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विकास की आड़ में- अजेय कुमार

जनसत्ता 30 सितंबर, 2013 : यह महज संयोग है कि जिस दिन यानी तेरह सितंबर को सोलह दिसंबर के सामूहिक बलात्कार कांड के चारों दोषियों को अदालत द्वारा मौत की सजा सुनाई जा रही थी, भाजपा गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी को औपचारिक रूप से प्रधानमंत्री पद का अपना उम्मीदवार घोषित कर रही थी। मोदी के राज में ही गुजरात का जनसंहार और हजारों महिलाओं और बालिकाओं की इज्जत से खिलवाड़ हुआ। अपराधियों को आज तक कोई सजा नहीं मिली।
विभिन्न स्वतंत्र नागरिक संगठनों ने अपनी जिन रिपोर्टों में गुजरात-2002 के वहशीपन के विवरण रखने की कोशिश की है, उन्हें कुछेक पन्नों से आगे पढ़ पाना मुश्किल होता है। इनमें से एक टीम ने गुजरात की इस क्रूर हिंसा के बच्चों पर पड़ने वाले प्रभाव का आकलन करने का प्रयास किया था। हर्षमंदर ने लिखा था: ‘‘आठ साल का सद््दाम इस टीम को बताता है कि किस तरह मर्दों ने हमला किया और ...‘तब उन्होंने मेरी मां को नंगा कर दिया...उसको नंगा कर दिया।’ एक नौ वर्ष का बच्चा खुद औरतों के एक दल को बलात्कार के मायने बताता है। ‘बलात्कार का मतलब, जब औरत को नंगा करते हैं और फिर उसे जला देते हैं। और इसके बाद वह फर्श पर एकटक देखता रहता है।’ लेखक आगे टिप्पणी करता है कि ‘केवल एक बच्चा ही जैसा है वैसा बता सकता है।’ नरोदा पाटिया में बारंबार यही सब हुआ था- औरतों को नंगा किया गया, उनके साथ बलात्कार किया गया और उन्हें जिंदा जला दिया गया। जलाया जाना अब बलात्कार के मायने के साथ अभिन्न रूप से जुड़ गया है।’’ (फ्रंटलाइन, 3 जनवरी, 2003)
जनसंहार में शुरू से ही राज्य सरकार की मिलीभगत स्पष्ट थी। नरेंद्र मोदी ने शीर्ष अधिकारियों को यह निर्देश दे रखा बताते हैं कि पहले ही सड़कों पर उतर आई मारकाट पर आमादा भीड़ों के खिलाफ कार्रवाई न की जाए। लूटपाट में लगी उन्मादी भीड़ों का नेतृत्व ‘प्रशिक्षित’ कार्यकर्ता कर रहे थे और उनमें ज्यादातर को पता था कि सरकार या कानून-व्यवस्था के लिए उत्तरदायी लोग उनके विरुद्ध कोई कार्रवाई नहीं करेंगे। शासन की ‘तटस्थता’ बनाए रखने के पहलू से कानून के राज को सिलसिलेवार ढंग से कमजोर किया गया था, इसलिए अल्पसंख्यक-विरोधी पूर्वग्रह राज्य सरकार की नीति का हिस्सा ही बन गया था। समूची कार्रवाई में क्रेनों, ट्रकों और बेलचों का बड़े पैमाने पर इस्तेमाल इसी का सबूत था।
फिर भी न तो मुख्यमंत्री या राज्य सरकार को, न सरकारी एजेंसियों को इस हिंसा के लिए जवाबदेह ठहराया गया और न ही किसी को दंडित किया गया। यह शर्म की बात है और यह केवल भारत में संभव है कि जिस व्यक्ति की छत्रछाया में इतना बड़ा जनसंहार हुआ, उसका नाम देश के सर्वोच्च पद के लिए घोषित किया गया है।
प्रधानमंत्री पद के दावेदार के सोच का स्तर कम से कम इतना तो हो कि वह देश और समाज के विभिन्न तबकों की समस्याओं को समझ सके। शायद बहुत कम लोगों को मालूम होगा कि मोदी लेखक भी हैं। 2007 में प्रकाशित अपनी पुस्तक ‘कर्मयोग’ में वे लिखते हैं: ‘‘मैं नहीं जानता कि वे यह काम (हाथ से मैला उठाना) केवल अपनी आजीविका कमाने के लिए कर रहे हैं। अगर ऐसा होता, वे पीढ़ी-दर-पीढ़ी इस तरह के काम को लगातार न करते। ...किसी विशेष समय पर, किसी को ज्ञानोदय प्राप्त हुआ होगा कि यह उनका (वाल्मीकि समुदाय का) कर्तव्य है कि वे पूरे समाज और प्रभुओं की खुशी के लिए यह काम करें; कि उन्हें यह काम (हाथ से मैला उठाने का काम) इसलिए करना है कि भगवान ने उन्हें यह सौंपा है; और कि यह काम एक आंतरिक आध्यात्मिक साधना की तरह सदियों तक चलते रहना चाहिए।’’ (टाइम्स आॅफ इंडिया, 13 अप्रैल, 2013 से अनूदित)
