Deprecated (16384): The ArrayAccess methods will be removed in 4.0.0.Use getParam(), getData() and getQuery() instead. - /home/brlfuser/public_html/src/Controller/ArtileDetailController.php, line: 73
 You can disable deprecation warnings by setting `Error.errorLevel` to `E_ALL & ~E_USER_DEPRECATED` in your config/app.php. [CORE/src/Core/functions.php, line 311]
Deprecated (16384): The ArrayAccess methods will be removed in 4.0.0.Use getParam(), getData() and getQuery() instead. - /home/brlfuser/public_html/src/Controller/ArtileDetailController.php, line: 74
 You can disable deprecation warnings by setting `Error.errorLevel` to `E_ALL & ~E_USER_DEPRECATED` in your config/app.php. [CORE/src/Core/functions.php, line 311]
Warning (512): Unable to emit headers. Headers sent in file=/home/brlfuser/public_html/vendor/cakephp/cakephp/src/Error/Debugger.php line=853 [CORE/src/Http/ResponseEmitter.php, line 48]
Warning (2): Cannot modify header information - headers already sent by (output started at /home/brlfuser/public_html/vendor/cakephp/cakephp/src/Error/Debugger.php:853) [CORE/src/Http/ResponseEmitter.php, line 148]
Warning (2): Cannot modify header information - headers already sent by (output started at /home/brlfuser/public_html/vendor/cakephp/cakephp/src/Error/Debugger.php:853) [CORE/src/Http/ResponseEmitter.php, line 181]
Notice (8): Undefined variable: urlPrefix [APP/Template/Layout/printlayout.ctp, line 8]news-clippings/सामाजिक-कुरीतियों-के-खिलाफ-एक-अभियान-पत्रलेखा-चटर्जी-9003.html"/> न्यूज क्लिपिंग्स् | सामाजिक कुरीतियों के खिलाफ एक अभियान-- पत्रलेखा चटर्जी | Im4change.org
Resource centre on India's rural distress
 
 

सामाजिक कुरीतियों के खिलाफ एक अभियान-- पत्रलेखा चटर्जी

क्या इस देश को एक नए नारे की जरूरत है? मेरे हिसाब से यह नारा इस तरह हो सकता है-एक विवेकशील भारत। डिजिटल इंडिया और इनोवेटिव इंडिया जैसे नारे तो देश को प्रेरित करते ही रहेंगे, लेकिन इसके समानांतर देश में जो कुछ हो रहा है, उसकी अनदेखी करना बहुत खतरनाक होगा। एक तरफ तो हम लगातार आधुनिकता, विज्ञान और वैश्वीकरण की बातें करते हैं। दूसरी ओर, हमारी जनसंख्या का एक बड़ा हिस्सा अब भी निरक्षरता और अंधविश्वास की गर्त में डूबा हुआ है। उससे भी बदतर यह कि जो लोग विवेकसंपन्न चिंतन की बात करते हैं और काला जादू, डायन प्रथा आदि की कलई खोलते हैं, उनका जीवन खतरे में पड़ जाता है। इनमें से कुछ लोगों को हमेशा के लिए चुप करा दिया जा रहा है।

चर्चित विद्वान और कन्नड यूनिवर्सिटी, हम्पी के पूर्व उपाचार्य एम एम कलबुर्गी का उदाहरण ताजा है। कलबुर्गी विवेकशील चिंतन को तरजीह देते थे, इस कारण दक्षिणपंथी समूहों से जब-तब उन्हें टकराना पड़ता था। विगत 30 अगस्त की सुबह कर्नाटक के धारवाड़ स्थित घर में उनको गोली मार दी गई।

इससे पहले मराठी लेखक और सामाजिक कुरीतियों के आलोचक नरेंद्र दाभोलकर की हत्या कर दी गई, जिन्होंने अपना पूरा जीवन चमत्कारों को खारिज करने और अंधविश्वासों को निर्मूल करने में बिताया। धर्मगुरुओं और तांत्रिकों का विरोध करने वाले अभियानों के जरिये दाभोलकर ने वस्तुतः अपने कई दुश्मन बना लिए थे।

विचारों से वामपंथी और सामाजिक कार्यकर्ता गोविंद पनसारे उस सामाजिक कुप्रथा के विरोधी थे, जिसमें लड़कों के जन्म को प्राथमिकता दी जाती है। वह अंतर्जातीय विवाहों को भी प्रोत्साहित करते थे। विगत फरवरी में हथियारबंद लोगों ने उन पर और उनकी पत्नी पर हमला किया। पनसारे मारे गए।

