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शिक्षा के लिए संघर्ष और समर्पण ही बना उनकी पहचान

श्रवण शर्मा, बालाघाट(मध्‍यप्रदेश)। अपने लिए तो सभी जीते हैं,पर इंसान वही जो औरों के लिए जिए। यह कहावत चरितार्थ कर रहे हैं देवटोला के अशोक बोहने। अशोक (49) ने मजदूरी कर शिक्षा हासिल की और अब वे गरीब बच्चों को शिक्षा का दान दे रहे हैं। पूरा जीवन इस काम के लिए समर्पित कर दिया।

मुसीबतें भी बहुत आईं और इनके अपनों ने भी साथ छोड़ दिया, लेकिन अशोक ने पढ़ाना नहीं छोड़ा। आज इनके पढ़ाए करीब 54 बच्चे सरकारी नौकरी में हैं। 1984 में बीकॉम कर नौकरी तलाश रहे अशोक को गरीब बच्चों की अशिक्षा की पीड़ा ने झकझोर दिया। अशोक बताते हैं कि देवटोला प्राथमिक शाला में 1998 में कक्षा पांचवी के सभी बच्चे फेल हो गए।

इस बात को लेकर जब उन्होंने शाला के प्रधान पाठक से चर्चा की तो उन्होंने आपत्तिजनक तक देते हुए कहा कि बच्चे इतने मूर्ख हैं कि इन्हें ब्रह्मा भी ज्ञान नहीं दे सकते। उन्होंने अशोक को चुनौती दी कि तुम इतनी बातें कर रहे हो तो पढ़ाकर दिखाओ। अशोक ने उनका प्रस्ताव मान लिया। देवटोला प्राथमिक शाला के तत्कालीन शिक्षा समिति के अध्यक्ष राधेलाल बघेले ने एक रुपए मानदेय पर अशोक को नौकरी पर रख लिया।
अशोक की मेहनत रंग लाई। कक्षा पांचवी के 22 में से 18 बच्चे पास हो गए। गांव के जिन बच्चों को अशोक ने पढ़ाना शुरू किया था। 2006 में उन्हीं बच्चों ने अशोक से प्रेरणा लेकर एक स्कूल की नींव रखी। अशोक उस स्कूल में पढ़ाने लगे। नर्सरी से पहली तक की शुरू हुआ स्कूल अब कक्षा 8 तक हो गया है।
यहां अब 300 बच्चे अध्यनरत् हैं। जो नि:शुल्क पढ़ाई कर रहे हैं। अशोक की छात्रा पायल लिल्हारे समेत अन्य ने देवटोला में गुरुकुल विद्यालय की नींव डाली। अब वही बच्चे नौकरी कर आर्थिक मदद कर रहे हैं। और उनके प्रयासों की पाठशाला के संचालन के लिए अशोक ने अपना पूरा जीवन समर्पित कर दिया है।
किराए के कमरे से शुरू हुई यह पाठशाला भवन जर्जर होने के चलते खुले आसमान के नीचे लग रही है। यहां कक्षा पहली से 5 वीं तक सरकारी स्कूल में 25 बच्चे दर्ज हैं। जबकि गुरूकुल में 170 बच्चे पढ़ाई कर रहे हैं। 4 बच्चों से शुरू हुई इस पाठशाला में अब 10 गांव के बच्चे पढ़ रहे हैं। अशोक के गुरुकुल में बच्चे नि:शुल्क पढ़ते हैं और शिक्षक पार्ट टाइम नि:शुल्क शिक्षा दे रहे हैं।