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वैकल्पिक ईंधन से आर्थिक संप्रभुता-- शशांक द्विवेदी

एक समय था जब भारतीय पेट्रोलियम मंत्री को तेल व गैस उत्पादन करने वाले बड़े देशों के संबंधित मंत्रियों से मिलने के लिए काफी मशक्कत करनी पड़ती थी। लेकिन पिछले कुछ सालों में कच्चे तेल की कीमतों में गिरावट के बाद और भारत की तेज आर्थिक विकास दर को देखते हुए ये तमाम देश अब भारतीय पेट्रोलियम मंत्री से मिलने का कोई मौका नहीं गंवाते।

अंतर्राष्ट्रीय ऊर्जा मंच (इंटरनेशनल एनर्जी फ़ोरम, आईईएफ) के सम्मेलन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ऊर्जा की कीमतों का निर्धारण तर्कसंगत और जिम्मेदारी पूर्ण तरीके से करने का आह्वान किया ताकि सभी को सस्ती ऊर्जा सुलभ हो सके। असल में भारत को ऐसी ऊर्जा चाहिए जो गरीबों के लिए सस्ती हो और उनकी पहुंच में हो। साथ ही साफ, सस्ती और सतत ऊर्जा की आपूर्ति किसी भी देश के विकास में बेहद महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। भारत ने कम मुद्रास्फीति पर उच्च वृद्धि दर हासिल की है, जिससे अगले दो से पांच साल में भारत में ऊर्जा की मांग सबसे ज्यादा होगी। साथ ही प्राथमिक ऊर्जा स्रोत के रूप में कोयले की मांग धीरे-धीरे खत्म हो सकती है।

आर्थिक सहयोग एवं विकास संगठन (ओईसीडी) से बाहर के देशों में ऊर्जा का उपभोग बढ़ा है और सौर ऊर्जा सस्ती हुई है। अगले 25 वर्षों में भारत ऊर्जा क्षेत्र में एक अहम देश होगा। इस सम्मलेन में अधिकांश देश भारत के साथ ऊर्जा क्षेत्र में सहयोग करने की मंशा जता चुके हैं। सऊदी अरब, ईरान, नाइजीरिया, अल्जीरिया, रूस जैसे देश भारत को ज्यादा तेल व गैस बेचने की इच्छा रखते हैं तो नार्वे, अमेरिका जैसे बेहद उन्नत देश भारत को इस क्षेत्र की हर तकनीक उपलब्ध कराने को तैयार हैं। भारत ने इस सम्मलेन में दो प्रमुख प्रस्ताव रखे। पहला, कच्चे तेल के बड़े उत्पादक देश भारत समेत अन्य एशियाई देशों को प्रीमियम दर पर तेल बेचना बंद करें। दूसरा, जिस तेजी से भारत अपनी अर्थव्यवस्था को गैस आधारित बना रहा है, उसके लिए दूसरे देशों से पर्याप्त मात्रा में गैस हासिल करने की राह खुले। इस सम्मलेन से ठीक पहले पेट्रोलियम व प्राकृतिक गैस मंत्रालय की तरफ से एक अध्ययन जारी किया गया, जिसमें कहा गया है कि वर्ष 2030 तक भारत के तेल व गैस क्षेत्र में कुल 325 अरब डॉलर का निवेश होगा। इसके अलावा पावर सेक्टर में अगले दस वर्षों में 150 अरब डॉलर का निवेश किया जाएगा।

पिछले दिनों भारतीय पेट्रोलियम संस्थान में वैज्ञानिकों की टीम ने पर्यावरण के लिए खतरनाक माने जाने वाले प्लास्टिक से पेट्रोलियम बनाने की नई प्रौद्योगिकी विकसित की है। करीब एक दशक के लंबे प्रयोग के बाद आईआईपी के छह वैज्ञानिकों की टीम ने यह कामयाबी हासिल की है। इसमें उत्प्रेरकों का एक संयोजन विकसित किया जो प्लास्टिक को गैसोलीन या डीजल या एरोमेटिक के साथ-साथ एलपीजी के रूप में एक गौण उत्पाद में तबदील कर सकता है।

इस परियोजना का प्रायोजक गेल भी बड़े पैमाने पर पेट्रोलियम उत्पाद तैयार करने के लिए परियोजना की आर्थिक व्यावहारिकता तलाश रहा है। इस प्रौद्योगिकी की खास विशेषता यह है कि तरल ईंधन-गैसोलीन और डीजल-ईंधन के यूरो 3 मानकों को पूरा करता है और उत्प्रेरकों और संचालन मापदंड में बदलाव के जरिए इसी कच्चे पदार्थ से विभिन्न उत्पाद हासिल किए जा सकते हैं। इसके अलावा यह प्रक्रिया पूरी तरह पर्यावरण हितैषी भी है।

यह प्रक्रिया छोटे और बड़े उद्योग, दोनों के अनुकूल है। वेस्ट प्लास्टिक्स टू फ्यूल एंड पेट्रोकेमिकल्स नाम से इस परियोजना पर काफी पहले काम शुरू किया गया था और इस तथ्य तक पहुंचने में चार साल का वक्त लगा। एक अनुमान के मुताबिक दुनिया भर में तीन सौ टन से अधिक प्लास्टिक का इस्तेमाल किया जाता है और इसमें सालाना 10 से 12 फीसदी बढ़ोतरी हो रही है। जिस गति से विश्व में पेट्रोलियम उत्पादों का उपभोग हो रहा है, उसके अनुसार विश्व में अगले 40 साल की मांग पूरी करने के लिए ही कच्चे तेल के भंडार हैं।

किसी आधारभूत उत्पाद या तकनीक के संदर्भ में दूसरों पर आश्रित रहना देश के अर्थतंत्र के लिए कितना भारी पड़ता है, इसका ज्वलंत प्रमाण है भारत में कच्चे तेल की कमी। कच्चे तेल की कीमतों में उतार-चढ़ाव ने पेट्रोलियम उत्पादों की कमी वाले देशों के अर्थतंत्र को जड़ से हिला दिया है। इसलिए अब हमें इस दिशा में आत्मनिर्भरता प्राप्त करने के लिए ठोस और सकारात्मक उपायों पर विचार करना पड़ेगा।

कुल मिलाकर इस सम्मलेन से भारत को काफी लाभ हुआ है। चूंकि भारत अपनी ऊर्जा जरूरतों को पूरा करने के लिए बहुत सारा कच्चा तेल आयात करता है, ऐसे में कच्चे तेल की कीमतें कम होना हमारे लिए बेहद जरूरी है। साथ ही भविष्य में ऊर्जा के अन्य स्रोतों का प्रयोग करते हुए अब हमें कच्चे तेल पर निर्भरता भी कम करते जाना होगा।