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विदेशी कबाड़ कंप्यूटर तो नहीं ले आए आप!

नई दिल्ली [जागरण ब्यूरो]। आपको शायद जानकारी न हो। अभी कुछ समय पहले ही आपने सस्ते दाम पर जिस कंप्यूटर या लैपटाप को खरीदा है, वह विकसित देशों का पुराना कबाड़ भी हो सकता है। जी हां! विकसित देश अपने पुराने और कबाड़ हो चुके इलेक्ट्रानिक आइटम खासकर, कंप्यूटर और लैपटाप, भारत जैसे देशों में खपा रहे हैं। चैरिटी के नाम पर आयात किए जाने वाले इस कचरे का हालांकि जल्दी ही देश में प्रवेश बंद हो सकता है। पर्यावरण मंत्रालय ने इसके लिए नियम बनाने की कवायद शुरू कर दी है।

केंद्रीय पर्यावरण मंत्री जयराम रमेश ने सोमवार को संसद में माना कि देश में इस समय ई-कचरे को नियंत्रित करने के लिए अलग से कोई कानून नहीं है। साथ में यह भी कि भारत न केवल बड़े पैमाने पर ई-कचरे का आयात करता है बल्कि निर्यात भी करता है। हालांकि उनके मुताबिक, सरकार ने ई-कचरे को नियंत्रित करने की तैयारी कर ली है। इसके लिए मंत्रालय ने नियमों का खाका तैयार कर कानून मंत्रालय को भेज दिया है। नए नियमों का ऐलान 15 मई तक किए जाने की उम्मीद है। इन नियमों के सहारे सरकार रीसाइकिलिंग उद्योग को संगठित स्वरूप देने की तैयार कर रही है। इसके लिए एक विशेष योजना बनाई जा रही है। इसमें रीसाइकिलिंग इकाई स्थापित करने के लिए केंद्र और राज्य सरकार 50-50 प्रतिशत आर्थिक सहायता देंगे।

पर्यावरण मंत्री ने बताया कि देश में ई-कचरे की रीसाइकिलिंग का 90 फीसदी काम असंगठित क्षेत्र में हो रहा है। इस पर सरकार का कोई जोर नहीं है। असंगठित क्षेत्र में मौजूद ई-कचरे को रीसाइकिल करने वाली इकाइयां बड़े पैमाने पर प्रदूषण का कारण बन रही हैं। लेकिन इनसे जुड़े लोगों के रोजगार की चिंता करते हुए सरकार इनके खिलाफ कोई कड़ी कार्रवाई नहीं करती। रमेश ने मुरादाबाद और सीलमपुर का विशेष उल्लेख करते हुए कहा कि इन स्थानों का हाल देखने के बाद उन्होंने केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड को सख्त कदम उठाने की हिदायत दी है।

गौरतलब है कि ई-कचरे की समस्या देश में गंभीर रूप लेती जा रही है। केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड का सर्वे बताता है कि भारत में कंप्यूटर, मोबाइल फोन और अन्य इलेक्ट्रानिक उपकरणों से पैदा होने वाले कचरे के 2012 तक आठ लाख मीट्रिक टन हो जाने की आशंका है। सर्वेक्षण के मुताबिक, 2005 में ही भारत में करीब डेढ़ लाख मीट्रिक टन ई-कचरा पैदा हो रहा था। इतनी बड़ी मात्रा में मौजूद ई-कचरे का प्रबंधन पर्यावरण मंत्रालय और प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड 'हजार्डियस वेस्ट रेगुलेशन रूल्स' के सहारे करते हैं।