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शिक्षकों को चुनाव कार्य में न लगाया जाए

नई दिल्ली। बिहार और पश्चिम बंगाल में आगामी विधानसभा चुनावों के मद्देनजर राष्ट्रीय बालक अधिकार संरक्षण आयोग ने बच्चों की पढ़ाई और उनके भविष्य का हवाला देते हुए चुनाव आयोग से किसी भी चुनाव में शिक्षकों को निर्वाचन ड्यूटी पर तैनात नहीं करने का आग्रह किया है।

राष्ट्रीय बालक अधिकार संरक्षण आयोग ने चुनाव आयोग को पत्र लिख कर कहा है कि बिहार और पश्चिम बंगाल जैसे राज्यों में कई चरणों में चुनाव संपन्न कराए जाते हैं। इन चुनावों में शिक्षकों को ड्यूटी में लगाया जाता है। इससे बच्चों की पढ़ाई गंभीर रूप से प्रभावित होती है।

आयोग की सदस्य संध्या बजाज ने बताया कि बच्चों के भविष्य का हवाला देते हुए हमने चुनाव आयुक्त नवीन चावला को पत्र लिख कर विधानसभा चुनावों में शिक्षकों को तैनात नहीं किए जाने का आग्रह किया है।

संध्या ने कहा कि पत्र में चुनाव आयोग से अनुरोध किया गया है कि वह हमारे आग्रह अथवा सलाह पर सकारात्मक रूप से विचार करें।

उन्होंने बताया कि आयोग को इस संबंध में एक शिकायत मिली थी कि बिहार जैसे राज्यों में चार पांच चरणों में चुनाव संपन्न होते हैं और न केवल बिहार बल्कि संभवत: पूरे देश में शिक्षकों की तैनाती चुनाव में की जाती है। इससे बच्चों की पढ़ाई में बाधा आती है।

इसी शिकायत के आधार पर आयोग की सदस्य संध्या बजाज ने चुनाव आयोग को यह पत्र लिखा है। पत्र में चावला से आयोग के सुझावों अथवा आग्रह पर सकारात्मक रूप से विचार करने का आग्रह किया गया है।

पत्र में संध्या ने चुनाव आयुक्त से कहा कि आप इस बात से अवगत होंगे कि सरकार और आयोग शिक्षा का अधिकार कानून के तहत बच्चों की शिक्षा पर जोर दे रहा है। शिक्षा का अधिकार कानून आगामी एक अप्रैल से पूरे देश में लागू हो रहा है।

संध्या ने अपने पत्र में चुनाव आयोग से यह भी कहा है कि देश में समय-समय पर चुनाव कराना और उन्हें सुव्यवस्थित तरीके से आयोजित करना चुनाव आयोग का एक महत्वपूर्ण काम है, लेकिन चुनाव ड्यूटी में शिक्षकों को निर्वाचन ड्यूटी में लगाने से स्कूली बच्चों की पढ़ाई के नुकसान को देखते हुए चुनाव में शिक्षकों को निर्वाचन ड्यूटी पर तैनात करने से बचा जाए।

संध्या ने बताया कि शिकायतकर्ता ने अपनी शिकायत में कहा था कि शिक्षकों को चुनावी प्रशिक्षण देने, चुनाव संपन्न कराने और स्कूली इमारतों को चुनावी कार्य में इस्तेमाल करने से बच्चों की पढ़ाई का नुकसान होता है और यह बच्चों के शिक्षा के अधिकार का उल्लंघन है।

शिकायतकर्ता ने यह भी कहा था कि कई मौकों पर संबंधित राज्य सरकार जनगणना, पोलियो की खुराक और अन्य कई तरह के सर्वेक्षणों जैसे शिक्षकेत्तर कार्यो में भी शिक्षकों को लगा देती है जिससे बच्चों की पढ़ाई में बाधा आती है।

शिकायतकर्ता ने यह भी सुझाव दिया था कि शिक्षकों की बजाए बेरोजगारों को चुनाव में तैनात किया जा सकता है, जिससे उनके लिए रोजगार का सृजन हो सकता है। इसी तरह खाली पड़ी इमारतों का इस्तेमाल चुनावी गतिविधियों के लिए किया जा सकता है।