Deprecated (16384): The ArrayAccess methods will be removed in 4.0.0.Use getParam(), getData() and getQuery() instead. - /home/brlfuser/public_html/src/Controller/ArtileDetailController.php, line: 73
 You can disable deprecation warnings by setting `Error.errorLevel` to `E_ALL & ~E_USER_DEPRECATED` in your config/app.php. [CORE/src/Core/functions.php, line 311]
Deprecated (16384): The ArrayAccess methods will be removed in 4.0.0.Use getParam(), getData() and getQuery() instead. - /home/brlfuser/public_html/src/Controller/ArtileDetailController.php, line: 74
 You can disable deprecation warnings by setting `Error.errorLevel` to `E_ALL & ~E_USER_DEPRECATED` in your config/app.php. [CORE/src/Core/functions.php, line 311]
Warning (512): Unable to emit headers. Headers sent in file=/home/brlfuser/public_html/vendor/cakephp/cakephp/src/Error/Debugger.php line=853 [CORE/src/Http/ResponseEmitter.php, line 48]
Warning (2): Cannot modify header information - headers already sent by (output started at /home/brlfuser/public_html/vendor/cakephp/cakephp/src/Error/Debugger.php:853) [CORE/src/Http/ResponseEmitter.php, line 148]
Warning (2): Cannot modify header information - headers already sent by (output started at /home/brlfuser/public_html/vendor/cakephp/cakephp/src/Error/Debugger.php:853) [CORE/src/Http/ResponseEmitter.php, line 181]
Notice (8): Undefined variable: urlPrefix [APP/Template/Layout/printlayout.ctp, line 8]news-clippings/विकास-भी-चाहिए-और-रोजगार-भी-एन-के-सिंह-10933.html"/> न्यूज क्लिपिंग्स् | विकास भी चाहिए और रोजगार भी-- एन के सिंह | Im4change.org
Resource centre on India's rural distress
 
 

विकास भी चाहिए और रोजगार भी-- एन के सिंह

पिछला एक वर्ष भारत के लिए उथल-पुथल भरा रहा है। अपनी संप्रभुता, सीमाओं की सुरक्षा के साथ-साथ राष्ट्रवाद की आक्रामक अभिव्यक्तियों से उसे जूझना पड़ा है। वहीं, इस क्षेत्र की भू-राजनीति अब भी अनिश्चित और अस्थिर बनी हुई है। चीन की विकास दर घट रही है, लिहाजा अपने आर्थिक रसूख को कायम रखने के लिए वह नए-नए तरीके अपना रहा है। दक्षिण चीन सागर विवाद पर ट्रिब्यूनल के फैसले को न मानना, ‘वन बेल्ट वन रोड' (सिल्क रोड आर्थिक गलियारा और 21वीं सदी के समुद्री सिल्क रोड) पर तेजी से आगे बढ़ना और तिब्बत से निकलने वाली नदियों के पानी के रुख में तब्दीली से जुड़ी खबरें उसकी इन्हीं कोशिशों के चंद उदाहरण हैं।

वह पारंपरिक रूप से भारत का सहयोगी माने जाने वाले रूस के साथ भी दोस्ती की नई पींगे बढ़ा रहा है, और पाकिस्तान के साथ उसकी कदमताल जारी है ही। इससे निश्चय ही इस क्षेत्र की भू-राजनीति और जटिल बनने वाली है। उधर अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव के नतीजे को लेकर तस्वीर भले ही साफ दिखती हो, मगर नए अमेरिकी मुखिया के साथ चीन की विदेश नीति की दिशा क्या होगी, इस पर अब तक भ्रम की चादर पड़ी है। मगर हां, इस तस्वीर के बीच भी भारत ने कई मोर्चों पर उल्लेखनीय प्रगति की है।

हमारी पहली प्रगति विदेश नीति के मोर्चे पर हुई है। हाल के वर्षों में रणनीतिक तौर पर हम अमेरिका से इतने करीब कभी नहीं रहे, जितने अभी हैं। साथ ही, अफ्रीका, लातीन अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड तक भी हमारी पहुंच मजबूत हुई है। देश-दुनिया में मोदी के नेतृत्व को व्यापक रूप से मान्यता मिली है। दूसरी सफलता आर्थिक मोर्चे पर है। मामूली मुद्रास्फीति के साथ हमारी अर्थव्यवस्था 7.4 फीसदी की दर से कुलांचे भर रही है। चालू खाते का घाटा स्थिर है और अधिक उदार मौद्रिक नीति की ओर भी हमने कदम बढ़ाया है। विश्व में सबसे तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था हमारा एक सकारात्मक पक्ष है ही।

मगर भारत में निजी निवेश की रफ्तार अब भी सुस्त है। हालांकि बैंकों के संचित कोष पर पाबंदियों को हटाकर और इन्फ्रास्ट्रक्चर में बड़े पैमाने पर निवेश करके निजी निवेश को गति देने की कोशिश की जा रही है, मगर इन कोशिशों का लाभ मिलने में वक्त लगेगा। हमने राजनीतिक मोर्चे पर भी खूब प्रगति की है। भाजपा इससे पहले इतनी मजबूत कभी नहीं रही, जितनी कि पिछले एक वर्ष में रही है। इसके खाते में कई राज्य सरकारें आई हैं और कई क्षेत्रीय पार्टियों ने भी इसका दामन थामा है। हालांकि इससे ऐतराज नहीं कि अब भी काफी कुछ उत्तर प्रदेश, पंजाब और गुजरात के विधानसभा चुनावों पर निर्भर करेगा।

