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विवाद निपटाने का प्रभावी माध्यम हैं लोक-अदालतें- पी सदाशिवम्

नई दिल्ली। भारत के प्रधान न्यायाधीश पी सदाशिवम ने लोक अदालतों के सदस्यों को आगाह किया है कि वे यह तय करें कि उनके फैसलों को सहमति देने के लिए वादी धमकाए या गुमराह न किए जाएं क्योंकि ये फैसले अंतिम हैं। इनके खिलाफ अपील नहीं की जा सकती।

 

लोक अदालतों को विवाद निपटाने का एक प्रभावी माध्यम मानते हुए प्रधान न्यायाधीश ने कहा कि वे गरीबों, कमजोरों और कम सूचित वर्गों को एक सुगम मंच मुहैया करवाते हैं और इनका इस्तेमाल अनैतिक पक्षों के धोखाधड़ी के लिए करने की इजाजत नहीं दी जानी चाहिए। वे सुप्रीम कोर्ट में राष्ट्रीय लोक अदालत का उद्घाटन कर रहे थे। इस अदालत में लगभग 39 लाख मामले लिए जाएंगे, जिनमें सुप्रीम कोर्ट, हाई कोर्ट और जिला अदालतों के मामले शामिल हैं।

उन्होंने कहा कि व्यवस्था में भरोसा बनाए रखने के लिए हर वर्तमान सदस्य के लिए जरूरी है कि वह उसके सामने लाए गए हर मामले को किसी दबाव, धमकी, गलत प्रभाव, प्रलोभन और प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष गलतबयानी के बिना शांतिपूर्ण तरीके से निपटाएं। चूंकि एक लोक अदालत का दिया गया फैसला सभी पक्षों के लिए अंतिम व बाध्यकारी होता है और इसके खिलाफ किसी भी अदालत में अपील नहीं की जा सकती, इसलिए अध्यक्षता कर रहे सदस्यों की जिम्मेदारी है कि वे यह तय करें कि सभी पक्षों को निपटान की सभी शर्तें समझ आ रही हैं। प्रधान न्यायाधीश ने कहा कि राष्ट्रीय लोक अदालतें देश में हर साल लगाई जा सकती हैं। प्रभावी प्रशासन के लिए सभी जिला और तहसील अदालतों का कंप्यूटरीकरण किया गया है और उन्हें एक-दूसरे से जोड़ा गया है। जज जीएस सिंघवी ने कहा कि विभिन्न अदालतों और इस अदालत  में न्यायाधीश और वकील के तौर पर मैंने पाया है कि त्वरित न्याय दिलाने के लिए लोक अदालत और मध्यस्थ शक्तिशाली माध्यम हैं।

राष्ट्रीय कानूनी सेवा प्राधिकरण के कार्यकारी अध्यक्ष जज सिंघवी ने कहा कि मुझे यकीन है कि आज लगाई गई और भविष्य में लगाई जाने वाली लोक अदालतों में वादी जनता और अन्य को स्थायी राहत निश्चित तौर पर मिलेगी। देश की अदालतों में लगाई जाने वाली राष्ट्रीय लोक अदालत लगभग 39 लाख मामलों को देखेगी। इन मामलों में दुर्घटना संबंधी दावे, चेक बाउंस, आपराधिक और बैंक रिकवरी के मामले शामिल होंगे। न्यायमूर्ति सदाशिवम ने कहा कि सूची में शामिल किए गए सबसे ज्यादा मामले मध्यप्रदेश और महाराष्ट्र के हैं। इनकी संख्या क्रमश: 7,97,484 और 5,66,102 है। वहीं उत्तर प्रदेश, तमिलनाडु और पश्चिम बंगाल के लगभग चार लाख मामले हैं। ये मामले हर राज्य की लोक अदालतों में भेज दिए गए हैं। तीन लाख मामले अकेले दिल्ली की अदालतों में लिए जाएंगे।

सुप्रीम कोर्ट लगभग 105 मामलों की सुनवाई और निपटान करने की कोशिश करेगा।