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सर्जरी के बाद बेहतर इलाज की बारी - डॉ. भरत झुनझुनवाला

यह सही है कि नोटबंदी केबाद अर्थव्यवस्था कुछ मंद पड़ रही है। किंतु इससे घबराने की जरूरत नहीं है। सरकार का यह साहसिक कदम लाभप्रद सिद्ध होगा यदि आगे की नीतियां सही हों, जैसे सर्जरी के बाद मरीज को सही खुराक देने से वह स्वस्थ हो जाता है। पहला मुद्दा सरकारी खर्चों की गुणवत्ता का है। नोटबंदी से डिजिटल क्षेत्र में व्यापार बढ़ेगा। जो माल पूर्व में बिना टैक्स अदा किए बाजार में पहुंचता था, उस पर अब टैक्स अदा किया जाएगा। यह बोझ अंतत: उपभोक्ता पर पड़ेगा। दुकानदार टैक्स के बोझ के अनुरूप दाम में वृद्धि करेगा। उपभोक्ता की क्रय शक्ति का ह्रास होगा, लेकिन यह तात्कालिक प्रभाव है। अंतिम प्रभाव इस बात पर निर्भर करेगा कि सरकार द्वारा वसूले गए अतिरिक्त टैक्स का उपयोग किस दिशा में किया जाता है। यह समाज के लिए किया जाता है अथवा सरकारी खपत के लिए? जैसे गृहिणी के खर्च में कटौती की जाए तो परिवार का जीवन-स्तर गिरेगा, परंतु यदि उस रकम से फ्रिज खरीदा जाए तो अंत में परिवार का जीवन-स्तर उठेगा। इसी प्रकार अतिरिक्त टैक्स का प्रयोग यदि सरकार छोटे शहरों में सड़क, पानी, बिजली, इंटरनेट, वाई-फाई अथवा अन्य सुविधाओं के लिए करती है तो नोटबंदी का अंतिम प्रभाव सुखद हो जाएगा। इसके विपरीत यदि सरकार इस रकम का उपयोग राफेल लड़ाकू विमानों अथवा सरकारी कर्मियों का वेतन बढ़ाने में करती है तो अंतिम प्रभाव दुखद हो जाएगा। अत: सरकार को अपने खर्चों को जनपरक बुनियादी संरचना में लगाना चाहिए।

छोटे उद्योग की उत्पादन लागत बड़ी कंपनियों की तुलना में ऊंची होती है। कारण यह कि इनके द्वारा कम कुशल श्रमिक और पुरानी मशीनों का प्रयोग होता है, परंतु टैक्स न देने के कारण ये जीवित थे। जैसे खेल में कमजोर खिलाड़ी को हैंडीकैप दिया जाता है, वैसे ही छोटे उद्यमियों को नकद लेन-देन का हैंडीकैप उपलब्ध था। बैंक के मार्फत लेन-देन से ये टैक्स के दायरे में आ जाएंगे। इनकी लागत बढ़ेगी और ये बड़े उद्योगों का सामना नहीं कर पाएंगे। इस संकट से बचने के लिए छोटे उद्यमियों को उपलब्ध एक्साइज ड्यूटी की छूट को वर्तमान 1.5 करोड़ रुपए से बढ़ाकर 10 करोड़ रुपए कर देना चाहिए, जिससे ये टैक्स के बोझ से न दबें। इसके साथ-साथ सभी स्वरोजगारियों, जिनमें मैं भी शामिल हूं, को इनकम टैक्स में स्वरोजगार छूट देनी चाहिए। वर्तमान में 2.5 लाख रुपए के ऊपर इनकम टैक्स देय होता है। वेतनभोगियों के लिए इसे बरकरार रखा जाए, क्योंकि इन्हें माल के दाम में गिरावट से लाभ यूं ही हो रहा है। परंतु स्वरोजगारियों को कम से कम 7.5 लाख रुपए की स्वरोजगार छूट देनी चाहिए, क्योंकि आर्थिक विकास इन्हीं के द्वारा किया जाता है।

 

 

ईंधन तेल के वैश्विक मूल्य बढ़ रहे हैं। ये 45 डॉलर प्रति बैरल से बढ़कर 55 डॉलर प्रति बैरल हो गए हैं। इनके और बढ़ने की संभावना है। नतीजतन, हमें तेल के आयात के लिए और अधिक मात्रा में भुगतान करना पड़ेगा। इसका प्रभाव शरीर से खून निकालने जैसा होगा। इस संकट का सामना करने के लिए वित्त मंत्री को तेल पर आयात शुल्क बढ़ाना चाहिए। डीजल तथा पेट्रोल का दाम देश में 100 रुपए अथवा 125 रुपए हो जाने दें। इससे ऊर्जा का अधिक उपयोग करने वाला मैन्युफैक्चरिंग क्षेत्र दबाव में आएगा। इनकी उत्पादन लागत बढ़ेगी। इस बोझ से अर्थव्यवस्था को उबारने के लिए सेवा क्षेत्र को प्रोत्साहन देना चाहिए जैसे मेडिकल ट्रांसक्रिप्शन, ट्रांसलेशन, स्वास्थ्य पर्यटन इत्यादि को। मैन्युफैक्चरिंग की तुलना में सेवा क्षेत्र में ऊर्जा का दसवां हिस्सा लगता है। तेल पर टैक्स बढ़ाने से वसूल की गई रकम से सर्विस टैक्स में भारी छूट दें। गुड्स एवं सर्विस टैक्स (जीएसटी) में सेवाओं के लिए न्यून टैक्स दर की व्यवस्था करें। ऐसा करने से तेल के दाम में वृद्धि के बावजूद हमारा सेवा क्षेत्र द्रुत गति से बढ़ेगा और आर्थिक विकास जारी रहेगा। तेल के आयात के लिए अर्थव्यवस्था से खून बहना कम हो जाएगा।

