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शराबबंदी और केरल की कलाबाजी- एस श्रीनिवासन

केरल में शराब के शौकीन लोगों के लिए पिछला हफ्ता काफी घुमावदार रहा। गुरुवार को केरल स्टेट कोऑपरेटिव कंज्यूमर्स फेडरेशन ने यह एलान किया कि वह शराब की ऑनलाइन बिक्री शुरू करेगा। जिनकी पहुंच इंटरनेट तक नहीं है, वे टेलीफोन पर बोतल का ऑर्डर कर सकेंगे। लेकिन अगले ही दिन इन शौकीनों की खुशी को ग्रहण भी लग गया, जब कोऑपरेटिव मंत्री एसी मोइदीन ने यह साफ किया कि सरकार का ऐसा कोई इरादा नहीं है। साल 2014 की शुरुआत में कांग्रेस के नेतृत्व वाली तत्कालीन यूडीएफ सरकार ने सूबे के 730 बार-होटलों को बंद करते हुए एक दशक में पूर्ण शराबबंदी की घोषणा की थी। अलबत्ता, 416 बार मालिकों को ‘वाइन पार्लर' का लाइसेंस दिया गया था और सिर्फ पंचतारा होटलों को बार चलाने की इजाजत दी गई थी। माकपा के नेतृत्व वाले वाम मोरचे ने तब पूर्ण शराबबंदी का विरोध करते हुए कहा था कि इसकी बजाय शराब त्यागने को प्रोत्साहित किया जाना चाहिए। जाहिर है, दोनों पक्ष महिला वोटरों के समर्थन को लेकर चिंतित था, जिनकी संख्या केरल में मर्द मतदाताओं से कहीं ज्यादा है। लेकिन चुनाव के बाद क्या हुआ? महिला वोटरों का समर्थन जीतने के लिए यूडीएफ ने पूर्ण शराबबंदी का जो दांव चला था, वह साफ तौर से नाकाम रहा।

घर के शराबी मर्दों की हरकतों से दुखी औरतों ने व्यापक परिप्रेक्ष्य में सोचा और भ्रष्टाचार में डूबी सरकार को बदलने के लिए वोट किया। बार-लाइसेंस रिश्वतकांड और सौर ऊर्जा घोटाले के छींटे खुद मुख्यमंत्री तक पर पड़े थे, जिससे निपटना यूडीएफ के लिए भारी था। दूसरी तरफ, पूर्ण शराबबंदी पर अस्पष्ट और विभाजित राय रखने वाला वाम मोरचा अब बारों के फिर से खोले जाने को लेकर तैयार होता दिख रहा है। हालांकि, मोरचे ने अभी तक कोई नीतिगत बदलाव नहीं किया है, लेकिन संकेत मिल रहे हैं कि यह शराबबंदी से दूर जा सकता है। इसका पहला संकेत तो उसी समय मिल गया था, जब राज्य के वित्त मंत्री ने पदभार संभालते ही शराबबंदी की आलोचना की थी। उन्होंने कहा कि यह एक अदूरदर्शी फैसला था और शराबबंदी की नीति शराब के लती लोगों को ड्रग्स की ओर धकेल रही है। लेकिन वित्त मंत्री ने जो नहीं कहा, वह यह तथ्य था कि राज्य की माली हालत काफी दबाव में आ गई है, क्योंकि इसकी कमाई का पांचवां हिस्सा शराब की बिक्री से ही आता था। केरल काफी हद तक पर्यटन इंडस्ट्री पर निर्भर सूबा है और इस मामले में अब उसे पड़ोसी राज्य पुडुचेरी और गोवा से काफी बड़ी चुनौती मिल रही है।

फिर श्रीलंका में गृह युद्ध की समाप्ति के बाद बहुत सारी बहुराष्ट्रीय कंपनियां अपने सालाना सम्मेलन और बैठकें वहां करने लगे हैं। केरल के साथ एक और समस्या है। इसका औद्योगिक आधार काफी कमजोर है और जमीन की ऊंची कीमतों के कारण किसानी फायदेमंद नहीं रह गई है। सरकार पर्यटन क्षेत्र में नई जान फूंकने की कोशिश कर रही है, और प्रवासी निवेशकों को केरल में टेक्नोलॉजी पार्क लगाने के लिए प्रोत्साहित करने में जुटी है। इन दोनों ही मामलों में शराब एक अहम भूमिका निभाती है। जो लोग शराबबंदी के पक्ष में हैं, उनकी दलील है कि शराब के व्यसनी भारतीय, जिनमें से ज्यादातर निम्न आर्थिक हैसियत वाले हैं, न सिर्फ अपनी सेहत के साथ खिलवाड़ करते हैं, बल्कि सामाजिक जीवन को भी नुकसान पहुंचाते हैं।