ये कुछ उदाहरण हैं, जो हाल के दौर में सुर्खियों में रहे हैं। जबकि वास्तविकता और भी चिंताजनक है। काला जादू और डायन प्रथा आज के भारत की सच्चाई हैं। काला जादू दिखाने वालों की आज अपनी वेबसाइट्स तक हैं, जिनमें वे अपनी इस 'कला' का प्रचार-प्रसार करते हैं! काला जादू और डायन प्रथा के तहत देश भर में औरतों और बच्चों की क्रूरतापूर्वक हत्या की जा रही है। राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो भी इसे स्वीकार करता है। पूरे देश में होने वाली हत्याओं के जो कारण वह गिनाता है, उनमें 'डायन प्रथा' और बच्चों/वयस्कों की बलि को भी वह इसकी वजह बताता है। पिछले साल झारखंड में डायन बताकर 47 औरतों की हत्या कर दी गई! पिछले वर्ष ओडिशा, छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश, गुजरात, नगालैंड, उत्तर प्रदेश, आंध्र प्रदेश, बिहार, महाराष्ट्र, राजस्थान, तेलंगाना, पश्चिम बंगाल और केरल में भी ऐसी हत्याएं हुईं।

इन आधिकारिक वेबसाइटों के विवरण विचलित करने वाले हैं। लेकिन इनके जरिये भी समस्या का सही रूप सामने नहीं आ पाता। देश के आदिवासी समुदायों में औरतों को डायन बताने की कुप्रथा है। पर देश के दूसरे हिस्सों और अन्य धार्मिक समूहों में भी यह कुप्रवृत्ति तेजी से फैलती जा रही है। कई अवसरों पर महिलाओं, खासकर विधवाओं की जमीन और उनकी संपत्ति हड़पने के लिए उन्हें डायन बता दिया जाता है। मुश्किल यह है कि देश में आज भी डायन प्रथा या काला जादू के खिलाफ राष्ट्रीय स्तर पर कोई कानून नहीं है। बिहार, झारखंड, छत्तीसगढ़ और महाराष्ट्र ने डायन प्रथा को रोकने के लिए कानून बनाए हैं। महाराष्ट्र ने दाभोलकर की हत्या के बाद काला जादू, डायन प्रथा और दूसरी सामाजिक कुरीतियों के खिलाफ� कानून बनाने की पहल की।

बेशक ये कदम सही दिशा में हैं। लेकिन ये कानून अविवेकी सोच और सामाजिक कुरीतियों पर लगाम लगाने में अभी सफल नहीं हुए हैं। छत्तीसगढ़ में अंधविश्वास और काला जादू को खत्म करने के लिए सक्रिय एक डॉक्टर दिनेश मिश्र कहते हैं कि सामाजिक कुरीतियों के खिलाफ कानून बनने के बावजूद खासकर दूरस्थ इलाकों में जागरूकता बहुत कम है। सामाजिक कुरीतियों का निशाना अधिकतर औरतें ही बनती हैं, खासकर वैसी औरतें, जो विधवा हों, निस्संतान हों या जिनकी संतानें उनके साथ न रहती हों।

वर्ष 2010 में देहरादून स्थित एक एनजीओ आरएलईके (रूरल लिटिगेशन ऐंड इनटाइटेलमेंट केंद्र) ने एक वर्कशॉप आयोजित की, जिसमें कानून के विद्वानों अलावा लगभग एक हजार ग्रामीण महिलाओं ने भाग लिया। इन औरतों ने अपने अनुभव बताए कि कैसे उन्हें डायन घोषित कर दिया गया, उसके बाद जबर्दस्ती नंगा करके उन्‍हें क्रूरतापूर्वक पीटा गया। इस एनजीओ ने सर्वोच्च न्यायालय में एक जनहित याचिका दायर की, ताकि शीर्ष अदालत का ध्यान इस ओर जाए। याचिकाकर्ताओं का दावा था कि पिछले करीब डेढ़ दशक में डायन बताकर देश भर में ढाई हजार से अधिक महिलाओं की हत्या की गई है! हालांकि शीर्ष अदालत ने इस याचिका को सुनवाई के लिए स्वीकार नहीं किया।

इस एनजीओ के चेयरपर्सन अवधेश कौशल कहते हैं कि डायन प्रथा और काला जादू के खिलाफ मौजूदा कानून में तीन महीने की कैद और एक हजार रुपये जुर्माने का प्रावधान है। लेकिन सामाजिक कुप्रथाओं पर अंकुश लगाने में ये प्रावधान काफी नहीं। मसलन, डायन बताकर अगर किसी की हत्या की जाती है, तो हत्या का मामला चलना चाहिए।

हालांकि अवधेश कौशल को धमकियां मिली हैं, इसके बावजूद उन्होंने अंधविश्वासों के खिलाफ लड़ाई नहीं छोड़ी है। वह इस संदर्भ में सुप्रीम कोर्ट में दोबारा एक जनहित याचिका दायर करने के बारे में सोच रहे हैं। वह कहते हैं कि अव्वल तो एक सभ्य देश में सामाजिक कुरीतियों के लिए कोई जगह ही नहीं होनी चाहिए। दुर्भाग्य से अगर ऐसी कुरीतियां अस्तित्व में हैं, तो उनके खिलाफ सख्त कानून होने चाहिए।