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शिक्षा की दुनिया से गैजेट्स का नाता - डेजी क्रिस्टोडुलू

मौजूदा डिजिटल युग की नई पीढ़ी जिस सामूहिक व सामाजिक रूप में टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल कर रही है, उसे देखते हुए कई लोगों का मानना है कि इससे शिक्षा के क्षेत्र में क्रांतिकारी बदलाव आएगा। पर दूसरी तरफ ऐसे लोगों की संख्या भी कम नहीं, जो इस बात को लेकर बेहद चिंतित हैं कि स्मार्टफोन, टैबलेट, ई-रीडर्स व लैपटॉप जैसे गैजेट्स इस नई पीढ़ी की एकाग्रता व गहरे चिंतन की क्षमता को नुकसान पहुंचा रहे हैं। टेक्नोलॉजी और शिक्षा को लेकर सच क्या है? वार ऐंड पीस को किंडल पर पढ़ना ज्यादा बेहतर है या फिर कागज पर मुद्रित किताब की शक्ल में? या क्या हमें फेसबुक पर अपनी कहानी रचते-गढ़ते 19वीं सदी के उपन्यासों को भूल जाना चाहिए? हाल ही में न्यू साइंटिस्ट में प्रकाशित एक आलेख यह बताता है कि तकनीकी बदलावों की तेज गति का अर्थ है अनेक विषयों के व्यापक अध्ययन से वंचित रह जाना। कुछ विश्वसनीय शोध हमारे सामने हैं। जैसे, टेक्नोलॉजी के बारे में जो सबसे लोकप्रिय दावा किया जाता रहा है, वह गलत साबित हुआ है। कई लोगों द्वारा यह कहा जाता है कि इंटरनेट ने तथ्यों के ज्ञान के महत्व को कम किया है। लेकिन संज्ञानात्मक विज्ञान का शोध तथ्यपरक ज्ञान के महत्व को स्थापित करता है। जब हम चिंतन करते हैं, तो कामचलाऊ समृति व दीर्घकालिक स्मृति का इस्तेमाल करते हैं।

दीर्घकालिक याददाश्त व्यापक होती है, जबकि कामचलाऊ स्मृति चार से सात चीजों तक सीमित होती है व तुरंत बोझिल हो जाती है। दीर्घकालिक स्मृति में तथ्यों को सहेजते हुए हम उनका कुशलता के साथ इस्तेमाल करते हैं और उनको नए तथ्यों के साथ जोड़ते हैं। यानी दीर्घकालिक स्मृति मस्तिष्क का ऐसा हिस्सा नहीं, जिसे हम आउटसोर्स कर लें, बल्कि यह हमारी विचार प्रक्रिया का एक अनिवार्य व आधारभूत अंश है। प्रौद्योगिकी हमारे लिए तथ्यों को याद रखने की जरूरत को भले खत्म न कर सके, पर इससे उन्हें याद करना आसान हो सकता है। संज्ञानात्मक मनोविज्ञान का एक और बड़ा अध्ययन कहता है कि हम याद उसे ही रखते हैं, जिसके बारे में चिंतन करते हैं।

वर्जीनिया यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर डैन विलिंघम के शब्दों में, याददाश्त विचार का अवशेष है। इस लिहाज से टेक्नोलॉजी बहुत मददगार साबित नहीं होती। संदेशों का अचानक नजर आना, वेबसाइटों में लगातार बदलाव हमें विषय-वस्तु के बारे में सोचने-विचारने का अवकाश ही नहीं देते। यदि हम ज्ञान अजिर्त करना चाहते हैं, तो सीखने-सिखाने के उपयोगी एप्स के मामलों में भी हमें वक्त देना होगा व उनके विषयों पर चिंतन करना होगा। हमारे सामने जो कंप्यूटिंग पावर है, उसके पास सीखने की प्रक्रिया को आसान बनाने की अपूर्व क्षमता है, पर ये गैजेट्स तभी हमें शिक्षित कर सकते हैं, जब पहले हम यह स्वीकार कर लें कि यह काम आसानी से नहीं होगा।
साभार- द गाजिर्यन
(ये लेखिका के अपने विचार हैं) - See more at: