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संस्थागत भ्रष्टाचार और राजनीति-- एम के वेणु

तेज-तर्रार और राजनीतिक रूप से शक्तिशाली शराब कारोबारी विजय माल्या चुपचाप देश छोड़कर भाग गए, क्योंकि सीबीआई और प्रवर्तन निदेशालय एक दर्जन से अधिक बैंकों के 9,000 करोड़ रुपये के कर्ज को जान-बूझकर न चुकाने के मामले में उनका पीछा कर रहा है। सीबीआई और प्रवर्तन निदेशालय आईडीबीआई बैंक द्वारा माल्या की किंगफिशर एयरलाइंस को दिए गए 950 करोड़ रुपये के एक अलग मामले की भी जांच कर रहा है, जिसका कुछ हिस्सा कथित तौर पर अवैध रूप से देश से बाहर ले जाया गया। ऐसी सक्रिय जांच के बीच माल्या ने सहजता से देश छोड़ दिया। प्रवर्तन निदेशालय ने माल्या के व्यावसायिक समूह के शीर्ष अधिकारियों से पंद्रह घंटे से ज्यादा समय तक साक्ष्य जुटाने के लिए पूछताछ की कि बैंक की 350 करोड़ रुपये से ज्यादा रकम देश से बाहर कैसे ले जाई गई। माल्या के देश छोड़ने को लेकर राजनीतिक तूफान उठ खड़ा हुआ है और इससे लोगों का ध्यान हट गया है कि आधे दर्जन से ज्यादा बड़े व्यावसायिक समूहों ने बैंकों से 7.5 लाख करोड़ रुपये का कर्ज लिया है, जिनमें से आधे के बारे में कहा जा रहा है कि वे कंपनियां डूबने की स्थिति में हैं।

हर कोई यह जानकर हैरान है कि माल्या के देश छोड़ने की पूरी जानकारी सीबीआई को थी। माल्या ने दो मार्च को देश छोड़ा, यह वही दिन था, जब बैंक विशेष कर्ज वसूली अदालत में माल्या के खिलाफ गिरफ्तारी वारंट की मांग करने पहुंचे थे। बैंकों को संदेह था कि माल्या देश से भाग सकते हैं, इसलिए वे उनका पासपोर्ट जब्त करने की मांग करने गए थे।

इसलिए यह एक दुर्लभ संयोग है कि एक तरफ बैंक उनकी गिरफ्तारी की मांग करने गए, दूसरी तरफ उसी दिन माल्या विदेश भाग गए। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और वित्त मंत्री अरुण जेटली ने कई बार यह दावा किया है कि राजग का शासन भ्रष्टाचार से मुक्त है। जिस तरह से और जिन परिस्थितियों में माल्या ने देश छोड़ा है, उससे शासक वर्ग की मिलीभगत का पता चलता है। हैरानी की बात नहीं कि शराब के इस दिग्गज कारोबारी को कर्नाटक से राज्यसभा का फिर से सदस्य चुनने में भाजपा ने वोट के जरिये सहयोग किया था।

 

कुछ कानूनी विशेषज्ञ पहले ही ललित मोदी और माल्या के बीच समानता की बात कर रहे हैं। दोनों के खिलाफ भारतीय जांच अधिकारियों द्वारा कथित मनी लान्डरिंग की जांच हो रही है। हो सकता है कि ललित मोदी की तरह माल्या भी देश लौटने से इन्कार कर दें। यदि भारतीय जांच अधिकारी माल्या, एक प्रवासी भारतीय को मनी लान्डरिंग मामले की जांच के लिए भारत में प्रत्यर्पण और आपराधिक मुकदमा चलाना चाहते हैं, तो उन्हें पर्याप्त सबूत जुटाने होंगे। ब्रिटेन के अधिकारी तब तक सहयोग नहीं करने के लिए जाने जाते हैं, जब तक कि वे भारतीय अधिकारियों द्वारा पेश किए गए सबूत से प्रथमदृष्टया आश्वस्त नहीं हो जाते। जब ललितगेट का मामला सामने आया था, तो ललित मोदी ने सत्ता प्रतिष्ठान को चुनौती दी थी। उन्होंने निजी तौर पर वित्त मंत्री को चुनौती दी थी कि अगर हिम्मत है, तो उनके खिलाफ मुकदमा चलाएं। माल्या ने अगर ललित मोदी की तरह ही रवैया अपनाया, तो भारत के लोग दुनिया से कैसे आंखें मिला पाएंगे?

