Deprecated (16384): The ArrayAccess methods will be removed in 4.0.0.Use getParam(), getData() and getQuery() instead. - /home/brlfuser/public_html/src/Controller/ArtileDetailController.php, line: 73
 You can disable deprecation warnings by setting `Error.errorLevel` to `E_ALL & ~E_USER_DEPRECATED` in your config/app.php. [CORE/src/Core/functions.php, line 311]
Deprecated (16384): The ArrayAccess methods will be removed in 4.0.0.Use getParam(), getData() and getQuery() instead. - /home/brlfuser/public_html/src/Controller/ArtileDetailController.php, line: 74
 You can disable deprecation warnings by setting `Error.errorLevel` to `E_ALL & ~E_USER_DEPRECATED` in your config/app.php. [CORE/src/Core/functions.php, line 311]
Warning (512): Unable to emit headers. Headers sent in file=/home/brlfuser/public_html/vendor/cakephp/cakephp/src/Error/Debugger.php line=853 [CORE/src/Http/ResponseEmitter.php, line 48]
Warning (2): Cannot modify header information - headers already sent by (output started at /home/brlfuser/public_html/vendor/cakephp/cakephp/src/Error/Debugger.php:853) [CORE/src/Http/ResponseEmitter.php, line 148]
Warning (2): Cannot modify header information - headers already sent by (output started at /home/brlfuser/public_html/vendor/cakephp/cakephp/src/Error/Debugger.php:853) [CORE/src/Http/ResponseEmitter.php, line 181]
Notice (8): Undefined variable: urlPrefix [APP/Template/Layout/printlayout.ctp, line 8]news-clippings/सबक-स्वार्थ-और-संदेश-इर्शादुल-हक-4440.html"/> न्यूज क्लिपिंग्स् | सबक, स्वार्थ और संदेश-इर्शादुल हक | Im4change.org
Resource centre on India's rural distress
 
 

सबक, स्वार्थ और संदेश-इर्शादुल हक

महात्मा गांधी के पौत्र और पश्चिम बंगाल के पूर्व राज्यपाल गोपाल कृष्ण गांधी बदलते बिहार पर वैश्विक सम्मेलन के समापन सत्र में अपना भाषण एक काल्पनिक चिट्ठी के रूप में पेश करते हैं. जयप्रकाश नारायण के नाम लिखे पत्र में वे कहते हैं, 'जयप्रकाश जी अगर आज आप होते तो खुश होते कि आपके दो शागिर्दों-लालू प्रसाद और नीतीश कुमार ने बिहार में कितना अच्छा काम किया है. लालू ने बिहार में सामाजिक न्याय की अद्भुत चेतना जगाई. और आपके दूसरे शागिर्द नीतीश कुमार ने प्रदेश में न्याय के साथ विकास का महान काम शुरू कर दिया है.' नीतीश गोपाल कृष्ण गांधी की बातों को टकटकी लगाये मोहित होकर सुनते रहते हैं. सम्मेलन के एक अन्य सत्र में भारतीय मूल के ब्रितानी उद्योगपति करण बिलमोरिया बिहार के नेतृत्व की तुलना ब्रिटेन की पूर्व प्रधानमंत्री मार्ग्रेट थैचर से करते हैं. कहते हैं कि थैचर की कोशिशों से ब्रिटेन की अर्थव्यवस्था का स्वरूप बदल गया था. नीतीश भी कुछ उसी अंदाज में तरक्की का इतिहास रच रहे हैं. 

लेकिन ऐसा नहीं है कि 17-19 फरवरी तक चले इस बहुप्रचारित सम्मेलन में नीतीश सरकार के कामों को सिर्फ सराहना ही मिली. आदित्य बिड़ला ग्रुप के चेयरमैन कुमार मंगलम बिड़ला ने साफ कहा कि आप चाहे जो कुछ भी कर लें कोई भी निवेशक आपके यहां तब तक अपनी पूंजी का पिटारा नहीं खोलेगा जब तक आपके यहां बुनियादी सुविधाओं का विकास नहीं होगा. उन्होंने कहा कि बिहार में बिजली की स्थिति इतनी दयनीय है कि कोई यहां निवेश करने से पहले कई बार सोचेगा. नीतीश को भी इसका अहसास रहा होगा. शायद तभी उन्होंने सम्मेलन के उद्घाटन सत्र में ही कह दिया था कि इस आयोजन का मकसद पूंजी निवेश हासिल करना नहीं बल्कि यह है कि इस सम्मेलन में होने वाले विचार मंथन से जो आइडिया सामने आयेंगे, उन्हें सरकार अपने विकास के एजेंडा का हिस्सा बनायेगी. 

हालांकि ऐसा नहीं है कि बिहार की बुनियादी सुविधाओं की बदहाली के कारण किसी ने इस दौरान निवेश की घोषणा नहीं की. भले ही नीतीश ने कहा हो कि यह सम्मेलन निवेश हासिल करने की कवायद नहीं है पर बिड़ला ने पांच सौ करोड़ रुपये के निवेश से सीमेंट फैक्ट्री लगाने का ऐलान कर दिया.

 इस सम्मेलन में देश-दुनिया के लगभग 1500 प्रतिनिधियों और 150 विशेषज्ञ वक्ताओं ने हिस्सा लिया. इनमें नेपाल के प्रधानमंत्री बाबूराम भट्टाराई, भारतीय रिज़र्व बैंक के गवर्नर डी सुब्बाराव, लंदन स्कूल ऑफ़ इकॉनॉमिक्स के अर्थशास्त्री प्रोफ़ेसर लॉर्ड निकोलस स्टर्न और लॉर्ड मेघनाद देसाई और योजना आयोग के उपाध्यक्ष मोंटेक सिंह अहलूवालिया सहित कई अन्य बहुचर्चित लोग शामिल थे.  कवायद इस पर केंद्रित रही कि बिहार को कम से कम समय में विकसित राज्य कैसे बनाया जाये. लेकिन कई चीजें इसके इतर भी हुईं. जैसे आयोजन के दौरान कई बार केंद्र और राज्य की तनातनी की झलक दिखी. नीतीश ने एक बार फिर बिहार के साथ केंद्र केंद्र के सौतेले रवैय्ये का राग छेड़ा. वे केंद्र द्वारा बिहार को विशेष दर्जा नहीं देने और राज्य के साथ सौतेला रवैया अपनाने वाली बात कह कर जनता का समर्थन लेने की कोशिश करते रहे हैं. इसलिए उन्होंने जहां योजना आयोग के उपाध्यक्ष मोंटेक सिंह अहलूवालिया को निशाना बनाया वहीं योजना आयोग के सदस्य अभिजीत सेन पर भी तंज के तीर छोड़े. उधर, मोंटेक और सेन ने भी बिहार सरकार के तर्कों का करारा जवाब दिया.मोंटेक ने कहा कि राज्य को तरक्की की गति के साथ यह भी सुनिश्चित करना होगा कि विकास के लाभ का असर गरीबों की आमदनी में इजाफे के तौर पर दिखे, जो कि अभी बिहार में नहीं हो रहा है. 

उपमुख्यमंत्री सुशील मोदी ने केंद्र सरकार के बजाय केंद्रीय वित्तीय संस्थानों यानी बैंकों के कथित दोहरे रवैये को अपनी राजनीति का रामबाण एजेंडा बना रखा है. सुशील बोलते रहे हैं कि बिहारियों के 99000 हजार करोड़ रुपये बैंकों में जमा हैं और ये बैंक बिहारियों के पैसों का निवेश बिहार से बाहर करते हैं लेकिन बिहारियों को कर्ज नहीं देते. इस बार उनकी इस बात पर सेबी के अध्यक्ष ने राज्य सरकार को झटका दिया. सेबी के अध्यक्ष यूके सिन्हा ने बिहार सरकार द्वारा प्रचारित तथ्यों को झुठला दिया. सिन्हा ने कहा कि यह गलतफहमी फैलाना ठीक नहीं है और लोगों को इस तरह की गलतफहमी को अपने सर पर हावी नहीं होने देना चाहिए . 

बिहार सरकार इस सम्मेलन द्वारा एक और अहम एजेंडे पर लगी रही. उसका प्रयास रहा कि इस आयोजन से बिहार की बदलती छवि को पेश किया जाये. बिहार की ब्रांडिंग की जाए. यह अलग बात है कि यह बिहार से ज्यादा नीतीश की छवि चमकाने की कवायद दिखी. 97 प्रतिशत वक्ताओं के शब्द मुख्यमंत्री की विराट छवि को समर्पित रहे. 