गुजरात में सत्तर प्रतिशत दलित लड़कियां माध्यमिक शिक्षा तक नहीं पहुंच पातीं, पर जनाब मोदी ने सफाई कर्मचारियों को कर्मकांड सिखाने के लिए बाईस लाख रुपए मंजूर किए थे। गुजरात में वकालत का स्तर इस हद तक गिरा दिया गया है कि प्राय: हर वकील मोदी द्वारा कही बात को ही कानून मानता है। संजीव भट््ट, राहुल शर्मा, सतीश वर्मा, आरबी श्रीकुमार जैसे पुलिस अफसरों को छोड़ दिया जाए तो बाकी अफसर सरकार की हां में हां मिलाते हैं। प्राय: अन्य पुलिस अफसरों ने फर्जी मुठभेड़ों में उन तथाकथित ‘जिहादी मुसलमानों’ को मौत के घाट उतारा है जिनके बारे में यह कहा गया कि वे नरेंद्र मोदी का ‘खून करने’ आए थे। इन निर्दोष मुसलमानों को इसलिए मारा गया ताकि ‘हिंदू हृदय सम्राट’ की छवि में चार चांद लग जाएं, हिंदुओं के बीच उनके लिए सहानुभूति पैदा हो, भाजपा और संघ परिवार के बीच मोदी के आलोचकों को चुप कराया जा सके, और आखिर में, अल्पसंख्यकों के बीच एक डर पैदा हो ताकि वे भी मोदी को ही वोट दें, किसी और को देंगे तो उनका वही हश्र होगा जो 2002 में हुआ था।
जहां तक गुजरात में सरकारी वकीलों के ज्ञान का स्तर है, उसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि एक कानूनी बहस में सरकारी वकील ने कहा, ‘सर, एससी/एसटी कानून को राज्य सरकार ने संशोधित कर दिया है और आप अब अग्रिम जमानत दे सकते हैं।’ इसके बाद मजेदार तथ्य यह है कि न्यायाधीश इस तर्क के आधार पर जमानत दे देता है। कोई यह तर्क नहीं देता कि केंद्रीय कानून में कोई भी राज्य सरकार किसी किस्म का संशोधन नहीं कर सकती। यह अंधेरगर्दी मोदी के शासन में ही संभव है।
रतन टाटा ने पिछले दिनों एक टीवी चैनल को दिए साक्षात्कार में नरेंद्र मोदी की भूरि-भूरि प्रशंसा की है। क्यों न करें? टाटा को 2200 करोड़ रुपयों का निवेश करना था, इसके लिए उन्हें 9570 करोड़ रुपयों का ऋण गुजरात सरकार ने 0.1 प्रतिशत ब्याज दर से मुहैया कराया; इस ब्याज को टाटा बीस वर्ष बाद चुका सकते हैं। जो जमीन उन्हें नौ सौ रुपए प्रति वर्गमीटर की दर से दी गई, उसका बाजार मूल्य दस हजार रुपए प्रति वर्गमीटर था। कैग की रिपोर्ट के अनुसार, अदानी गु्रप ने अपनी कंपनी अदानी पॉवर लिमिटेड और गुजरात ऊर्जा विकास निगम के बीच हुए समझौते का उल्लंघन किया था। अदानी को 240.08 करोड़ रुपए जुर्माने के रूप में भरने थे। लेकिन अदानी ने सिर्फ 80.80 करोड़ रुपए जमा किए, शेष 160 करोड़ की राशि माफ कर दी गई। इसी कंपनी को समुद्र तट के साथ लगी जमीन की विशाल पट््टी, एक रुपए से बत्तीस रुपए प्रति वर्गमीटर के हिसाब से दे दी गई, जब इसका बाजार भाव पंद्रह सौ रुपए प्रति वर्गमीटर का था। अदानी समूह को यह जमीन उद्योग लगाने और बंदरगाह का विकास करने के लिए दी गई थी, लेकिन उसने नियमों को धता बताते हुए इस जमीन का अच्छा-खासा हिस्सा दूसरे कॉरपोरेट घरानों के हाथों बेच दिया या पट््टे पर दे दिया। खरीदी के दस्तावेजों के भी अनुसार, इस तरह से अधिग्रहीत भूमि को पट््टे पर देना या बेचना गैर-कानूनी है।
हजीरा में एस्सार स्टील कंपनी ने 7,24,687 वर्ग मीटर जमीन पर अतिक्रमण कर लिया, जो कहीं से भी वैध नहीं था। लेकिन मोदी की उदार ‘दानशीलता’ ने एक खास रियायती दर पर एस्सार गु्रप को यह जमीन दे दी। इससे राज्य सरकार को 238.50 करोड़ रुपए का नुकसान हुआ।
