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शिक्षा की अलख जलाने वाले शिक्षक करते हैं बूट-पॉलिस

पाकुड़। हालात-ए-जिस्म सूरत-ए-खराब, वहां और भी खराब यहां और भी खराब ये पंक्ति सरकार को शर्मसार करने वाली सूबे की खराब हालात की एक ऐसी ही दास्तांन बयां करती है। ये दास्तांन है पाकुड़ के एक ऐसे शिक्षक की जो पिछले 25 वर्षो से शिक्षा की अलख जला रहे हैं, परन्तु इस एवज में यदि उन्हें कुछ मिला है तो बूट-पॉलिस का धंधा, गरीबी व जिल्लत भरी जिंदगी। जिले के अमड़ापाड़ा स्थित प्रोजेक्ट कन्या उच्च विद्यालय के प्रधान शिक्षक गिरधारी दास की छात्राऐं आज शिक्षक व नर्स बन कर दूसरों की सेवा करती हैं।

परन्तु,दास को दो जून की रोटी के लिए बीते 25 वर्षो से बूट-पॉलिस कर अपने मर्यादा को ढ़ंकने के लिए जद्दोजहद करना पड़ रहा है। वर्तमान में दास के पास समस्याएं सुरसा के मुख जैसी विकराल हैं। शादी के लायक हो चुकी उनकी लड़कियों के कारण उनके रातों की नींद गायब है। दास कहते हैं कि वर्ष 1983 में विद्यालय स्थापना के बाद से ही सरकार की ओर से उन्हें फूटी कौड़ी भी नहीं मिला। यही हालात विद्यालय के सभी अन्य कर्मियों की भी है।

विद्यालय के लिए जमीन दाता बबलू मरांड़ी को चपरासी की नौकरी मिली, परन्तु दो पैसे की आस में वो भी चल बसे। उन्होनें बताया कि वेतन के लिए सुप्रीम कोर्ट तक लंबी लड़ाई भी लड़ी गई बावजूद इसके सरकार के कानों में जूं तक नहीं रेंगती। विड बना यह है कि सरकार इन विद्यालयों के छात्राओं के नामांकन, रजिस्ट्रेशन को सही मानकर उनके द्वारा दिए गए मैट्रिक परीक्षा को मान्यता प्रदान करती है। परन्तु, शिक्षकों को वेतन देना मान्य नहीं है।

गौरतलब है कि एकीकृत बिहार में बालिका शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए स्थापित तीन सौ विद्यालयों में से झारखण्ड में कुल 87 प्रोजेक्ट कन्या विद्यालय ही शेष बचे हैं। बिहार सरकार ने इन विद्यालय कर्मियों को पिछले वर्ष से वेतन देना प्रारंभ कर दिया है, परन्तु झारखण्ड में अबतक इसकी कवायद भी शुरू नहीं की गई है। ऐसे में सवाल उठता है कि विकास का ढ़िंढ़ोरा पीटने वाली सरकारों का क्या केवल तस्वीर ही बदलेगा या फिर, गिरधारी दास जैसे सैकडों लोगों की तकदीर भी बदलेगी जो सही मायने में देश के गणतंत्र का महज माखैल बनकर रह गए हैं।