Deprecated (16384): The ArrayAccess methods will be removed in 4.0.0.Use getParam(), getData() and getQuery() instead. - /home/brlfuser/public_html/src/Controller/ArtileDetailController.php, line: 73
 You can disable deprecation warnings by setting `Error.errorLevel` to `E_ALL & ~E_USER_DEPRECATED` in your config/app.php. [CORE/src/Core/functions.php, line 311]
Deprecated (16384): The ArrayAccess methods will be removed in 4.0.0.Use getParam(), getData() and getQuery() instead. - /home/brlfuser/public_html/src/Controller/ArtileDetailController.php, line: 74
 You can disable deprecation warnings by setting `Error.errorLevel` to `E_ALL & ~E_USER_DEPRECATED` in your config/app.php. [CORE/src/Core/functions.php, line 311]
Warning (512): Unable to emit headers. Headers sent in file=/home/brlfuser/public_html/vendor/cakephp/cakephp/src/Error/Debugger.php line=853 [CORE/src/Http/ResponseEmitter.php, line 48]
Warning (2): Cannot modify header information - headers already sent by (output started at /home/brlfuser/public_html/vendor/cakephp/cakephp/src/Error/Debugger.php:853) [CORE/src/Http/ResponseEmitter.php, line 148]
Warning (2): Cannot modify header information - headers already sent by (output started at /home/brlfuser/public_html/vendor/cakephp/cakephp/src/Error/Debugger.php:853) [CORE/src/Http/ResponseEmitter.php, line 181]
Notice (8): Undefined variable: urlPrefix [APP/Template/Layout/printlayout.ctp, line 8]news-clippings/संस्कृति-और-विकास-का-अंतर्विरोध-डा-भरत-झुनझुनवाला-6437.html"/> न्यूज क्लिपिंग्स् | संस्कृति और विकास का अंतर्विरोध - डा. भरत झुनझुनवाला | Im4change.org
Resource centre on India's rural distress
 
 

संस्कृति और विकास का अंतर्विरोध - डा. भरत झुनझुनवाला

हाइड्रोपावर का नरेंद्र मोदी के बताये उद्देश्यों से घोर अंतर्विरोध है. भाजपा और कांग्रेस दोनों ही हाइड्रोपावर के पक्षधर हैं, परंतु हाइड्रोपावर के दुष्परिणामों के कारण जनता द्वारा विरोध होने से दोनों ही पार्टियां अपने दुष्चिंतन को लागू नहीं कर पायी हैं.

नरेंद्र मोदी ने उत्तराखंड दौरे के दौरान कांग्रेस पर आरोप लगाया कि पहाड़ के युवा बेरोजगार हैं चूंकि विकास नहीं हो रहा है. उन्होंने उत्तराखंड को स्पिरिचुअल एनवायरन्मेंट जोन की संज्ञा दी है. साथ-साथ उन्होंने पहाड़ की नदियों से बिजली बनाने को भी आवश्यक बताया है. इन बातों में घोर अंतर्विरोध है. रोजगार और अध्यात्म का हाइड्रोपावर का सीधा टकराव है.

हाइड्रोपावर तथा अध्यात्म का टकराव हाल में आयी विभीषिका में साफ दिखता है. विभीषिका का प्रत्यक्ष कारण ग्लोबल वार्मिग है. वायुमंडल की विशेष परिस्थिति में बादल फटते हैं, जिससे गिरनेवाले पानी को यदि पहाड़ सहन कर लेता है, तो विशेष नुकसान नहीं होता है.

पहाड़ कमजोर हो तो वही पानी विभीषिका का रूप धारण कर लेता है. बड़ी मात्रा में पेड़ लगे हों, तो पानी उनकी जड़ों के सहारे पहाड़ के अंदर तालाबों में समा जाता है, जिन्हें एक्वीफर कहते हैं. पेड़ कमजोर हों, तो वही पानी सीधी धारा बना कर नीचे गिरता है और अपने साथ पेड़ों और पत्थरों को लाकर नदी में डाल देता है.

केदारनाथ के नीचे फाटा व्यूंग और सिंगोली भटवारी जल विद्युत परियोजनाएं बनायी जा रही हैं. इनमें लगभग 30 किलोमीटर की सुरंग खोदी जा रही है. भारी मात्र में डायनामाइट का प्रयोग किया जा रहा है. इन विस्फोटों से पहाड़ के एक्वीफर फूट रहे हैं और जमा पानी रिस कर सुरंग के रास्ते निकल रहा है. पहाड़ के जल स्नेत सूख रहे हैं. पेड़ों को पानी नहीं मिल रहा है और वे कमजोर हो रहे हैं.