हालांकि तीन दिनों के इस सम्मेलन में कुछ ऐसे लम्हे भी आए जब सरकारी दांव उलटा पड़ गया. श्रोताओं में ऐसे भी थे जो सरकारी गुणगान को हद से ज्यादा होता देख जबरन माइक तक पहुंचने से भी बाज नहीं आए. सम्मेलन के दूसरे दिन अचानक एक अंजान सा चेहरा तमाम रुकावटों को दर किनार करता हुआ मंच तक जा पहुंचा. उसका कहना था, 'सिर्फ गुणगान और प्रशंसा ही करनी थी तो इसमें हम जैसों की जरूरत ही क्या थी. राज्य में फैले भ्रष्टाचार से त्रस्त जनता की समस्याओं पर कोई चर्चा तक क्यों नहीं करता. जो बिहार से बाहर के हैं सिर्फ उन्हें ही सुशासन दिख रहा है.' 55 साल का वह व्यक्ति इतना ही कह पाया था कि उसे मंच से उतार दिया गया.  फिर वह भीड़ में खो गया. इसे आयोजकों की चौकसी कहिए या उनके मीडिया प्रबंधन की चालबाजी, कि ऐसी घटनाएं स्थानीय अखबारों में खबर नहीं बन पाईं. अब गुमनाम आदमी की बात को भले ही कुछ लोग तवज्जो न देते हों पर इसमें संदेह नहीं कि वह समाज के एक हिस्से का प्रतिनिधित्व तो करता ही है. 

जिस तरह से इस आयोजन की एक विराट छवि स्थापित की गई थी उससे इसमें शामिल प्रतिनिधियों और जिन्हें इसके लिए आमंत्रित नहीं किया गया था, उनमें दो तरह के भाव तो स्पष्ट थे. जो शामिल थे वे इसे अपने लिए बड़ी उपलब्धि समझ रहे थे और बदले में शाइनिंग बिहार के नारे लगाकर अपना हक अदा कर रहे थे. पर बिहार के ऐसे स्थानीय विद्वान या विशेषज्ञ, जो आम तौर पर सरकार के आलोचक रहे हैं और जिन्हें इस सम्मेलन का हिस्सा बनने का मौका नहीं मिला, वे इसे बिहार के असल धरतीपुत्रों का अपमान कह रहे थे. बिहार के चर्चित अर्थशास्त्री एनके चौधरी उनमें से ही एक हैं.  टीवी कलाकार शेखर सुमन के इस समारोह में शामिल होने के ठीक पहले कांग्रेस से इस्तीफा देने की घोषणा ने भी कइयों को सोचने के लिए मजबूर किया. सवाल उठे कि क्या इस सम्मेलन में शामिल होने के लिए किसी और पार्टी की वफादारी छोड़ना एक जरूरी शर्त तो नहीं थी. शेखर 2009 में कांग्रेस के टिकट पर लोकसभा चुनाव लड़कर हार चुके हैं. इस्तीफे की घोषणा के साथ सुमन ने संकेत भी दिया कि वह जनतादल यू में शामिल हो सकते हैं. शत्रुघ्न सिन्हा का बुलावे के बावजूद इस सम्मेलन में न आना कई तरह के कयासों को जन्म दे गया. वह पटना से भाजपा सांसद हैं पर उन्हें एक बिहारी कलाकार की हैसियत से आमंत्रित किया गया था.

ऐसा नहीं कि राजनीतिक एजेंडे फिल्म और टीवी  कलाकारों के ही रहे हों. आयोजन में शामिल कुछ बड़े पत्रकारों के बारे में भी कई तरह की चर्चाएं तैरती दिखीं. कहा जा रहा है कि वे सरकार के पक्ष में निभाई गई अपनी वफादारी के बदले इसकी कीमत वसूलने में भी लगे हैं. अगले अप्रैल में होने वाले राज्यसभा चुनाव में इन हस्तियों में से किसी एक को टिकट मिल जाये तो यह आश्चर्य की बात नहीं होगी. l