 

माल्या तो राजनीतिक मिलीभगत से होने वाले इस भ्रष्टाचार का एक छोटा सा हिस्सा हैं। एक टीवी चैनल से बात करते हुए भाजपा प्रवक्ता पी. एन. विजय ने इन्फ्रास्ट्रक्चर क्षेत्र के कुछ अन्य प्रोमोटरों का नाम गिनाया है, जिन्होंने जान-बूझकर बैंकों का कर्ज नहीं चुकाया है। ऐसे लोगों में से ज्यादातर राजनीतिक रूप से प्रभावी हैं और उनके मित्र सभी प्रमुख दलों में हैं।

 

 

चूंकि पैसों को एक खाते से दूसरे में ट्रांसफर किया जा सकता है, इसलिए कर्ज लेने वाले व्यवसायी बैंक कर्ज को चोरी-छिपे किसी अन्य प्रोजेक्ट या अपने निजी खातों में डाल देते हैं। ऐसा आम तौर पर बड़ी परियोजनाओं में हजारों करोड़ रुपये के आयात का ज्यादा खर्च दिखाकर किया जाता है। आयात के लिए चुकाया गया ज्यादा भुगतान प्रोमोटर के ही विदेश में स्थित निजी खाते में होता है। ऐसे मामले अक्सर होते हैं। गुजरात का एक प्रमुख कॉरपोरेट समूह, जो भाजपा नेतृत्व का करीबी माना जाता है, इसी तरह साढ़े चार सौ करोड़ रुपये के ज्यादा खर्च दिखाने संबंधी आर्थिक प्रवर्तन एजेंसी की शिकायत का सामना कर रहा है। इस समूह ने भी विभिन्न बैंकों से 80 हजार करोड़ रुपये का कर्ज लिया और हाल के वर्षों में उसे चुकाना बंद कर दिया, जैसा कि माल्या ने किया। इसलिए आश्चर्य नहीं कि विजय माल्या (जिसका यह सरकार आधे-अधूरे मन से पीछा कर रही है) यह दावा कर रहे हैं कि कर्ज न चुकाने वाले बड़े मामलों और अन्य कानून उल्लंघनों के खिलाफ कार्रवाई नहीं हो रही है। मोदी सरकार की वास्तविक समस्या खुद उसके अपने साथ है। कर्ज न चुकाने के काफी मामले हैं और कई जान-बूझकर कर्ज नहीं चुकाते हैं। राजग सरकार को सभी बकाएदारों के खिलाफ एक जैसी कार्रवाई करनी होगी। सिर्फ माल्या को कर्ज न चुकाने वालों का पोस्टर बॉय बनाने से काम नहीं चलेगा।

भाजपा भ्रष्टाचार के मुद्दे पर यह कहकर उच्च नैतिकता का दावा करने की कोशिश करती है कि प्रमुख व्यवसायी घरानों के बड़े डिफॉल्टर पिछली यूपीए सरकार की देन हैं। यह सही है, लेकिन राजग सरकार भी इसके लिए बराबर की जिम्मेदार है कि वह इन मामलों से कैसे निपटती है। कॉरपोरेट कर्ज के 1,14,000 करोड़ रुपये को पिछले दो वर्षों से जिस तरह बैंकों द्वारा डूबत खाते में डाल दिया गया, उस पर हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने गहरी निराशा जताई है। अभी और भी कर्ज को डूबत खाते में डाला जाएगा, क्योंकि कई कर्जदार दिवालिया हो चुके हैं। यह सब तब हो रहा है, जब बड़े कर्जदार अपने निजी विमानों में उड़ रहे हैं और आराम से छुट्टियां बिता रहे हैं। राजग सरकार को यह दिखाना होगा कि वह संस्थागत भ्रष्टाचार के खिलाफ अपने बड़े वायदे पर कायम रहेगी। लेकिन जिस तरह से माल्या ने देश छोड़ा, वह भाजपा के भ्रष्टाचार विरोधी वायदे से मेल नहीं खाता।