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सफलता 100 फीसद : शहर पर भारी गांव की सरकारी तालीम

इंदौर। माध्यमिक शिक्षा मंडल के हाईस्कूल में गांव के 13 सरकारी स्कूलों के करीब 350 विद्यार्थियों ने मिलकर शहर के 130 स्कूलों के 15 हजार बच्चों को पछाड़ दिया। बोर्ड नतीजों के विश्लेषण में सामने आया कि गांव में अभावों के बीच विद्यार्थियों ने अपनी काबिलियत को साबित किया और शिक्षा विभाग की नाक रख ली। जिन गांवों के बच्चों ने यह कमाल दिखाया है उनके ग्रामीण स्कूलों के रिजल्ट पर सुमेधा पुराणिक चौरसिया की ग्राउंड रिपोर्ट...

पढ़ने की लगन और पढ़ाने की ललक हो तो न गांव की टूटी फूटी सड़क आड़े आती हैं न शिक्षकों की कमी। यह साबित किया मगरखेड़ी, पेडमी, अटाहेड़ा, दूधिया गांव सहित 13 स्कूलों के बच्चों ने। इन बच्चों ने अभावों में 10वीं बोर्ड का सौ फीसदी रिजल्ट दिया। यहां स्कूल पहुंचने में ही बच्चों को एक घंटे से ज्यादा समय लग जाता है। इन बच्चों ने कोई कोचिंग ली और न एक्स्ट्रा क्लास। इनके लिए तो सिर्फ दो कमरे के स्कूल भवन में दो शिक्षकों द्वारा करवाई गई पढ़ाई ही सब कुछ है। इन बच्चों ने अपनी लगन और मेहनत के दम पर शहर के उन बड़े स्कूलों को मात दी, जहां तमाम सुविधाओं के बीच बच्चे पढ़ाई करते हैं।

मगरखेड़ी : अतिथि शिक्षकों के भरोसे 16 में से 16 पास

सांवेर तहसील का मगरखेड़ी गांव 15 किमी अंदर है, जहां महज 600 की आबादी है। यहां से इस साल दसवीं बोर्ड परीक्षा में 16 विद्यार्थियों ने परीक्षा दी थी जिसके नतीजा सौ फीसद रहा। सभी विद्यार्थी प्रथम व द्वितीय श्रेणी में पास हुए हैं। इस स्कूल में नियमित शिक्षक तक नहीं है। अतिथि शिक्षकों के भरोसे बच्चों ने पढ़ाई की। प्राचार्य दीपक हलवे रोज इंदौर से 40 किमी दूर स्कूल में पढ़ाने जाते हैं उनका कहना है कि गांव के बच्चों में पढ़ने की ललक बहुत है।

दूधियाः न प्रिंसिपल न विषय विशेषज्ञ फिर भी 46 के 46 पास

हायर सेकंडरी स्कूल दूधिया से 10वीं में 46 विद्यार्थियों ने परीक्षा दी थी, सभी प्रथम व द्वितीय श्रेणी में उत्तीर्ण हैं। नवलखा से 9 किमी. दूर इस स्कूल में न तो प्रिंसिपल है न ही हिन्दी, अंग्रेजी और सामाजिक विज्ञान के शिक्षक हैं। प्रभारी अखिलेश चौधरी पिछले 18 साल से स्कूल में हैं जो कि अध्यापक संवर्ग हैं। विद्यार्थी रवीना पंवार, सपना चौधरी, रूपेश सुनील ने बताया कि बिना कोचिंग के पढ़ाई की।

अटाहेड़ाः दो कमरों का स्कूल

देपालपुर से 35 किमी दूर बसे अटाहेड़ा गांव का हाईस्कूल अतिथि शिक्षकों के भरोसे चल रहा है। स्कूल भी मात्र दो कमरों का है। प्रभारी दिनेश परमार बताते हैं कि इस साल 10वीं में 16 बच्चे बैठे और सभी पास हुए। पिछले तीन साल से स्कूल का सौ फीसदी रिजल्ट आ रहा है।

