है। पर चोरी पकड़ने का काम नौकरशाही का कोई सदस्य करेगा, तो अनेक वजहों से सचाई छिपा देगा। निगरानी का यही काम देश भर में अगर प्रतिष्ठित स्वयंसेवी संगठनों या व्यक्तियों से करवाया जाए, तो चोरी रोकने में पूरी नहीं, तो काफी सफलता मिलेगी।

 

केवल जयराम रमेश ही नहीं, हर मंत्री को तकनीकी क्रांति की मदद लेनी चाहिए। योजना बनाने में आपाधापी को रोकने का सरल तरीका यह है कि जिलाधिकारी अपनी योजनाएं वेबसाइट पर डाल दें और उन पर जिले की जनता से 15 दिन के भीतर आपत्ति और सुझाव दर्ज करने को कहा जाए। जनता के सही सुझावों पर अमल किया जाए। केवल सार्थक, उपयोगी और ठोस योजनाएं ही केंद्र और राज्य सरकारों को भेजी जाएं। योजनाओं के क्रियान्वयन की साप्ताहिक प्रगति के चित्र भी वेबसाइट पर डाले जाने चाहिए, ताकि उनकी कमियां जागरूक नागरिक उजागर कर सकें। इससे इन योजनाओं पर हर स्तर पर नजर रखने में मदद मिलेगी और अपना लोकतंत्र मजबूत होगा। फिर बाबा रामदेव या अन्ना हजारे जैसे लोगों को सरकारों के विरुद्ध जनता को जगाने की जरूरत नहीं पड़ेगी।

 

आज हर सरकार की विश्वसनीयता, चाहे केंद्र की हो या राज्य की, जनता की निगाह में काफी गिर चुकी है। ऐसे में, सरकारों को अपनी सोच और समझ बदलने की जरूरत है। देश भर में जिस भी अधिकारी, विशेषज्ञ, प्रोफेशनल या स्वयंसेवी संगठन ने जिस क्षेत्र में भी अनुकरणीय कार्य किया हो, उसकी सूचना जनता के बीच सरकारी पहल पर प्रसारित की जानी चाहिए। इससे देश के बाकी हिस्सों को भी प्रेरणा और ज्ञान मिलेगा। फिर सात्विक शक्तियां बढ़ेंगी और लुटेरे अपने बिलों में जा छिपेंगे। अगर राजनेताओं को जनता के बढ़ते आक्रोश को समय रहते कम करना है, तो ऐसी पहल यथाशीघ्र करनी चाहिए। नहीं, तो देश में अराजकता फैलने के आसार पैदा हो जाएंगे।