इन तमाम क्षेत्रों के अलावा मैं यहां दो अन्य संदर्भों की चर्चा करना चाहूंगा, जिसमें पहला विश्व बैंक से जुड़ा है। विश्व बैंक हर वर्ष ‘ईज ऑफ डूइंग बिजनेस' यानी कारोबारी माहौल को लेकर दुनिया के तमाम देशों की रैंकिंग जारी करता है। यह सूची एक तरह से निवेश के माहौल और संभावित विकास के अनुमान का खाका होती है। हालिया सूची में हमारी स्थिति में पिछले वर्ष के मुकाबले बहुत मामूली सुधर हुआ है और महज एक पायदान ऊपर चढ़कर हम 130वें स्थान पर पहुंचे हैं। यह मोदी सरकार के उन वादों से कोसों दूर है, जिसमें भारत को शीर्ष 50 देशों में शुमार किए जाने की बात कही गई थी।

बेशक इस सूची के गुणा-भाग के तरीके पर सवाल उठाया जा सकता है, मगर कुछ मामलों में हमारी गति वाकई निराशाजनक है। कारोबार को शुरू करने, निर्माण-कार्यों की अनुमति लेने, कर्ज मिलने और दिवालियेपन का समाधान निकालने में हम उम्मीद के मुताबिक काम नहीं कर सके हैं। जाहिर है, इस संदर्भ में छोटे से छोटे फैसले लेने और केंद्र और राज्यों के बीच नीतिगत मामलों में सामंजस्य बनाने की दरकार है। हमें अपनी गति दोगुनी करनी होगी, तभी इस सूची में हम अपना प्रदर्शन बेहतर कर सकते हैं। मेरा मानना है कि नीति आयोग के उपाध्यक्ष के नेतृत्व में नीति आयोग, औद्योगिक नीति व संवर्धन विभाग (डीआईपीपी) और वित्त मंत्रालय का एक संयुक्त कार्य समूह बनाया जा सकता है, जो इस दिशा में काम करे।

मेरा मानना है कि मोदी सरकार द्वारा उठाए गए कदमों से मिले फायदे को हमें यूं ही जाया नहीं होने देना चाहिए। दूसरा संदर्भ नई नौकरियों के सृजन से जुड़ा है। मैं हाल ही में एक टीवी-डिबेट में शामिल हुआ था, जहां सभी की यही राय थी कि अगर हर महीने दस लाख नौकरियां पैदा करनी हैं, तो हमें नई रणनीति अपनानी ही होगी। रणनीति की इसलिए भी दरकार है, क्योंकि प्रौद्योगिकी में बदलाव, डिजिटल प्लेटफॉर्म, इंटरनेट के विस्तार और चौथी औद्योगिक क्रांति की वजह से नौकरियां जितनी तेजी से खत्म हो रही हैं, उतनी तेजी से पैदा नहीं हो रहीं। विश्व बैंक का अनुमान है कि विध्वंसकारी तकनीकी बदलाव के कारण करीब 68 फीसदी भारतीयों की नौकरियां खतरे में हैं।

बेशक तकनीकी समावेशन को रोककर हम खुद को स्पर्धा से बाहर नहीं कर सकते। मगर जिन तकनीकों का चरित्र श्रमिकों का विस्थापन है, उसे लेकर नए दृष्टिकोण अपनाने की जरूरत है। चीन का उदाहरण हमारे सामने है, जहां मजदूरी की दरों में उल्लेखनीय इजाफा होने के कारण श्रम-प्रधान उद्योग विकल्प के रूप में देखे जाने लगे हैं। भारत में भी कपड़ा, रत्न व आभूषण, चमड़ा, हार्डवेयर, इलेक्ट्रॉनिक्स जैसे श्रम-प्रधान उद्योगों को लेकर काम किए जाने की जरूरत है। नीति आयोग ने कुछ कदम जरूर उठाए हैं, मगर श्रम कानूनों (जो अब राज्य के अधिकार-क्षेत्र में है), भूमि अधिग्रहण की मंजूरी और अन्य नीतिगत बदलावों पर जल्दी से जल्दी काम नहीं किया गया, तो हम यह अवसर गंवा सकते हैं।

महज यह मान लेना कि हमारी पहल ही पर्याप्त नौकरियां पैदा करने के लिए काफी होगी, इस मामले को सतही तौर पर देखना होगा। स्किल इंडिया कार्यक्रम को अगर अत्याधुनिक बनाना है, तो हमें 21वीं सदी के अनुकूल शिक्षा और कौशल को बढ़ावा देना होगा। इससे जुड़े कार्यक्रमों में सुधार करने होंगे। इसके साथ, सामाजिक क्षेत्रों की नीतियों को भी इसके अनुकूल बनाना होगा। अगर हम ऐसा करने में सफल रहे, तो यकीन मानिए कि नौकरी के हिसाब से यह न सिर्फ ग्रामीण भारत के लिए, बल्कि तकनीक में बदलाव के कारण ‘बेरोजगार' होने वाले भारत के लिए भी काफी सुखद रहेगा। यह दौर सचमुच खत्म होना चाहिए, जिसमें विकास तो हो रहा है, मगर बेरोजगारी भी है। यह तभी संभव है, जब रोजगार का लगातार सृजन हो और विकास-दर सतत गति से आगे बढ़े। जाहिर है, भारत अभी बदलाव के चौराहे पर है।
(ये लेखक के अपने विचार हैं)