केरल में एक बार फिर शराबबंदी के पक्ष और विरोध का कोलाहल तेज हो गया है। लेकिन इस बार शराबबंदी के विरोध के स्वर ज्यादा सुनाई दे रहे हैं। यह बहस उस समय खड़ी हुई है, जब बिहार, तमिलनाडु और यहां तक कि दिल्ली जैसे राज्यों के नेता केरल की नजीर देते हुए शराबबंदी की ओर कदम बढ़ा चुके हैं या फिर ऐसा करने की सोच रहे हैं। सच तो यह है कि भारत में शराबबंदी कहीं सफल नहीं हुई। उदाहरण के लिए, एन टी रामाराव ने आंध्र प्रदेश में और एमजी रामचंद्रन ने तमिलनाडु में शराबबंदी लागू करने की कोशिश की थी, मगर वे नाकाम रहे। वे दोनों अपने-अपने सूबे के करिश्माई नेता थे, और उनके समर्थकों की विशाल संख्या थी, बावजूद इसके वे विफल रहे।

इसमें कोई दोराय नहीं कि शराब की वजह से कई सामाजिक समस्याएं खड़ी होती हैं। केरल शराबखोरी में बुरी तरह से फंसा सूबा है। यहां पर शराब की खपत सालाना 8.5 लीटर प्रतिव्यक्ति है, जो कि देश के सालाना औसत से लगभग दोगुनी है। और इसके नतीजे काफी त्रासद रूप में सामने आते हैं। अल्कोहल ऐंड ड्रग्स इन्फॉर्मेशन सेंटर के मुताबिक, केरल मे 69 प्रतिशत अपराधों, 40 फीसदी सड़क दुर्घटनाओं और 80 प्रतिशत तलाक व घरेलू हिंसा के मूल में शराब व ड्रग्स की लत है। केरल में नौजवानों की शराबखोरी एक बड़ी स्वास्थ्य समस्या बन चुकी है। केरल के पड़ोसी तमिलनाडु से लगातार ऐसी खबरें मिल रही हैं कि नशे में धुत पिता ने अपने नाबालिग बच्चों और बीवी को शराब पीने के लिए बाध्य किया। नाबालिगों के शराब पीने को लेकर कर्नाटक का रिकॉर्ड बेहद खराब है।

पिछले साल बिहार चुनाव में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने शराबबंदी का वादा किया था, जिसका महिला मतदाताओं ने जोरदार स्वागत करते हुए भारी बहुमत के साथ उन्हें फिर से सत्ता में भेजा। लेकिन बीते बृहस्पतिवार को गोपालगंज में कच्ची शराब पीने से कई मौत होने की खबर आई है। हालांकि, केरल को ऐसे हादसों से नहीं गुजरना पड़ा, लेकिन उसने शराबबंदी की नीति की समीक्षा शुरू कर दी है। तमिलनाडु की मुख्यमंत्री जयललिता कभी शराबबंदी की हिमायती नहीं रहीं। लेकिन चुनाव के दौरान विपक्ष के दबाव में उन्होंने आखिरी वक्त पर क्रमिक रूप से शराबबंदी लागू करने का वादा किया। सत्ता में लौटने के बाद उन्होंने शराब के 500 सरकारी ठेके बंद भी कर दिए। विपक्ष उन पर दबाव बनाए हुए है, ताकि वह अपने इस वादे से पीछे न हट पाएं।

राजनेता अजीबोगरीब मुश्किल में फंसे हुए हैं। एक तरफ, महिला वोटर उनसे कठोर कानून चाहती हैं। उनका व्यापक समर्थन खोने की आशंका नेताओं को शराबबंदी की आसान राह पकड़ने को प्रेरित करती है। लेकिन इसका क्रियान्वयन बेहद मुश्किल है। सिर्फ दो राज्य गुजरात और मणिपुर इस नीति को कुछ हद तक लागू कर पाए हैं। आंध्र प्रदेश और हरियाणा को तो बाकायदा अपनी यह नीति वापस लेनी पड़ी। तमिलनाडु भी पहले प्रतिबंधित करने की राह चला और फिर उसे रोक हटानी पड़ी। ऑनलाइन शराब बिक्री पर केरल सरकार का उलट-पलट नीति-निर्धारकों की दिशाहीनता ही दिखाता है। उन्हें चुनावी लोकप्रियता बटोरने और दीर्घकालिक जन-कल्याण के बीच में एक का चुनाव करने की जरूरत है।
(ये लेखक के अपने विचार हैं)