 

 

ट्रंप सरकार के आने पर अमेरिकी बहुराष्ट्रीय कंपनियों द्वारा भारत से वापसी हो सकती है। साथ-साथ अमेरिका के केंद्रीय बैंक ने ब्याज दरों में वृद्धि की है। इससे विदेशी निवेशकों की प्रवृत्ति भारत में बिकवाली करके अपनी रकम को अमेरिका में निवेश करने की बनेगी। इन दोनों कारणों से भारत से विदेशी निवेश के पलायन होने की संभावना है। बीते दो माह से हमारे शेयर बाजार तथा रुपए के मूल्य में गिरावट आने का यह प्रमुख कारण है। ऐसी स्थिति में 'मेक इन इंडिया जैसे कार्यक्रमों के तहत बड़ी मात्रा में विदेशी निवेश को आकर्षित करना संभव नहीं होगा। इनके पीछे भागने के स्थान पर अपनी पूंजी के पलायन को रोकने पर ध्यान देना होगा। डूबते बैंक के पास कर्ज का आवेदन देना व्यर्थ होता है। या कहें कि बीमार व्यक्ति से गाड़ी को धक्का लगाने की अपेक्षा भी व्यर्थ है। वित्त मंत्री को चाहिए कि अपनी पूंजी का संरक्षण और सम्मान करें। एक प्रमुख बैंक के कॉरपोरेट लोन देखने वाले अधिकारी ने बताया पिछले तीन वर्षों से कंपनियों द्वारा निवेश बंद हैं। केवल वर्किंग कैपिटल के लिए छिटपुट ऋ ण दिए जा रहे हैं। इस हताशा के वातावरण को तोड़ने के लिए घरेलू उत्पादन शुल्क (एक्साइज ड्यूटी) में कटौती व आयात शुल्क (कस्टम ड्यूटी) में वृद्धि करनी चाहिए। तब हमारे देश में निवेश बढ़ेगा।

 

 

नोटबंदी के तूफान में नौकरशाही ने व्यापारी को चोर के रूप में प्रस्तुत किया है। व्यापारी का मनोबल टूटा है। इस तूफान पर ब्रेक लगाना चाहिए। वर्तमान वातावरण में भारतीय पूंजी तेजी से बाहर जाएगी। व्यापारियों को डर है कि टैक्स अधिकारियों द्वारा उन पर अनायास ही कार्रवाई की जाएगी। पहले नोटिस जारी किया जाएगा फिर घूस लेकर उसे निरस्त किया जाएगा। ईमानदार घबरा रहा है, क्योंकि वह घूस देने में असमर्थ है। कहा जाता है कि ताले शरीफों के लिए लगाए जाते हैं, न कि चोरों के लिए। इसी प्रकार नोटबंदी ने शरीफों का जीवन कठिन बना दिया है। चोर बेफिक्र हैं। इस समस्या का समाधान बैंक अधिकारियों के भ्रष्टाचार पर नियंत्रण करने से निकलेगा। किसी ने बताया कि गुजरात में नरेंद्र मोदी के शासनकाल में सरकारी कर्मियों के भ्रष्टाचार पर सीधे मोदी की नजर रहती थी। ऐसा ही राष्ट्रीय स्तर पर करना चाहिए। टैक्स कर्मियों के भ्रष्टाचार का गोपनीय मूल्यांकन व्यापारियों से कराना चाहिए। कौटिल्य ने कहा था कि सरकारी कर्मियों के भ्रष्टाचार पर नियंत्रण को एक जासूस व्यवस्था बनानी चाहिए जो कि स्वयं पहल करके भ्रष्ट कर्मियों को ट्रैप करे। फिर इस जासूस व्यवस्था पर निगरानी को दूसरी जासूस व्यवस्था बनानी चाहिए। व्यापारियों को टैक्स कर्मियों के आतंक से बचाना चाहिए। इन कदमों को उठाएंगे तो नोटबंदी का परिणाम सुखद होगा।

 

(लेखक आर्थिक मामलों के विशेषज्ञ हैं और आईआईएम, बेंगलुरु में प्राध्यापक रहे हैं)