Deprecated (16384): The ArrayAccess methods will be removed in 4.0.0.Use getParam(), getData() and getQuery() instead. - /home/brlfuser/public_html/src/Controller/ArtileDetailController.php, line: 73
 You can disable deprecation warnings by setting `Error.errorLevel` to `E_ALL & ~E_USER_DEPRECATED` in your config/app.php. [CORE/src/Core/functions.php, line 311]
Deprecated (16384): The ArrayAccess methods will be removed in 4.0.0.Use getParam(), getData() and getQuery() instead. - /home/brlfuser/public_html/src/Controller/ArtileDetailController.php, line: 74
 You can disable deprecation warnings by setting `Error.errorLevel` to `E_ALL & ~E_USER_DEPRECATED` in your config/app.php. [CORE/src/Core/functions.php, line 311]
Warning (512): Unable to emit headers. Headers sent in file=/home/brlfuser/public_html/vendor/cakephp/cakephp/src/Error/Debugger.php line=853 [CORE/src/Http/ResponseEmitter.php, line 48]
Warning (2): Cannot modify header information - headers already sent by (output started at /home/brlfuser/public_html/vendor/cakephp/cakephp/src/Error/Debugger.php:853) [CORE/src/Http/ResponseEmitter.php, line 148]
Warning (2): Cannot modify header information - headers already sent by (output started at /home/brlfuser/public_html/vendor/cakephp/cakephp/src/Error/Debugger.php:853) [CORE/src/Http/ResponseEmitter.php, line 181]
Notice (8): Undefined variable: urlPrefix [APP/Template/Layout/printlayout.ctp, line 8]news-clippings/विकास-को-उल्टी-दिशा-में-न-मो‌ड़ें-सुभाषिनी-अली-7581.html"/> न्यूज क्लिपिंग्स् | विकास को उल्टी दिशा में न मो‌ड़ें- सुभाषिनी अली | Im4change.org
Resource centre on India's rural distress
 
 

विकास को उल्टी दिशा में न मो‌ड़ें- सुभाषिनी अली

पिछले हफ्ते दो रिपोर्टें प्रकाशित हुई हैं, जिनमें कई वर्षों के बाद भारत के गरीबों, महिलाओं और बच्चों की स्थिति के बारे में कुछ ऐसे आंकड़े छपे, जिनसे कुछ आशा पैदा हुई। वर्षों से भारतीय बच्चों के बारे में यही सच्चाई बार-बार सामने आती थी, कि उनमें से तकरीबन आधे कुपोषण के शिकार हैं।

यूनिसेफ और महिला व बाल कल्याण मंत्रालय द्वारा किए गए एक हालिया सर्वेक्षण के अनुसार, 2005-07 में जहां देश्‍ा के 45.1 फीसदी बच्चों का वजन बहुत कम था, 2013 में यह आंकड़ा घटकर 30.7 प्रतिशत पर पहुंच गया। छह वर्षों में बच्चों की स्थिति में हुआ यह सुधार काफी उत्साहवर्धक है।

अंतरराष्ट्रीय अन्न नीति शोध संस्‍था की वार्षिक रिपोर्ट भी इन्हीं दिनों में प्रकाशित हुई इसके मुताबिक, जिन 76 देशों का सर्वेक्षण किया गया है, उनमें भारत का स्‍थान, जो पहले तिरसठवां था, अब पचपनवां हो गया है। रिपोर्ट के अनुसार, अब भारत में भूख की समस्या घबराहट पैदा करने वाली से घटकर गंभीर हो गई है।

संस्था का यह भी मानना है कि बच्चों और भूखों की स्थिति में हुए सुधार की वजह सरकारी योजनाओं का बेहतर (आदर्श नहीं, लेकिन बेहतर) क्रियान्वयन और विस्तार है। ये योजनाएं हैं- राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्‍थ्य योजना, आंगनवाड़ी योजना, सार्वजनिक वितरण प्रणाली और महात्मा गांधी ग्रामीण रोजगार योजना।

कितनी अजीब बात है कि जिन योजनाओं को हमारे देश के उदारवादी अर्थशास्‍त्री, बुद्ध‌िजीवी, विशेषज्ञ, तमाम प्रशासनिक अधिकारी और बड़े राजनीतिक दल पैसे का दुरुपयोग बताते हैं, उन्हीं की वजह से करोड़ों गरीबों और बच्चों के अंधकारमय जीवन में आशा की किरण फैली है।

मगर रिपोर्टों के निष्कर्ष से यह भी साफ होता है कि सुधार का मतलब यह नहीं है कि भूख और कुपोषण की समस्या खत्म हो गई है। आज भी देश में भूख और बच्चों में कुपोषण की समस्या काफी गंभीर बनी हुई है। ऐसे में, शोध संस्‍था ने सरकार की कल्याणकारी योजनाओं में और ‌अधिक विस्तार की जबरदस्त आवश्यकता की ओर जो इशारा किया है, वह वाकई काबिल-ए-गौर है।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने चुनावी अभियान के दौरान और उसके बाद हर मौके पर घोषणा की है कि उनकी सरकार गरीबों की है, और उनकी समस्याओं का समाधान करना ही उनकी पहली प्राथमिकता होगी। मगर हो रहा है, इसका ठीक उल्टा। ग्रामीण रोजगार योजना हमारे देश का अनोखा कानून है, जो हर ग्रामीण परिवार को हर वर्ष सौ दिन का काम देता है।

क्रियान्वयन में तमाम त्रुटियों और भ्रष्टाचार के बावजूद इसकी वजह से करोड़ों गरीब ग्रामीणों को काफी राहत मिली है। मगर केंद्र सरकार ने अपने पहले बजट में पहले तो रोजगार कानून पर होने वाले खर्च को ज्यों का त्यों रखा। लेकिन उसके तुरंत बाद कानून को निष्प्रभावी बनाने का काम शुरू हो गया। देश भर में इस कानून के तहत लाखों मजदूर ऐसे हैं, जिनको छह महीने से मजदूरी नहीं मिली है।

उनका बकाया पैसा देने का वायदा तो नई सरकार ने किया है, मगर उसका भुगतान अभी तक नहीं किया। इतना ही नहीं, मोदी सरकार ने राज्यों को देय मजदूरी में पचास फीसदी की कटौती करते हुए यह भी तय किया है कि अब उनके श्रम से ज्यादा मशीनों पर भरोसा किया जाएगा। इन हालात में, भूख और कुपोषण के संदर्भ में अगले वर्ष सर्वेक्षण के नतीजों से ज्यादा उम्मीद नहीं की जा सकती।