Deprecated (16384): The ArrayAccess methods will be removed in 4.0.0.Use getParam(), getData() and getQuery() instead. - /home/brlfuser/public_html/src/Controller/ArtileDetailController.php, line: 73
 You can disable deprecation warnings by setting `Error.errorLevel` to `E_ALL & ~E_USER_DEPRECATED` in your config/app.php. [CORE/src/Core/functions.php, line 311]
Deprecated (16384): The ArrayAccess methods will be removed in 4.0.0.Use getParam(), getData() and getQuery() instead. - /home/brlfuser/public_html/src/Controller/ArtileDetailController.php, line: 74
 You can disable deprecation warnings by setting `Error.errorLevel` to `E_ALL & ~E_USER_DEPRECATED` in your config/app.php. [CORE/src/Core/functions.php, line 311]
Warning (512): Unable to emit headers. Headers sent in file=/home/brlfuser/public_html/vendor/cakephp/cakephp/src/Error/Debugger.php line=853 [CORE/src/Http/ResponseEmitter.php, line 48]
Warning (2): Cannot modify header information - headers already sent by (output started at /home/brlfuser/public_html/vendor/cakephp/cakephp/src/Error/Debugger.php:853) [CORE/src/Http/ResponseEmitter.php, line 148]
Warning (2): Cannot modify header information - headers already sent by (output started at /home/brlfuser/public_html/vendor/cakephp/cakephp/src/Error/Debugger.php:853) [CORE/src/Http/ResponseEmitter.php, line 181]
Notice (8): Undefined variable: urlPrefix [APP/Template/Layout/printlayout.ctp, line 8]news-clippings/सरकार-को-आरबीआई-पर-दबाव-नहीं-बनाना-चाहिए-संदीप-बामजई-13017.html"/> न्यूज क्लिपिंग्स् | सरकार को आरबीआई पर दबाव नहीं बनाना चाहिए- संदीप बामजई | Im4change.org
Resource centre on India's rural distress
 
 

सरकार को आरबीआई पर दबाव नहीं बनाना चाहिए- संदीप बामजई

केंद्र सरकार और भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) के बीच थोड़ी-बहुत खींचतान होती रही है, लेकिन इस बार खींचतान ज्यादा बढ़ गयी है. इनके बीच खींचतान में अक्सर आरबीअाई की स्वतंत्रता और स्वायत्तता का मामला सामने आता है. यह विवाद ठीक नहीं है, क्योंकि आरबीआई स्वतंत्र होने के साथ ही एक स्वायत्त संस्था है.


आरबीआई दरअसल भारत का केंद्रीय बैंक है, और इसका काम है मॉनेटरी पॉलिसी (मौद्रिक नीति) की देखभाल करना. आरबीआई मौद्रिक नीतियों का संरक्षक है. वित्त मंत्रालय में एक विभाग है- डिपार्टमेंट ऑफ इकोनॉमिक अफेयर्स, जिसे नॉर्थ ब्लॉक कहते हैं, इसका काम है नीति बनाना.


नॉर्थ ब्लॉक और आरबीआई किसी नीति या योजना को एक ही नजर से नहीं देख सकते. जाहिर है, मौद्रिक नीतियों को लेकर इनमें मतभेद स्वाभाविक है. मौजूदा विवाद यह है कि सरकार चाहती है कि आरबीआई लिक्विडिटी यानी पैसे की आपूर्ति को बढ़ाये. लेकिन, आरबीआई ऐसा नहीं कर रहा है, क्योंकि जब तक देश में आर्थिक संकट या आपातकाल जैसी स्थिति न हो, तब तक आरबीआई के लिए ऐसा करना उचित नहीं है. लेकिन हां, आर्थिक आपातकाल की स्थिति में वित्तमंत्री की शक्ति आरबीआई गवर्नर से ज्यादा है, और तब सरकार पैसे के लिए बात कर सकती है.


सरकार के मुताबिक जो पैसे की कमी बतायी गयी है, दरअसल इसके पीछे एक कारण यह है कि पिछले दिनों निर्माण-निवेश से जुड़ी सरकारी क्षेत्र की कंपनी आईएलएंडएफएस के संकट में आने से भारत के बड़े बैंक मुश्किल में घिर गये थे, इसी कारण सरकार के पास लिक्विडिटी की कमी आ गयी है. सरकार इसीलिए आरबीआई पर दबाव बना रही है.


सरकार चाहती है कि आरबीआई के पास जो मुद्रा-भंडार है, उसमें से कुछ पैसा अगर मिल जाये तो काम आगे बढ़े. आरबीआई भारत सरकार को डिविडेंट (लाभांश) देता है, इस साल दिया भी है, लेकिन वह बाजार के उतार-चढ़ाव के हिसाब से होता है. ऐसे में सरकार का यह सोचना कि आरबीआई पैसा दे दे, तो सरकार अपना काम चलाये, यह सोच बिल्कुल ही गलत है. स्वायत्त संस्था आरबीआई के ऊपर सरकार दबाव नहीं डाल सकती.


आरबीआई की अगली बोर्ड मीटिंग आगामी 19 नवंबर को है. उसी समय यह तय होगा कि फिलहाल यह विवाद कितना सुलझता है. इस सरकार की एक बड़ी खराब आदत है कि वह संस्थाओं को ठीक रखने की कोशिश नहीं करती है. फिलहाल तो लिक्विडिटी का संकट जरूर है, लेकिन आर्थिक आपातकाल की स्थिति नहीं है. ऐसे में दोनों संस्थाओं को साथ बैठकर आपसी बातचीत से कोई समाधान निकालना चाहिए. एक तरफ तो सरकार यह कह रही है कि नोटबंदी से बहुत सारा राजस्व प्राप्त हुआ है, वहीं पैसे की कमी का रोना भी रो रही है.


दरअसल, आगामी लोकसभा चुनाव होने हैं, जिसमें खूब सारा सरकारी खर्च होना है, इसीलिए सरकार को पैसे की जरूरत है. लेकिन, जब सरकारी खर्च होगा, तो राजस्व घाटा बढ़ जायेगा. सरकार का पांचवा साल है और उसकी ज्यादातर नीतियां फेल हो गयी हैं, इसलिए यह सरकार कोई न कोई जुगाड़ लगाकर पैसे हासिल करना चाहती है. कुछ भी हो, तीर-कमान लेकर आरबीआई पर प्रहार करना लोकतंत्र के लिए ठीक नहीं माना जा सकता है.