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सरकारी स्कूलों के ज्यादातर बच्चे नहीं बोल पाते ए, बी, सी, डी...

रायपुर। स्कूल शिक्षा विभाग इस बार पहली से आठवीं तक वार्षिक परीक्षा लेने की तैयारी कर रहा है। वहीं सरकारी स्कूलों में पिछले चार-पांच सालों से सतत मूल्यांकन के नाम पर चल रहे फेल न करने के खेल ने पढ़ाई का कबाड़ा कर दिया है।

आलम यह है कि राजधानी के सरकारी स्कूलों के पांचवीं क्लास के ज्यादातर बच्चे अंग्रेजी की ए, बी, सी, डी...(अल्फाबेट) भी ठीक से नहीं बोल पाते हैं और जिम्मेदार शिक्षक-अधिकारी अपनी नाकामी छुपाने के लिए इसे पालकों के बैकग्राउंड व उनकी निरक्षरता को इसकी वजह बता रहे हैं।

सतत मूल्यांकन व परीक्षा में ग्रेडिंग पद्धति शुरु होने के पांच साल बाद इस बार पहली से आठवीं तक की वार्षिक परीक्षा का आयोजन स्कूल शिक्षा विभाग कर रहा है। इसके लिए पहली से आठवीं तक के पेपर जिला स्तर पर तैयार कराए गए हैं।

इसी पेपर के आधार पर परीक्षा लेने के लिए परीक्षा के एक महीने पहले सभी प्राथमिक व मीडिल स्कूलों को फरमान जारी कर दिया गया है। नईदुनिया ने राजधानी के कुछ स्कूलों में प्राथमिक शिक्षा के स्तर का जायजा लिया कि क्या शिक्षक व बच्चे इस साल जिला स्तरीय वार्षिक परीक्षा के लिए तैयार हैं।

जिम्मेदार शिक्षकों ने परीक्षा को शासन का फरमान मानने की मजबूरी बताया और हर महीने सतत मूल्यांकन, त्रैमासिक व अर्द्धवार्षिक परीक्षा से बच्चों को परीक्षा के काबिल होना बताया। वहीं जब पांचवीं कक्षा के छात्रों से बात की गई, तो पता चला की ज्यादातर बच्चे हिन्दी के अक्षर ज्ञान व अंग्रेजी के अल्फाबेट भी अच्छे से नहीं जानते। ऐसे बच्चे वार्षिक परीक्षा से डर रहे हैं।

केस वन-

शासकीय प्राथमिक शाला रायपुरा

बच्चों की संख्या - 506

टीचर - 14 (प्रधान पाठक सहित)

कक्षा पांचवी में बच्चों की संख्या- करीब 125

60 फीसदी बच्चे नहीं जानते ए-टू-जेड

नईदुनिया ने जब पांचवीं कक्षा के बच्चों से अंग्रेजी के अल्फाबेट बोलने को कहा तो कक्षा में मौजूद 34 में से महज सात-आठ बच्चे ही सही बता पाए। इसी तरह ज्यादातर बच्चों को हिन्दी के पूरे अक्षरों का ज्ञान नहीं है। 60 फीसदी बच्चों को 10 तक का पहाड़ा नहीं आता। 90 फीसदी बच्चों को वन, टू, थ्री.... 100 तक गिनती अंग्रेजी में नहीं आती।

नियमित स्कूल आने वाले बच्चों के लिए अच्छाः

प्राथमिक शाला रायपुरा की प्रधान पाठक श्रीमती स्वर्णलता नायडू का कहना है कि परीक्षा में एकरूपता लाने के लिए यह प्रक्रिया अच्छी है। इससे नियमित आने वाले छात्रों को फायदा होगा। वहीं कक्षा से गायब रहने वाले बच्चे पिछड़ जाएंगे। बच्चों को लेकर पालकों की गंभीरता भी जरूरी है।

केस टू -

शासकीय प्राथमिक शाला चंगोराभाठा

बच्चों की कुल संख्या- 290

टीचर- 08 (प्रधान पाठक सहित)

कक्षा पांचवीं में बच्चों की संख्या- करीब 113

अंग्रेजी का ज्ञान कमजोरः

नईदुनिया ने प्राथमिक शाला चंगोराभाठा के स्कूल परिसर में खेल रहे पांचवीं कक्षा के छात्र-छात्राओं से चर्चा की। उनमें से ज्यादातर अंग्रेजी के अल्फाबेट पूरे नहीं जानते। गणित के पहाड़े व गिनती में भी कमजोर हैं। गणित के थर्टी व थर्टीन के अंतर को नहीं जानते।

बच्चों की परीक्षा जरूरीः

प्राथमिक शाला चंगोराभाठा के प्रधान पाठक बीएल माली का कहना है कि बच्चों की परीक्षा जरूर होनी चाहिए। इससे बच्चों में पढ़ाई के प्रति रुचि बढ़ती है। परीक्षा का डर उन्हें नियमित कक्षा में आने व पढ़ने के लिए प्रेरित करता है। इससे बच्चों की पढ़ाई में सुधार होगा।

फेल न करने की प्रणाली ने गिराया शिक्षा का स्तरः

उल्लेखनीय है कि शिक्षा में गुणवत्ता लाने व बच्चों को स्कूली पढ़ाई से विमुख होने से रोकने के नाम वर्ष 2010-11 में सतत मूल्यांकन शिक्षा पद्धति लागू की गई। इसके तरह कक्षा पहली से आठवीं तक की किसी भी छात्र-छात्राओं को फेल नहीं कर सकते। हालांकि यह प्रावधान किया गया है कि जो बच्चे पढ़ाई में कमजोर हैं, उन्हें फिर से पढ़ाकर उनका स्तर सुधारा जाए। लेकिन इसका फायदा होने के बजाय उल्टा असर दिख रहा है। शिक्षा विशेषज्ञों की मानें तो हर बच्चे को आगे की कक्षा में ढकेलने व फेल नहीं करने की मजबूरी से शिक्षा का स्तर गिरता जा रहा है।

शिक्षकों के मुताबिक बच्चे इस कारण हैं कमजोरः

- बहुत से बच्चे नियमित स्कूल नहीं आते।

- ज्यादातर बच्चों के पालक निरक्षर व मजदूर वर्ग से हैं।

- बच्चे होमवर्क करके नहीं लाते।

- किताब व गणवेश फ्री मिलने की वजह से पालक भी बच्चों पर ध्यान नहीं देते।

- पालक मीटिंग में नहीं आते।

- बच्चों को सजा देने पर प्रतिबंध।

- बच्चों के मन में शिक्षकों के लिए डर नहीं होना।

स्कूलों में पढ़ाई की गुणवत्ता सुधारने के लिए ही पहली से आठवीं कक्षा तक की परीक्षा पूरे प्रदेश में जिला स्तर पर आयोजित की जा रही है। इससे परीक्षा में एकरूपता आएगी।

- सुब्रत साहू, सचिव, स्कूल शिक्षा