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विकास के किफायती मॉडल की ओर - जयंत सिन्‍हा

सुस्त वैश्विक अर्थव्यवस्था में भारत प्रगति की मशाल थामने और दुनिया के विकास में मुख्य भागीदार बनने को तैयार है। अगले दशक में सकल आर्थिक विकास की दृष्टि से भारत लगभग चीन जितनी और अमेरिका से लगभग दोगुनी भागीदारी करने वाला है। भारतीयों के लिए भारत में तैयार उत्पाद और सेवाओं का उपयोग पूरी विकासशील दुनिया में किया जाने वाला है। इसलिए भारत का किफायती विकास मॉडल न सिर्फ मात्रात्मक नजरिये से, बल्कि विकासशील दुनिया के लिए अधिक सतत विकास प्रक्रिया को परिभाषित करने के खयाल से वैश्विक विकास में भागीदारी करने जा रहा है।

आर्थिक उत्पादन की सबसे बढ़िया कसौटी और विश्व बैंक के आंकड़ों पर आधारित क्रय शक्ति समता के आधार पर दुनिया की तीन सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाएं चीन (18 ट्रिलियन डॉलर), अमेरिका (17.4 ट्रिलियन डॉलर) व भारत (7.4 ट्रिलियन डॉलर) हैं। यदि अगले दशक में चीनी अर्थव्यवस्था 5 फीसदी औसत वार्षिक विकास दर से बढ़ती है तो यह वैश्विक जीडीपी में अतिरिक्त 11.3 ट्रिलियन डॉलर की भागीदारी करेगी। भारतीय अर्थव्यवस्था 8 प्रतिशत औसत वार्षिक विकास दर से बढ़े तो 8.6 ट्रिलियन डॉलर की भागीदारी करेगी। 2.5 प्रतिशत की औसत वार्षिक विकास दर पर अमेरिकी अर्थव्यवस्था वैश्विक अर्थव्यवस्था में सिर्फ लगभग 4.9 ट्रिलियन डॉलर की हिस्सेदारी करेगी।

किंतु ये आंकड़े सिर्फ एक ही पक्ष दिखाते हैं। इससे भी अहम बात यह है कि आर्थिक उत्पादन में भारत का विकास पूर्वी एशियाई देशों द्वारा अपनाए गए उत्पादन और निवेश आधारित विकास मॉडल से गुणात्मक रूप से भिन्न् रहने की संभावना है। ऐसा लगता है कि हमारे मॉडल में काफी कम ऊर्जा, प्राकृतिक संसाधन, कार्बन उत्सर्जन और प्रति इकाई धन की जरूरत होगी। इसलिए यह किफायती और सतत विकास की तरफ रास्ता दिखा रहा है।

भारत अपने संसाधनों का सतर्कता के साथ उपयोग करता है। विश्व बैंक और रिसोर्सेस फॉर द फ्यूचर डाटा के अनुसार चीन भारत की तुलना में क्रयशक्ति समानता यानी पीपीपी पर आधारित जीडीपी में प्रति इकाई 52 प्रतिशत अधिक ऊर्जा का इस्तेमाल करता है। आंकड़े बताते हैं कि प्रति इकाई पीपीपी जीडीपी के लिहाज से चीन भारत की तुलना में 3-4 गुना अधिक स्टील और सीमेंट का उपयोग करता है। इसी आधार पर चीन का कार्बन उत्सर्जन भारत के उत्सर्जन की तुलना में 78 प्रतिशत अधिक है। वैसे भारत की पूंजी उत्पादकता भी अन्य प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं की तुलना में अधिक है।

