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सरकार संसद में पहले भी सुरक्षित थी

लोकसभा में अविश्वास प्रस्ताव खारिज हो गया. सरकार संसद में पहले भी सुरक्षित थी, अब और भी आश्वस्त हो गयी. विपक्ष भी सरकार पर कुछ छींटाकशी कर खुश हो गया. गले से कहने में जो कसर रह गयी, वह गले लगकर पूरी की गयी. सत्ताधारी मोर्चे में कुछ टूट-फूट होने से विपक्ष भी आश्वस्त है.

मीडिया को भी मसाला मिल गया- मोदी जी और राहुल गांधी के गले पड़ने की फोटो रोज-रोज थोड़े ही मिलती है? ऊपर से राफेल डील का मसाला! वे भी अपने धंधे को लेकर सुरक्षित महसूस कर रहे हैं. दिल्ली में सांसद और स्टूडियो में बैठे सब लोग सुरक्षित हैं. लेकिन क्या देश पहले से ज्यादा सुरक्षित है? अविश्वास प्रस्ताव पर बहस देखते वक्त बार-बार मेरे मन में यह सवाल आ रहा था.

पिछले तीन साल से देश के कोने-कोने में देखे दृश्य घूम रहे थे. मेरे अंदर कोई चिल्ला रहा था- ये सब झूठ है. आज देश का हर वर्ग, हर समुदाय पहले से अधिक असुरक्षित है.

इधर संसद में बहस हो रही थी, उधर संसद मार्ग पर कई राज्यों से आये हजारों किसान इस सरकार के विरुद्ध अविश्वास प्रस्ताव पास कर रहे थे. वे कह रहे थे कि किसान को 'ऐतिहासिक' एमएसपी देने की घोषणा एक ऐतिहासिक धोखा है. सच यह है कि किसान असुरक्षित है, चूंकि उस पर या तो फसल बर्बादी की मार हुई है, या वह अच्छी फसल होने पर बाजार में भाव गिरने का शिकार हुआ है. एक तरफ किसान की आय दोगुनी करने का जुमला है, तो दूसरी तरफ यह सच्चाई है कि पिछले चार साल में किसान की वास्तविक आय जस-की-तस रही है.

इधर प्रधानमंत्री संसद में रोजगार के नये-नये आंकड़ों का आविष्कार कर रहे थे, उधर एसएससी पर विरोध प्रदर्शन कर रहे युवाओं को देख रहा था. देश का युवा भी असुरक्षित है, चूंकि इस सरकार के राज में सरकारी नौकरियों में कटौती हुई है. जो नौकरियां मिल रही हैं, उनमें धांधली बदस्तूर जारी है.

संगठित क्षेत्र का रोजगार पहले जैसी स्थिति में है और असंगठित क्षेत्र में रोजगार के अवसर घटे हैं. बुरी खबर देश तक न पहुंचे, इसलिए सरकार ने चुपचाप लेबर ब्यूरो का वह सर्वे ही बंद करवा दिया है, जो रोजगार के प्रामाणिक आंकड़े दे सकता था.

बहस में एक मार्के की बात मैंने नोट की. इस बार न तो प्रधानमंत्री ने और न ही अन्य किसी प्रवक्ता ने नोटबंदी का जिक्र किया. शायद बीजेपी को भी समझ आ गया है कि अर्थव्यवस्था अब भी नोटबंदी के तुगलकी फैसले की मार से उबर नहीं पायी है. उधर जीएसटी पर एक बार फिर कुछ बदलाव कर यह भी कबूल कर लिया कि इस व्यवस्था से व्यापारी परेशान थे. सच यह है कि पहली बार छोटा व्यापारी बीजेपी के राज में असुरक्षित है, चूंकि उसका व्यापार-धंधा मंदा चल रहा है.

महिलाएं भी असुरक्षित हैं. 'और नहीं नारी पर वार' का नारा देनेवाली इस सरकार की नाक के नीचे आये दिन महिलाओं और बच्चियों के विरुद्ध नृशंस हिंसा की खबरें आती हैं.

सामाजिक न्याय के सवाल पर सरकार की ढाल बने रामविलास पासवान के भाषण में उनका हाव-भाव सच की चुगली कर रहा था. पासवान भी सच जानते हैं कि दलित समाज असुरक्षित है, चूंकि उस पर प्रत्यक्ष-परोक्ष हमले बढ़ रहे हैं. दो अप्रैल को हुआ ऐतिहासिक भारत बंद गवाह है कि आरक्षण की कानूनी व्यवस्था को कमजोर करने और अत्याचार विरोधी कानून को ढीला करने पर दलित समाज चिंतित और असुरक्षित है. आगामी नौ अगस्त को एक और राष्ट्रव्यापी विरोध की तैयारी है.

अविश्वास प्रस्ताव पर वोटिंग तक अलवर में अकबर खान की हत्या नहीं हुई थी. उससे बहुत पहले से ही धार्मिक अल्पसंख्यक अभूतपूर्व असुरक्षा के दौर से गुजर रहे हैं. मुस्लिम समुदाय को दोयम दर्जे का नागरिक बना दिया गया है.

धार्मिक अल्पसंख्यकों, खासतौर पर मुसलमानों, के खिलाफ खुलेआम हिंसा भड़कायी जा रही है. अपराधियों को शह और संरक्षण दिया जा रहा है. राज्यसभा में भारत की नागरिकता को धार्मिक आधार पर परिभाषित करने और मुस्लिम अप्रवासियों को नागरिकता से वंचित करने के कानून पर विचार हो रहा है.

बहस का जवाब देते हुए प्रधानमंत्री 'जुमला स्ट्राइक' के तंज पर भड़क उठे थे. शायद वे जानते हैं कि सर्जिकल स्ट्राइक के बावजूद पाकिस्तान से सीमा पर अतिक्रमण बढ़े हैं, कश्मीर में आतंकी हमले की वारदातें बढ़ी हैं, सेना और सुरक्षा बलों के शहीदों की संख्या दोगुनी हुई है. पड़ोसी मित्रों से संबंध ढीले हुए हैं. राहुल गांधी द्वारा चीनी राष्ट्रपति का जिक्र भी मोदी जी को चुभ गया. वे जानते हैं कि चीन के तेवर ज्यादा आक्रामक हुए हैं. देश की सीमाएं पहले से कहीं ज्यादा असुरक्षित हैं.

संसद में बहस पूरी हो गयी थे, मेरे सवाल अधूरे रह गये थे. अगर देश असुरक्षित है, तो सरकार सुरक्षित कैसे है? जो विपक्ष एक दिन के लिए भी सरकार को घेर नहीं पाया, वह इतना आश्वस्त कैसे है? बेड़ियों में कसा टीवी इतना मुस्कुरा क्यों रहा है? इस राष्ट्रीय असुरक्षा का मुकाबला कौन करेगा? मेरे अंदर से आवाज आ रही थी- आज चुनौती देश बचाने की है. देश बचाने के लिए सिर्फ विरोध नहीं, विकल्प चाहिए.

सिर्फ वादे और सपने नहीं, एक नयी दृष्टि चाहिए. सिर्फ नये चेहरे नहीं, राजनीति में नया जुनून और नयी मर्यादा चाहिए. अगर देश बचाना है, तो सिर्फ नये चुनावी समीकरण नहीं, एक नयी राजनीतिक संभावना की आवश्यकता है, जो हमारे संविधान के मूल्यों में फिर आस्था जगा सके, देशधर्म की रक्षा कर सके. मेरी आंखें संसद से दूर सड़क पर जा रही थीं...