मोदी सरकार ने नाभिकीय बिजलीघर के लिए, लार्सन ऐंड टुब्रो कंपनी को रियायती दर पर जमीन मुहैया कराई, जिसमें राज्य के सरकारी खजाने को 128.71 करोड़ रुपए का नुकसान हुआ। नियमों के मुताबिक राज्य के राजस्व विभाग की मूल्य निर्धारण समिति को जमीन का मूल्यांकन करना चाहिए था, लेकिन वास्तव में यह काम जिलास्तर की मूल्य निर्धारण समिति से कराया गया। इस कंपनी को इसके अलावा वडोदरा जिले में भी कुछ जमीनें आबंटित की गर्इं, जिनसे इस कंपनी को 79.71 लाख रुपए के करीब फालतू लाभ मिला।
इसी तरह, निरमा के ‘सेज’ को महुआ में सीमेंट संयंत्र लगाने के लिए 268 हेक्टेयर जमीन आबंटित की गई। मोदी सरकार ने इस अधिग्रहीत जमीन को बंजर भूमि के रूप में वर्गीकृत कर दिया, जबकि सच्चाई यह थी कि इस जमीन पर खेती होती थी और गोचर भूमि के रूप में भी इसका उपयोग होता था। पंद्रह हजार लोगों को अपनी आजीविका से हाथ धोना पड़ा।
भाजपा का ‘विकास पुरुष’ आखिर किसका विकास चाहता है! पिछले दिनों मोदी ने कहा कि वे 2017 तक गुजरात की सेवा करना चाहते हैं। पर उनके समर्थकों की राय में तो अब उन्हें ‘भारत माता’ का ऋण चुकाना चाहिए। जब पहली बार मोदी ने 2001-02 में मुख्यमंत्री की गद््दी संभाली थी तो गुजरात का ऋण 45,301 करोड़ रु. था, पर 2013-14 में यह बढ़ कर 1,76,000 करोड़ रुपए तक पहुंच गया है। प्रतिदिन राज्य सरकार 34.5 करोड़ रु. का ब्याज देने को विवश है। इस ‘आदर्श राज्य’ के अनुभव से मोदी भारत माता का ऋण चुकाएंगे या बढ़ाएंगे?
मनमोहन सिंह ने जब सत्ता संभाली थी, तो उनका नारा भी विकास था। आज जब मोदी का नाम देश का नेतृत्व संभालने के लिए उछाला जा रहा है तब उनका नारा भी देश का विकास है। और अभी से यह ‘विकास पुरुष’ कभी अंबानी और टाटा के साथ उठता-बैठता दिखाई देता है तो कभी दुनिया भर के मुख्य कार्यकारी अधिकारियों के साथ विकास और प्रबंधन के आपसी रिश्तों के बारे में व्याख्यान देते। अमेरिका और ब्रिटेन के दूत भी उन्हें अपने विश्वविद्यालयों और उद्योगों के नुमाइंदों से मिलने के लिए आमंत्रित करते हैं। पिछले दिनों जब मनमोहन सिंह ने रुपए के गिरते मूल्य और गिरती वृद्धि दर के बारे में उद्योगपतियों की बैठक बुलाई तो पांच बड़े उद्योगपति उस बैठक से नदारद रहे। आज के राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय वित्तीय संकट को देखते हुए अब पूंजी किसी किस्म की कोई रोक-टोक नहीं चाहती। राज्य की कल्याणकारी भूमिका, जो साल-दर-साल सिमटती गई है, उसे आज पूरी तरह खारिज कर देना चाहते हैं हमारे उद्योगपति। इसीलिए जब पिछले दिनों डॉलर के मुकाबले रुपया गिरा तो कई आर्थिक सलाहकारों की एक राय यह भी थी कि खाद्य सुरक्षा अधिनियम के लिए निर्धारित नब्बे हजार करोड़ रुपयों के कारण यह सब हुआ है। यह राशि कुल सकल घरेलू उत्पाद की मात्र एक प्रतिशत है।
आज गरीब तबकों के लिए घोषित हो चुकी रियायतों पर मध्यवर्ग और उच्चवर्ग नाक-भौं सिकोड़ता है। इन वर्गों को लगता है कि मोदी ही उनके सपनों को साकार कर सकते हैं। पर मोदी के उभार के लिए निश्चित ही हर क्षेत्र में कांग्रेस का निकम्मापन जिम्मेवार है। कांग्रेस ने गुजरात में ‘हिंदू भावनाओं’ का खयाल रखते हुए 2002 के जनसंहार को कभी चुनावी मुद््दा नहीं बनाया। अन्य दलों की उपस्थिति गुजरात में नगण्य रही।
क्लारा जेटकिन ने अपने समय में कहा था, ‘क्रांति करने में हमारी विफलता के कारण हमें फासिज्म की सजा भुगतनी पड़ेगी।’ यह बात आज भी सच प्रतीत होती है।