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विवादों की नींव पर नई राजधानी- एस श्रीनिवासन

आंध्र प्रदेश की नई राजधानी की नींव रखने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 22 अक्तूबर को अमरावती पहुंच रहे हैं। अमरावती गुंटूर जिले में कृष्णा नदी के किनारे बसा गांव है। आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू का सपना है कि वह इसे 21वीं सदी के सिंगापुर के रूप में राजधानी के तौर पर गढ़ें, जो इस इलाके के विकास और तरक्की को रफ्तार देने में हैदराबाद व बेंगलुरू जैसे शहरों को भी पीछे छोड़ दे।

इस बड़े समारोह के लिए तैयारियां काफी पहले से शुरू हो चुकी हैं। विगत छह जून को चंद्रबाबू नायडू ने अपनी पत्नी और बेटे के साथ जिले के एक गांव में पहुंचकर भूमि-पूजन समारोह में हिस्सा लिया था। उस मौके पर केंद्रीय वाणिज्य मंत्री निर्मला सीतारमण भी आनंदित भीड़ का हिस्सा बनी थीं। चंद्रबाबू नायडू ने तब एक सघन जन-संपर्क अभियान की भी शुरुआत की थी और निर्वाचित जन-प्रतिनिधियों व लोगों का आह्वान किया था कि वे नई राजधानी के निर्माण-कार्य के लिए सूबे के सभी इलाकों से मिट्टी और जल संग्रहित करें। उन्होंने खुद अपने पैतृक घर से मिट्टी और जल लिया था और उम्मीद जताई थी कि राज्य का हर व्यक्ति ऐसा करेगा। यही नहीं, इस अभियान को राष्ट्रभक्ति का रंग देने के लिए उन्होंने जन्मभूमि कमिटी से अनुरोध किया कि वह स्वतंत्रता सेनानियों और समाजसेवियों के घरों से भी मिट्टी और जल हासिल करे।

'हमारी मिट्टी, हमारा जल और हमारी अमरावती' का नारा देकर चंद्रबाबू नायडू ने राजधानी बनाने की परियोजना के पक्ष में जन-समर्थन जुटाने की कोशिश की है। इस परियोजना को एक 'पावन' कर्म बताते हुए नायडू ने अपने अधिकारियों से कहा है कि वे गांवों और शहरों में कलश लेकर घर-घर जाएं और आम जनता से आशीर्वाद के रूप में उसमें मिट्टी और जल डालने का अनुरोध करें। यह पूरी कवायद सहभागिता की लगे, इसके लिए उन्होंने लोगों से यह भी कहा है कि वे अपने सुझाव भेजें। उन सुझावों को अगले सौ सालों तक संरक्षित रखा जाएगा।

दरअसल, चंद्रबाबू नायडू इस आलंकारिक अभियान के परदे में बड़ी चतुराई से तेलुगू गौरव की आहत भावनाओं को अपने पक्ष में भुनाना चाहते हैं। पिछले साल राज्य के बंटवारे के बाद बने पड़ोसी तेलंगाना के हाथों हैदराबाद गंवाने से तेलुगू लोग बेहद दुखी हैं। हैदराबाद को 'आईटी हब' बनाने का श्रेय नायडू को ही जाता है और इसलिए उन्होंने शपथ ली है कि वह एक ऐसी नई राजधानी बनाएंगे, जो उससे बेहतर होगी, जिसे उनके राज्य के लोग छोड़ आए हैं। उन्होंने दुर्भाग्य को अवसर में बदलने के प्रयास के तहत ही नई राजधानी बनाने का फैसला किया। नई राजधानी क्षेत्र के लिए करीब 7,068 वर्ग किलोमीटर भूमि की पहचान की गई, जिसमें से 225 वर्ग किलोमीटर अमरावती के लिए रखा गया है, जो राजधानी का केंद्र होगी। वैश्विक स्तर की सुंदरता प्रदान करने के अलावा नायडू का मकसद इसे आर्थिक विकास का ड्राइवर बनाने का भी है। इसीलिए वह इसे औद्योगिक, शैक्षिक और सर्विस कोरिडोर से भी जोड़ना चाहते हैं।

लेकिन इस भव्य योजना को कई विवादों का भी सामना करना पड़ रहा है। इनमें से सबसे बड़ा विवाद जमीन अधिग्रहण से जुड़ा है। अमरावती देश के कुछ सबसे उपजाऊ इलाकों में से एक है, जहां महज 10 से 15 फीट नीचे ही भू-जल उपलब्ध है। जाहिर है, यह बहुफसली जमीन है। पूर्व केंद्रीय शहरी विकास सचिव के सी शिवरामकृष्णन ने इतनी उर्वर भूमि पर नई राजधानी बनाने के खिलाफ सरकार को आगाह किया था। नई राजधानी के लिए जमीन तलाशने के शासनादेश पर उन्होंने यह सलाह दी थी कि एक नई राजधानी गढ़ने की बजाय राज्य के मौजूदा शहरों में से ही किसी एक को इसके लिए तैयार किया जाना चाहिए।