सस्ते उत्पाद और बड़ी आबादी को सेवाएं देने के प्रयास में युवा आबादी भारत के किफायती विकास मॉडल को आगे बढ़ाती है। वैसे भी भारत के पास खुली, बाजार-नियंत्रित अर्थव्यवस्था है। इस वजह से हमारे पास प्रतियोगी निर्माण क्षेत्र, विस्तृत गैर-व्यापार सेवा क्षेत्र और रोजगार प्रधान, लेकिन तुलनात्मक रूप से छोटा कृषि क्षेत्र है। भारत आकांक्षी मध्य वर्ग उपभोक्ताओं के लिए सस्ते उत्पादकों की विस्तृत श्रंखला बनाता है। रिसर्च लैब, श्रंखलाबद्ध उद्यमी, समृद्धशाली पूंजी फर्में और मददगार नियामकों से मिलकर बना तंत्र नई औद्योगिक धारा का सृजन कर रहा है। ईकॉमर्स में अमेजन, फ्लिपकार्ट और स्नैपडील जैसी कंपनियों ने प्रयोगधर्मी प्रबंधन, बड़ा तंत्र, भुगतान और वित्तीय सेवाएं उपलब्ध करा लाखों छोटे उत्पादकों और व्यापारियों को ऑनलाइन कर दिया है।

इसी तरह 11 भुगतान बैंक कम खर्च वाले सुविधाजनक बैंक खाते उपलब्ध कराकर वित्तीय परिदृश्य को बदलने ही वाले हैं। इन खातों तक किराना स्टोरों और डाकघरों के जरिये पहुंचा जा सकेगा।

अहम बात यह है कि भारतीय उद्यमी आर्थिक स्तर पर सबसे नीचे के लोगों के जीवन में बड़ा बदलाव लाने की कोशिश कर रहे हैं। भारत के गरीबों को बिजली की समस्याओं का समाधान, खाना बनाने के लिए ईंधन, सस्ती और पहुंच वाली स्वास्थ्य सेवाओं, साफ पानी, प्राथमिक शिक्षा और वित्तीय सेवाओं की बहुत जरूरत है।

गरीबों को सुविधा मुहैया कराने के खयाल से कदम उठाने जरूरी हैं। इसी विचार से वित्तीय समावेशन को प्रोत्साहन देने के लिए सरकार ने देश के हर परिवार का बैंक खाता होने की बात को जरूरी समझा। जनधन योजना के जरिए हमने 100 दिनों में सुनिश्चित किया कि 100 प्रतिशत भारतीय परिवारों के बैंक खाते होने चाहिए। सार्वजनिक क्षेत्र व निजी क्षेत्र के बैंकों को सर्वे शिविर लगाने और गैरखाताधारी परिवारों को शामिल करने के लिए अभियान चलाने को कहा गया। इस तरह सरकारी प्रयास से वित्तीय समावेशन हासिल किया गया।

लेकिन अब हमें इससे आगे बढ़कर व्यापक आधार वाले वित्तीय प्लेटफॉर्म को हासिल करना है। हमारे पास इन खातों के जरिये बीमा और म्युचुअल फंड जैसे वित्तीय उत्पादों को उपलब्ध कराने के लिए कई तरह के निजी बैंक हैं। यह नया मार्केट इस क्षेत्र में हमारे प्रमुख नियामकों - भारतीय रिजर्व बैंक और सेबी की सतर्क निगाह में विकसित होगा। हमें चिकित्सा टेक्नोलॉजी, पानी, स्वच्छता या स्वच्छ ऊर्जा जैसे अन्य उद्योगों में इसी तरह की सहभागिता करनी होगी। भारत में नवाचार को बढ़ावा दे रहे लोग और उद्यमी किफायती तथा नई किस्म की अर्थव्यवस्था बना रहे हैं जो सिर्फ उनके लिए ही नहीं है जो अच्छी आर्थिक स्थिति में हैं, बल्कि सबसे आखिरी पायदान पर रहे लोगों की भी वे मदद कर रहे हैं।

(जयंत सिन्‍हा केंद्रीय वित्‍त राज्‍यमंत्री हैं। ये उनके द्वारा सिंबायोसिस इंटरनेशनल यूनिवर्सिटी के 12वें दीक्षांत समारोह में दिए गए भाषण के संपादित अंश हैं