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सिंधु जल में अमेरिकी शिकार --- पुष्परंजन

मियार जल विद्युत परियोजना हिमाचल प्रदेश के लाहौल स्पीति जिले में है. 120 मेगावाॅट विद्युत पैदा करनेवाली इस परियोजना की पुनर्रचना करने के वास्ते भारत और पाकिस्तान सहमत हो गये हैं, ऐसी खबर रेडियो पाकिस्तान ने मंगलवार को दी.


मियार जल विद्युत परियोजना के लिए पानी चिनाब नदी से प्राप्त होना है. ‘लोअर कलनाई हाइड्रो इलेक्ट्रिक प्रोजेक्ट' के बारे में भी ऐसी ही खबर पाकिस्तान की सरकारी मीडिया ने दी कि इसे ‘रीडिजाइन' करने पर भारत सरकार सहमत है. इन दोनों खबरों का भारत सरकार ने खंडन किया है.


इस्लामाबाद में दो दिन की बैठक सिंधु जल संधि पर आहूत की गयी थी, और पाकिस्तान ने अपनी ओर से चिनाब नदी पर तथाकथित सहमति भी करा दी. चिनाब नदी घाटी की दूसरी जल विद्युत परियोजना है ‘पाकुल डल' और ‘लोअर कलनाई' तीसरी परियोजना है, जो दो दिन की बातचीत का केंद्रीय विषय था.


इस बातचीत में पाकिस्तान के इंडस वाटर कमिश्नर मिर्जा आसिफ बेग और उनके भारतीय समकक्ष पीके सक्सेना हिस्सा ले रहे थे. यह बैठक सितंबर 2016 में होनी थी, मगर उड़ी हमले के कारण यह बैठक स्थगित कर दी गयी थी. सितंबर 2016 में ही सुप्रीम कोर्ट में एक पीआइएल दाखिल की गयी थी, जिसमें सिंधु जल समझौते को रद्द किये जाने की अपील की गयी. तर्क यह दिया गया कि संधि पर भारत के तत्कालीन राष्ट्रपति का हस्ताक्षर होना चाहिए था, क्योंकि वही देश के आधिकारिक शासन प्रमुख थे. 19 सितंबर 1960 को सिंधु नदी जल समझौता हुआ था, जिस वास्ते प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू कराची गये थे. इस संधि पर पाकिस्तान के तत्कालीन राष्ट्रपति अयूब खान के भी हस्ताक्षर हैं.


तीन हजार 180 किलोमीटर लंबी सिंधु नदी एशिया की सबसे लंबी नदी है, जो तिब्बत के मानसरोवर से शुरू होकर जम्मू-कश्मीर, हिमाचल, पंजाब होते हुए गिलगिट-बाल्टिस्तान, खैबर पख्तुनख्वा, पाक के हिस्से वाले पंजाब, सिंध से गुजरते हुए अरब सागर में गिरती है. 1960 के समझौते के अनुसार, भारत को पूर्वी क्षेत्र की तीन नदियों रावी, ब्यास और सतलज पर पूर्ण नियंत्रण का अधिकार दिया गया, और पाकिस्तान को पश्चिमी क्षेत्र की सिंध, चिनाब और झेलम के पानी के इस्तेमाल का हक दिया गया.


इन छह में से चार नदियों का उद्गम भारत में है, जिनमें से तीन रावी, ब्यास, और चिनाब हिमाचल से और एक ‘झेलम नदी' जम्मू-कश्मीर से बहती है. सीमा पार होते ही पाकिस्तान में झेलम का नाम ‘नीलम नदी' हो जाता है. छह में से बाकी दो सिंघु और सतलज का उद्गम स्थल तिब्बत है.


समझ में नहीं आता कि जल स्रोत को लेकर पंडित नेहरू जैसे योजनाकार प्रधानमंत्री इतनी बड़ी गलती क्यों कर गये? नदियां भारत की सीमा होकर बहे और उनके जल के बड़े हिस्से पर हक पाकिस्तान का हो जाये, यह कैसी संधि है? पश्चिमी क्षेत्र की तीन नदियों से साल में 167.2 बिलियन क्यूबिक मीटर (बीसीएम) पानी का बहाव होता है, इतनी विशाल जल राशि का मालिक पाकिस्तान है. इसके उलट पूर्वी क्षेत्र की तीन नदियों सतलज, ब्यास और रावी से 40.4 ‘बीसीएम' जल आता है, जिस पर भारत का हक है.


हमारे योजनाकार दूर की सोचते तो कई सारे बांध, जल विद्युत परियोजनाएं इन छह नदियों के रास्ते बनायी जा सकती थी. इसे राज्यों का विषय समझकर पूरी उपेक्षा की गयी. बल्कि, पिछले 57 साल से हो यह रहा है कि पूर्वी क्षेत्र की तीन नदियों सतलज, ब्यास और रावी के 11.1 ‘बीसीएम' जल का इस्तेमाल पाकिस्तान कर रहा है. उल्टे, जब भी कोई बांध या जल विद्युत परियोजना भारत इन इलाकों में शुरू करता है, पाकिस्तान की चिकी-पिकी शुरू हो जाती है. पाकिस्तान को शुरू से ही शक है कि युद्ध की स्थिति में भारत सिंधु जल का रुख कहीं और मोड़ सकता है. इस तरह की अपील उड़ी हमले के बाद अपने यहां के राष्ट्रवादियों ने खूब की थी.


पाकिस्तान, वर्ल्ड बैंक तक को पंचायत के लिए न्योता दे रहा है. जम्मू-कश्मीर के बांदीपुर के पास किशनगंगा पावर प्रोजेक्ट के विरुद्ध पाकिस्तान हेग स्थित परमानेंट कोर्ट ऑफ आॅर्बिट्रेशन (पीसीए) में चला गया.


यह वही पंचाट है, जिसने जुलाई 2016 में साउथ चाइना सी पर फैसला सुनाया था, और चीन ने उसे मानने से इनकार कर दिया था. पाकिस्तान ‘नीलम-झेलम हाइड्रोपावर प्लांट' लगा रहा है, जिसके लिए फरवरी 2013 में हेग स्थित ‘पीसीए' ने आदेश दिया कि भारत झेलम से उतना जल जाने दे, जिससे पाकिस्तानी जल विद्युत परियोजना सुचारू रूप से चल सके. सवाल यह है कि भारत को क्यों नहीं चीन की राह पर चलना चाहिए?


पाकिस्तान, सिंधु जल संधि विवाद में पीठ पीछे अमेरिका की जिस तरह से मदद ले रहा है, उस पर भारत को आपत्ति करनी चाहिए थी. इस मामले में वर्ल्ड बैंक भी ‘मान न मान मैं तेरा मेहमान' बन बैठा है. पाकिस्तान के जल एवं ऊर्जा मंत्री ख्वाजा आसिफ अप्रैल में वाशिंगटन चल कर सिंधु जल विवाद का हल ढूंढना चाहते हैं. इस बैठक में भारत को बिल्कुल नहीं जाना चाहिए!