कुछ लोग नायडू के इस कदम को 'रियल एस्टेट कारोबार' के मुफीद बताकर खारिज कर रहे हैं, तो कई लोगों का कहना है कि तमाम पार्टियों के नेताओं में किसानों से जमीन खरीदने की होड़ लग गई है, ताकि वे उससे मुनाफाखोरी कर सकें। बहरहाल, आलोचकों के मुताबिक, राज्य सरकार द्वारा किसानों की जमीन के अधिग्रहण के लिए तरह-तरह के तरीके अपनाए जा रहे हैं, यानी उनसे जबरन जमीनें ली जा रही हैं या फिर डरा-धमकाकर। किसानों पर यह भी दबाव डाला जा रहा है कि अगर उन्होंने अपनी रजामंदी नहीं दी, तो उनके हाथ से जमीन तो जाएगी ही, जेब में एक रुपया भी नहीं आएगा। वैसे कई किसान यह मानते हैं कि वे अपनी जमीन इसलिए बेच रहे हैं कि खेती-किसानी अब लाभकारी नहीं रही और कई ने तो अपनी सहमति इसलिए दे दी है कि उनकी अगली पीढ़ी खेती करने को तैयार नहीं है। ऐसी भी खबरें हैं कि पीढि़यों से खेती करने वाले अनेक किसान मुआवजा लेने के बाद खुद को असुरक्षित महसूस कर रहे हैं, क्योंकि उन्हें अपनी आजीविका के लिए दूसरा कुछ करना आता ही नहीं।

 

हालांकि, सरकार गुलाबी तस्वीर पेश करने में व्यस्त है। लेकिन कई तथ्य आलोचकों को चिंतित करते हैं। अनुमान है कि राजधानी क्षेत्र में लोगों की संख्या करीब 80 से 90 प्रतिशत अधिक हो जाएगी। फिर कई लोग वहां आईटी इंडस्ट्री के आने को लेकर भी आशंका जता रहे हैं, क्योंकि बहुत सारी कंपनियां अभी विस्तार करने के मूड में नहीं हैं। कुशल कामगारों की उपलब्धता भी एक बड़ी चुनौती है। खबरें बता रही हैं कि इलाके के कृषि मजदूरों का बहुत बुरा हाल है, क्योंकि उन्हें तो कोई मुआवजा भी नहीं मिल सका है। उनमें से बहुत सारे अचानक बेकार हो गए हैं, क्योंकि उनके मालिक ने अपनी जमीन बेच दी है। उनसे वादा किया गया है कि उन्हें 2,500 रुपये महीने का वजीफा दिया जाएगा, मगर उनमें से ज्यादातर को इस वादे पर भरोसा नहीं है। 
राज्य सरकार खुद धन की कमी से परेशान है। ऐसे में, सिंगापुर से 10 गुनी बड़ी इस राजधानी परियोजना के लिए आखिर धन कहां से आएगा? नायडू ने आंध्र प्रदेश के तमाम अनिवासी भारतीयों से अपील की है कि वे उदारतापूर्वक मदद करें। वह एक ईंट के लिए 10 रुपये का दान मांग रहे हैं। इस अभियान के तहत उन्होंने एक दिन में 23 लाख रुपये जुटाए, लेकिन यह तो समुद्र में एक बूंद के समान है। इसलिए नायडू केंद्र सरकार से आर्थिक मदद हासिल करने में जुटे हैं। विपक्ष राज्य को विशेष दर्जा देने, अन्यथा आंदोलन की धमकी दे रहा है। उधर नई राजधानी के प्रति नायडू का यह जुनून अब सीमांध्र के लोगों में क्षोभ पैदा करने लगा है। उनकी शिकायत है कि उनके इलाके के विकास की उपेक्षा हो रही है।

 

 

फिर कई लोगों का, जिनमें पूर्व सचिव ईएएस सरमा भी शामिल हैं, यह कहना है कि प्रधानमंत्री उस कार्यक्रम में कैसे शिरकत कर सकते हैं, जिसके लिए भूमि अधिग्रहण को केंद्र के कई विभागों से ही अभी तक मंजूरी नहीं मिली है? 
बहरहाल, चंद्रबाबू नायडू के विकास के वायदे ने राज्य के नौजवानों को आकर्षित तो किया है, लेकिन अपने वादों को अमली जामा पहनाने के लिए उन्हें अभी बहुत कुछ करना होगा।
(ये लेखक के अपने विचार हैं)