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शुगर क्यों हो, स्टीविया है न

रचना गुप्ता, शिमला। इसे चीनी के आसमान छूते दामों का दम कहें या स्वास्थ्य सरोकारों के लिए संजीदगी, खबर यह है कि लोग अब चाय में न तो चीनी पी रहे हैं न शुगरफ्री गोलियां। स्टीविया अब उनकी जीवनचर्या का अंग बन चुका है। मिठास के लिए वे मीठे पौधे स्टीविया का प्रयोग रूटीन में करने लगे हैं। इस पौधे को चीनी के विकल्प के कारण घरों में लगाने लगे हैं। यह बदला हुआ मंजर नजर आता है हिमाचल की राजधानी शिमला में। यहां नेशनल ब्यूरो ऑफ प्लांट जेनेटिक रिर्सोसिस के क्षेत्रीय केंद्र फागली में स्टीविया के पौधों की मांग बढ़ती जा रही है। ऐसा इसलिए हो रहा है क्योंकि लोग डायबिटी़ज जैसी तकलीफ को बड़ी बीमारी मान रहे हैं और सावधानी के तहत स्टीविया की मीठी पत्तियों को चाय में डाल रहे हैं।

आयुर्वेद में स्टीविया के पौधे को बेहद लाभकारी व शरीर में रक्त शुगर के संतुलन के लिए बेहतरीन माना गया है। ऐलोपैथिक दवाओं के दुष्प्रभावों के कारण भारत की पुरानी चिकित्सा पद्धति को अधिक तवज्जो दी जा रही है।

ब्यूरो के वरिष्ठ रिसर्च फैलो अरविंद भारद्वाज कहते हैं, 'शूगर फ्री दवाओं में प्रयोग होने वाले स्टीविया पौधे की इस वैराइटी को अमेरिका से शोध के लिए लाया गया है। पौधे को उगाने के लिए शिमला जैसी ऊंचाई व तापमान बिलकुल अनुकूल है, इसीलिए इसे प्रोत्साहित किया जा रहा है।'

नेशनल ब्यूरो में तकनीकी असिस्टेंट कहते हैं- 'फागली में बहुत से लोग रोजाना इस पौधे को खरीदने आते हैं। वह इसे गमलों में भी लगा रहे हैं।' इस पौधे पर शोध कर रहे वैज्ञानिकों का कहना है कि डायबीटिज के लिए यह रामबाण है। गत दिनों रिज पर लगी पुष्प प्रदर्शनी में यह पौधा 100 रुपये में भी बिका है और कंपनियां इसे बड़ी मात्रा में खरीद कर इससे शूगर फ्री गोलियां बना रही हैं।

हिमाचल में डायबीटिज के प्रति लोग काफी जागरूक हुए हैं। शिमला के इंदिरा गांधी मेडिकल कालेज के मेडिसन विशेषज्ञ डा. मोक्टा कहते हैं कि प्रदेश में हर 100 में से पांच लोग नए डायबिटिक निकलते हैं। हालांकि देशभर में यह आंकड़ा 12 का है। डा. मोक्टा कहते हैं कि जैसे लोग करेले को भी डायबीटिज में बेहतर मानते हैं वैसे ही स्टीविया को भी स्वीकार रहे होंगे। लेकिन इसकी प्रमाणिकता आंकी जाए।

उधर फागली के इस शोध संस्थान में कैंसररोधी पौधे 'टैक्सिस बकाटा' (तालीस पत्र) पर भी नतीजे आने लगे हैं। जिला मंडी के शिकारी देवी व शिमला के नारकंडा में मिलने वाला यह घासनुमा पौधा एंटी कैंसर दवाओं में प्रयोग हो रहा है। शिकारी देवी से तो यह पौधा भारी मात्रा में दूसरे राज्यों को भी जा रहा है जहां कैंसर प्रतिरोधी दवाओं में इसका प्रयोग होता है।