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शराबबंदी रोकने का बहाना-- आशुतोष चतुर्वेदी

शराब के कारण बढ़ रहे सड़क हादसों पर लगाम लगाने के लिए सुप्रीम कोर्ट ने आदेश देकर हाइवे के 500 मीटर के दायरे में शराब बिक्री पर रोक लगा दी है. इसको लेकर हंगामा मच गया है, अजीब तरह के तर्क दिये जा रहे हैं कि इससे हजारों करोड़ों का नुकसान होगा, लेकिन लोगों की जान बचेगी, इस पर कोई कुछ नहीं बोल रहा. राज्य सरकारें राजमार्गों को सरकारी आदेश में संशोधिन कर स्थानीय मार्ग में बदलने में जुड़ गयीं हैं ताकि सुप्रीम कोर्ट आदेश से इन राजमार्गों को बाहर किया जा सके और शराब बिकती रहे.


सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया था कि राष्ट्रीय और राज्य के हाइवे के पांच सौ मीटर के दायरे में शराब की बिक्री नहीं होगी. इसमें होटल और रेस्तरां भी शामिल हैं. शराब पीने की वजह से होने वाले सड़क हादसों को देखते हुए सुप्रीम कोर्ट ने यह फैसला किया था. यह फैसला दूरगामी है और इससे शराब पीकर वाहन चलाने से होने वाली दुर्घटनाओं पर काफी हद तक अंकुश लगेगा.


फैसले के बाद राज्य सरकारों ने इसे निष्प्रभावी करने का काम शुरू कर दिया. महाराष्ट्र और पंजाब ने राष्ट्रीय राजमार्ग को डिनोटिफाइ करने की प्रक्रिया शुरू कर दी है. सूचनाएं आ रही हैं कि पंजाब ने राष्ट्रीय राजमार्ग सात और पांच के हिस्सों को जिला मार्गो में तब्दील करने की इच्छा जतायी है.


राजस्थान भी राष्ट्रीय राजमार्ग 21 एसएच के बड़े हिस्से को जिला मार्गो में बदलने पर विचार कर रहा है. महाराष्ट्र, केरल, तेलंगाना, गोवा और हरियाणा इसकी संभावना तलाश रहे हैं. दूसरी ओर संभावित नुकसान के आंकड़े बढ़ा चढ़ाकर पेश किये जा रहे हैं. कहा जा रहा है कि इससे 50 से 60 हजार करोड़ के राजस्व का नुकसान होगा. लेकिन सवाल यह है कि लोगों की जान की कीमत से क्या राजस्व अधिक कीमती है.


यही वे राज्य सरकारें हैं जो कुछ समय पहले राज्य की सड़कों को राजमार्ग में बदलने के लिए लगातार केंद्र सरकार पर दबाव डालती थीं. अब वही सरकारें शराब बेचने के लिए वर्तमान राजमार्ग की उस श्रेणी से हटाने की बात कर रही हैं. हालांकि विशेषज्ञ मानते हैं कि राजमार्गों को डिनोटिफाइ करना राज्य सरकारों को भारी पड़ सकता है. यदि सरकारें ऐसा करती हैं तो उन सड़कों के रखरखाव का खर्च भी उन्हें ही उठाना पड़ेगा जोकि शराब बेचने से मिलने वाले राजस्व से कहीं अधिक होगा.


इस कानूनी लड़ाई को लड़ने वाला वो शख्स है जो खुद सड़क दुर्घटना का शिकार हो गया था. 47 वर्षीय हरमन सिद्धू 20 वर्ष पहले एक सड़क हादसे का शिकार हो गए थे, उस दौरान उनकी जान जाते जाते बची थी, लेकिन तब से वे व्हील चेयर पर हैं. उसके बाद वे इस मुहिम में जुड़ गये और हाइवे के आसपास शराब की बिक्री पर प्रतिबंध को लेकर उन्होंने जनहित याचिका दायर की. लंबी कानूनी लड़ाई के बाद सुप्रीम कोर्ट से जनहित में ये फैसला आया है.

बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का मानना है कि शराबबंदी से राज्य के राजस्व को भी कोई नुकसान नहीं होता है. बिहार का राजस्व जितना 2015-16 में था लगभग उतना ही 2016-17 में भी है. इस दौरान राज्य में शराबबंदी तो हुई ही नोटबंदी भी हुई. नोटबंदी का सबसे ज्यादा असर रजिस्ट्री ऑफिस पर पड़ा. इसके बावजूद उतना ही राजस्व आ जाना बड़ी बात है. उनका कहना है कि यह लोगों का भ्रम है कि शराबबंदी से बिहार को 5 हजार करोड़ के राजस्व की हानि हुई बल्कि शराब पर बिहार की जो जनता प्रति वर्ष 10 हजार करोड़ की शराब खरीदती थी, उनका पैसा भी बचा. ये पैसा किसी न किसी रूप में टैक्स के रूप में आता ही है. नीतीश कुमार मुख्यमंत्रियों को हाइवे की दुकानें इधर उधर करने के बजाय राज्यों में पूर्ण शराबबंदी करने की सलाह देते हैं.

शराब लॉबी इतनी ताकतवर है कि वह हाइवे पर शराबबंदी को ऐसे पेश कर रही है, जैसे अदालत के इस फैसले से आर्थिक उदारीकरण पर आंच आ जायेगी और देश की पूरी अर्थव्यवस्था गड़बड़ा जायेगी. शराब के कारोबारी और उनकी पब्लिक रिलेशन टीम ऐसी तसवीर पेश करने की कोशिश कर रही है इससे न केवल करोड़ों का नुकसान होगा ही, साथ ही लाखों लोगों की रोजी रोटी छिन जायेगी. इसे भावनात्मक रंग देने के साथ साथ साथ ही इसे खान-पान की आजादी से भी जोड़ कर पेश किया जा रहा है. लेकिन चिंताजनक बात यह है कि इस चर्चा में फैसले के सबसे पक्ष, सड़क दुर्घटना और उससे होने वाली मौतों का कोई उल्लेख नहीं हो रहा है. खासकर अंगरेजी मीडिया का एक वर्ग तो इसके पक्ष में खड़ा नजर आता है.

भारत सरकार की संस्था नेशनल क्राइम रिकॉर्ड्स ब्यूरो देश भर की सड़क दुर्घटनाओं की भी जानकारी रखता है. उसके आंकड़े दिल दहलाने वाले हैं. भारत में सड़क हादसों में दुनिया में सबसे अधिक जानें जाती हैं और हर साल लगभग दो लाख लोग सड़क हादसों मे अपनी जान गवां देते हैं. देश में छोटी-बड़ी लगभग पांच लाख सड़क दुर्घटनाएं होती हैं. इनमें से एक बड़ी संख्या शराब पीकर गाड़ी चलाने के कारण होती हैं. चिंता की बात यह कि इस संख्या में लगातार इजाफा हो रहा है.

पिछले दस साल की अवधि में सड़क हादसों में होने वाली मौतों में लगभग 42 फीसदी की वृद्धि हुई है. उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र और तमिलनाडु में सबसे अधिक लोग सड़क दुर्घटनाओं में मारे जाते हैं जबकि शहरों में राजधानी दिल्ली, चेन्नई और जयपुर का रिकॉर्ड इस मामले में सबसे अधिक खराब है. दुखद पहलू यह है कि अनेक दुर्घटनाओं में पूरा का पूरा परिवार तबाह हो जाता है. ऐसे में इन मौतों को टालने की दिशा में उठाये जा रहे किसी कदम को निष्प्रभावी करने का प्रयास दुखद है. सुप्रीम कोर्ट का जनहित में फैसला आया है और सभी राज्य सरकारों को इसका सम्मान करना चाहिए.