पेड़मी : एक अतिथि शिक्षक

इंदौर से 35 किमी दूर पेड़मी गांव के स्कूल में गणित, अंग्रेजी, हिन्दी व संस्कृत के शिक्षक नहीं हैं। प्राचार्य केसी मालवीय शहर से एक अतिथि शिक्षक को अपनी गाड़ी पर बैठाकर स्कूल ले जाते हैं। एक शिक्षक के भरोसे स्कूल चलता है। इस साल 20 बच्चों ने 10वीं की परीक्षा दी थी।

10वीं में सौ फीसद रिजल्ट

य हाईस्कूल जवाहर टेकरी

हायर सेकंडरी स्कूल बिचौली मर्दाना

हाईस्कूल कनाड़िया

हाईस्कूल पेड़मी

हाईस्कूल सेमल्याचाऊ

हाईस्कूल मगरखेड़ी

हाईस्कूल बघाना

हाईस्कूल गुरान

हायर सेकंडरी स्कूल अजनोद

हायर सेकंडरी स्कूल चंद्रावतीगंज

12वीं में सौ फीसद रिजल्ट

हायर सेकंडरी स्कूल बिचौली मर्दाना

कन्या स्कूल बक्षीबाग

हायर सेकंडरी स्कूल चंद्रावतीगंज

हायर सेकंडरी स्कूल अटाहेड़ा

सच्चाई का दूसरा पहलू

इस साल फर्स्ट डिवीजन, अगले साल घर बैठेंगी क्योंकि...

रीना जैपाल ने 10वीं कक्षा प्रथम श्रेणी में तीन विषयों में विशेष योग्यता के साथ पास की। गांव में तो घर की दहलीज से बाहर निकलते ही सामने स्कूल आ जाता है। घर में गाय-भैंस और घास भूसे के अलावा कुछ नहीं है। इन सब के बीच रानी का सपना डॉक्टर या इंजीनियर बनने का है, लेकिन उसे अभी यह नहीं पता कि वह 11वीं में पढ़ाई कहां से करेगी, क्योंकि गांव से 8 किमी तक कोई हायर सेकंडरी स्कूल नहीं है । वहीं परिवार वाले इतने दूर बेटी को अकेले स्कूल भेजने में कतराते हैं। यह अकेली रीना की कहानी नहीं बल्कि गांव में पढ़ने वाली उन तमाम होनहार बेटियों की है जिनके सपने आंखों में ही दम तोड़ रहे हैं। नईदुनिया टीम ने गांव में जाकर हालात देखे तो पता लगा कि होनहार बेटियों के सपने किस तरह बिखर रहे हैं। विडंबना है कि मगरखेड़ी गांव की कोई बेटी 10वीं कक्षा के बाद नहीं पढ़ सकी।

बस पकड़ने के लिए तीन किमी पैदल

प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण होने वाली रानू मालवीय, मधु जाटवा, अर्चना जायसवाल के सामने भी यही समस्या है। आंखों में तो बहुत सपने हैं, लेकिन वे नहीं जानती कि वो पूरा कर पाएंगी या नहीं? अर्चना कहती है कि हायर सेकंडरी पढ़ने के लिए सांवेर के चंद्रावतीगंज जाना पड़ता है। गांव से करीब 8 किमी दूर है। बस पकड़ने के लिए 3 किमी पैदल चलना पड़ता है। हम सभी लड़कियों का लक्ष्य है कि कॉलेज पढ़ने जाएं।

83 प्रश लाने वाली शक्ति घर बैठी

मगरखेड़ी की शक्ति पंवार ने पिछले साल 10वीं बोर्ड में 83 प्रतिशत अंक हासिल किए थे। गांव स्कूल में शक्ति का खूब नाम और सम्मान हुआ, लेकिन इस साल वह स्कूल की सीढ़ी नहीं चढ सकी और माता-पिता ने उसकी शादी का फैसला कर लिया। इंजीनियर बनने का ख्वाब देखने वाली शक्ति खुद ही भूूल गई कि उसका क्या ख्वाब था। पिता किशोरसिंह पंवार ने कहा कि जमाना खराब है, लड़की को 8-10 किमी दूर पैदल और बस में भेजना ठीक नहीं है। गांव में हायर सेकंडरी स्कूल होता तो हम जरूर पढ़ाते। मां सुनीता कहती है कि हमें भी अफसोस है।