Deprecated (16384): The ArrayAccess methods will be removed in 4.0.0.Use getParam(), getData() and getQuery() instead. - /home/brlfuser/public_html/src/Controller/ArtileDetailController.php, line: 73
 You can disable deprecation warnings by setting `Error.errorLevel` to `E_ALL & ~E_USER_DEPRECATED` in your config/app.php. [CORE/src/Core/functions.php, line 311]
Deprecated (16384): The ArrayAccess methods will be removed in 4.0.0.Use getParam(), getData() and getQuery() instead. - /home/brlfuser/public_html/src/Controller/ArtileDetailController.php, line: 74
 You can disable deprecation warnings by setting `Error.errorLevel` to `E_ALL & ~E_USER_DEPRECATED` in your config/app.php. [CORE/src/Core/functions.php, line 311]
Warning (512): Unable to emit headers. Headers sent in file=/home/brlfuser/public_html/vendor/cakephp/cakephp/src/Error/Debugger.php line=853 [CORE/src/Http/ResponseEmitter.php, line 48]
Warning (2): Cannot modify header information - headers already sent by (output started at /home/brlfuser/public_html/vendor/cakephp/cakephp/src/Error/Debugger.php:853) [CORE/src/Http/ResponseEmitter.php, line 148]
Warning (2): Cannot modify header information - headers already sent by (output started at /home/brlfuser/public_html/vendor/cakephp/cakephp/src/Error/Debugger.php:853) [CORE/src/Http/ResponseEmitter.php, line 181]
Notice (8): Undefined variable: urlPrefix [APP/Template/Layout/printlayout.ctp, line 8]news-clippings/विस्थापन-के-जरिये-विकास-नहीं-चाहिए-रोमा-5080.html"/> न्यूज क्लिपिंग्स् | विस्थापन के जरिये विकास नहीं चाहिए- रोमा | Im4change.org
Resource centre on India's rural distress
 
 

विस्थापन के जरिये विकास नहीं चाहिए- रोमा

आखिरकार प्रस्तावित भूमि अधिग्रहण कानून को संसद के इस मानसून सत्र में भी टालना ही पड़ा। विवादों में घिरे होने की वजह से सरकार द्वारा इसे मंत्री समूह को सौंप दिया गया है। चूंकि अभी केंद्र सरकार अपने दामन पर लगी कालिख पोंछने में लगी है, इसलिए यह खबर सुर्खियों में नहीं है। इसी विवादास्पद कानून के खिलाफ पिछले महीने ‘संघर्ष’ के बैनर तले हजारों लोगों ने जंतर-मंतर पर धरना दिया। केंद्र सरकार भी जानती है कि इस समय भूमि अधिग्रहण कानून पारित करना ‘आ बैल मुझे मार’ वाली स्थिति होगी। इस कानून के खिलाफ पिछले पांच साल से देश भर के कई संगठन प्रदर्शन कर रहे हैं।

इसके बावजूद इस कानून को लेकर सरकार उत्साहित है। उसके मुताबिक, अंगरेजों द्वारा 1894 में बनाए गए भूमि अधिग्रहण कानून को संशोधित कर उसी कानून को बेहतर बनाने और अधिग्रहण के एवज में किसानों को उनकी जमीन का बेहतर दाम दिए जाने का प्रावधान है। दरअसल सरकार को पूंजीपतियों के इशारे पर नव उदारवादी नीतियों के तहत उद्योग लगाने के लिए बड़े पैमाने पर कृषि भूमि के अधिग्रहण की जरूरत है।

इसका दुष्परिणाम नंदीग्राम और सिंगुर में देखने को मिला, जहां सरकार को समझ में आया कि निजी कंपनियों के लिए कृषि भूमि का अधिग्रहण करना इतना आसान नहीं है। इसलिए इस प्रक्रिया को कथित रूप से जनहितकारी बनाने के लिए संशोधित भूमि अधिग्रहण कानून को पारित करने की बात सरकार द्वारा जोर-शोर से की जाने लगी।

आखिर ऐसी कौन-सी मजबूरी है कि सरकार इतनी तत्परता से भूमि अधिग्रहण कानून पारित कराने में दिलचस्पी दिखा रही है, जबकि जमींदारी विनाश व भूमि सुधार कानून, भूमि हदबंदी कानून और वनाधिकार कानून आदि के क्रियान्वयन का रिकॉर्ड काफी खराब है? साथ ही, देश में अभी तक कई परियोजनाओं में और तथाकथित विकास की सूली पर लगभग 10 करोड़ लोगों को चढ़ाया जा चुका है।

इसके बाद भी मुआवजे का लालच देकर भूमि छीनने के काम को अंजाम देने पर सरकार आमादा है। जब तक अधिकार की बात नहीं होती, तब तक भूमि अधिग्रहण कानून का औचित्य नहीं। अभी ऐसे कानून की जरूरत है, जो संविधान के अनुरूप भूमि पर सार्वभौम अधिकारों को स्थापित करें। ऐसे कानून की जरूरत नहीं, जो लोगों से जल, जंगल और जमीन छीन लें।

चार बुनियादी सवाल हैं, जिनके जवाब सरकार को देने चाहिए। पहला, भूमि अधिग्रहण पर तभी बात हो सकती है, जब जमीन होगी। गौरतलब है कि प्रस्तावित भूमि अधिग्रहण कानून में भूमिहीनों का सवाल ही नहीं है, बल्कि सार्वजनिक जमीनों को ही बेचा जा रहा है, जो सामंतों के कब्ज़े में हैं। दूसरा, सरकार ने जो जमीन अभी तक ली है, उसका क्या किया है।

चूंकि जो जमीनें सार्वजनिक उद्योगों और राष्ट्रहित के लिए अधिग्रहीत की गईं, उन्हें भी निजी हाथों में बेच दिया गया। तीसरा, राष्ट्रहित के नाम पर देश में बनाए गए विभिन्न बांधों से जो करोड़ों लोग विस्थापित हुए, उनकी स्थिति क्या है। चौथा, क्या यह प्रस्तावित कानून हमारे संविधान के अनुरूप जल, जंगल व जमीन के पर्यावरणीय संदर्भ के बारे में ध्यान रखता है? अचंभित करने वाली बात यह है कि प्रस्तावित भूमि अधिग्रहण कानून की समीक्षा के लिए बनाई गई संसदीय समिति की सिफारिशों को भी मौजूदा सरकार सिरे से नकार रही है।

पिछले दस वर्षों में लगभग 18 लाख हेक्टेयर कृषि लायक भूमि को गैर कृषि कार्यों में तबदील किया गया है। और जब तक नया कानून बन नहीं जाता, तब तक पुराने कानूनों के तहत कृषि एवं जंगलों की भूमि का अधिग्रहण जारी रहेगा, और बड़े औद्योगिक घरानों द्वारा प्रशासन और राज्य सरकारों से मिलकर भूमि रिकॉर्ड की हेराफेरी कर भूमि की किस्मों को बदलने का आपराधिक कार्य भी जारी रहेगा।

इसलिए समय की मांग है कि नव उदारवादी नीतियों के खिलाफ आम नागरिक समाज प्रगतिशील ताकत, वाम दल, मजदूर संगठन आदि प्राकृतिक संपदा को कॉरपोरेट लूट से बचाने के लिए लामबंद हो। आज मुद्दा पर्यावरणीय न्याय का भी है। अगर पर्यावरणीय न्याय को सामाजिक समानता का हिस्सा नहीं बनाया जाएगा, तो इससे सबसे ज्यादा नुकसान हमें ही होगा।