धमाकों से पहाड़ कमजोर और जजर्र हो रहे हैं, फलस्वरूप पानी बरसने से चट्टानें धसक रही हैं तथा पत्थर नीचे रहे हैं. मैंने सूचना के अधिकार के अंतर्गत डाइरेक्टर जनरल ऑफ माइन सेफ्टी से पूछा कि विस्फोट की मात्र के निर्धारण संबंधी फाइल मुझे उपलब्ध करायी जाये. उत्तर मिला कि फाइल गुम हो गयी है.

स्पष्ट है कि कंपनियां विस्फोटों पर परदा डालना चाहती हैं. सारांश है कि बादल फटना सामान्य बात है, परंतु गिरे पानी को ग्रहण करने की धरती की शक्ति को हमने जलविद्युत परियोजनाओं को बनाने के लिए किये जा रहे विस्फोटों से कमजोर बना दिया है.

हमें केदारनाथ जैसे आध्यात्मिक केंद्रों की रक्षा और हाइड्रोपावर के बीच चयन करना होगा. आध्यात्मिक केंद्रों को बचाना है, तो नदियों को बचाना होगा. गंगा ही केदारनाथ और बद्रीनाथ की आध्यात्मिक शक्ति को हरिद्वार और वाराणसी तक पहुंचाती है. गंगा पर हाइड्रोपावर प्रोजेक्ट बनाने से अध्यात्म का नुकसान होता है. विस्फोटों से हमारे मंदिर टूटते हैं जैसा कि केदारनाथ में हुआ. नदी के पानी को हाइड्रोपावर टरबाइनों में डालने से उसकी आध्यात्मिक शक्ति नष्ट हो जाती है.

विषय का दूसरा पक्ष रोजगार का है. जल विद्युत परियोजनाओं से उत्पन्न बिजली का लाभ शहरी उपभोक्ताओं को होता है. उत्तराखंड के पास अपनी जरूरत भर बिजली उपलब्ध है. लेकिन राजस्व कमाने के लिए राज्य सरकार प्रत्येक नदी के प्रत्येक इंच के बहाव पर जल विद्युत परियोजना बनाने का प्रयास कर रही है.

इन परियोजनाओं से राज्य को 12 प्रतिशत बिजली फ्री मिलती है. इसे बेच कर सरकार राजस्व कमाती है. आम आदमी को राजस्व का केवल 20-25 प्रतिशत ही मिलता है. लेकिन परियोजना के 100 प्रतिशत दुष्परिणाम को आम आदमी झेलता है. उसकी बालू मछली से होनेवाली आय बंद हो जाती है. परियोजना में उत्पन्न मच्छरों से आम आदमी की मृत्यु होती है.

हालांकि हाइड्रोपावर प्रोजेक्ट के निर्माण के समय रोजगार उत्पन्न होते हैं. लेकिन ये हजारों रोजगार केवल 3-4 वर्षो के लिए कंस्ट्रक्शन के समय बनते हैं. प्रोजेक्ट बन जाने के बाद इसमें 50-100 कर्मचारी की ही जरूरत रह जाती है. लेकिन प्रोजेक्ट से रोजगार का हनन जीवन र्पयत होता है.

जैसे मछली और बालू के रोजगार सर्वदा के लिए समाप्त हो जाते हैं. सैकड़ों हैक्टेयर कृषि भूमि डूब क्षेत्र में जलमग्‍न हो जाती है. इस भूमि से जीविकोपाजर्न करनेवाले बेरोजगार हो जाते हैं. मिला मुआवजा रिहायशी मकान बनाने में खप जाता है और आदमी अंततोगत्वा बेरोजगार हो जाता है. इस तरह ये कफन बनानेवाले रोजगार होते हैं.

सच यह है कि हाइड्रोपावर का नरेंद्र मोदी के बताये उद्देश्यों से घोर अंतर्विरोध है. मेरी जानकारी में भाजपा और कांग्रेस दोनों ही हाइड्रोपावर के पक्षधर हैं, परंतु हाइड्रोपावर के दुष्परिणामों के कारण जनता द्वारा विरोध होने से दोनों ही पार्टियां अपने दुष्चिंतन को लागू नहीं कर पायी हैं.

जानकार बताते हैं कि जल विद्युत परियोजनाओं का अनुबंध दस्तखत करने का मंत्रीगण एक करोड़ रुपये प्रति मेगावाट की घूस लेते हैं. उत्तराखंड में 40,000 मेगावाट की संभावना को देखते हुए घूस की इस विशाल राशि का अनुमान लगाया जा सकता है. इन कार्यो के माध्यम से राज्य सरकार गरीब पर आपदा डाल कर अमीर को लाभ पहुंचा रही है. नरेंद्र मोदी को इस पाप में हिस्सेदार बनने से बचना चाहिए.