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सिटिजन चार्टर ही काफी नहीं

हाल ही में हरियाणा के गुड़गांव नगर निगम ने अपने यहा सिटिजन चार्टर लागू किया है। माना जा रहा है कि यह कार्य राज्य के मुख्यमत्री भूपेंद्र सिह हुड्डा के निर्देश पर किया गया है। इसके पहले हरियाणा में कुछ दूसरी जगहों पर भी इसे लागू किया जा चुका है। चर्चा यह है कि इसे पूरे हरियाणा में लागू किए जाने के प्रयास चल रहे हैं। इसके पूर्व दिल्ली राज्य और नगर निगम में भी सिटिजन चार्टर लागू किया जा चुका है। मध्य प्रदेश, पजाब सहित कई प्रदेशों में भी यह लागू हो चुका है। इसके तहत नागरिकों से सबधित अलग-अलग कायरें के लिए समय सीमा तय कर दी जाती है। मसलन आम नागरिक को यदि कोई लाइसेंस बनवाना है या किसी कार्य के लिए स्वीकृति लेनी है, तो सबधित सरकारी विभागों से एक निश्चित समय सीमा के भीतर कार्य हो जाना चाहिए। यदि नियत समय के भीतर कार्य न हुआ तो सबधित कर्मचारी इसके लिए जवाबदेह होंगे। अगर सिटिजन चार्टर को कायदे से लागू कर दिया जाए तो सरकारी दफ्तरों में आम जनता से जुड़े कायरें में होने वाली हीला-हवाली पर काफी हद तक रोक लग जाएगी। रिश्वतखोरी पर भी नियत्रण पाया जा सकेगा और इस तरह लोक प्रशासन में स्वच्छता और पारदर्शिता लाई जा सकेगी।

स्थिति यह है कि किसी भी सरकारी विभाग में कोई भी कार्य समय से नहीं होता है। इसकी वजह और कुछ नहीं, केवल सरकारी कर्मचारियों की कुछ अधिक पाने की मानसिकता है। इस 'कुछ अधिक' की कोई सीमा नहीं है। यह वाजिब काम के बदले धन से लेकर कोई गैर वाजिब काम तक हो सकता है। यह कहना सही नहीं होगा कि सभी कर्मचारी ऐसा ही करते हैं। ऐसे कर्मचारियों या अधिकारियों की भी कमी नहीं है जो अपने पास आए कार्य ठीक समय से और बिना किसी अतिरिक्त लाभ की अपेक्षा के पूरा करते हैं। यह जरूर है कि ऐसे लोगों की सख्या बहुत कम है और अक्सर उनकी आवाज दब जाती है। आमतौर पर माना जाता है कि अगर सरकारी विभागों में कोई कार्य करवाना है तो अतिरिक्त धन खर्च करना ही पड़ेगा। जिन लोगों की सरकारी विभागों से अक्सर जरूरत पड़ती है, वे इसके आदी हो चुके हैं और किसी भी कार्य के लिए अपने बजट में पहले से इसकी व्यवस्था बना कर चलते हैं। इसे आज के समय की व्यावहारिकता माना जाता है।

इसका यह मतलब बिलकुल नहीं समझा जाना चाहिए कि लोग अपनी खुशी से यह काम करते हैं। सच तो यह है कि कोई भी व्यक्ति अपने किसी वाजिब कार्य के लिए एक पैसा भी अतिरिक्त खर्च करना नहीं चाहता है। यहा तक कि इस महंगाई के जमाने में आम आदमी सब्जी, फल, दूध जैसी बेहद जरूरी चीजों की खरीदारी करते समय भी यह कोशिश करता है कि दो पैसे बच जाएं। इसके लिए वह क्वालिटी से समझौता भी कर लेता है। कई बार सस्ते के ही चक्कर में लोग ऐसी चीजें भी ले लेते हैं जो उनके स्वास्थ्य के लिए फायदेमद नहीं होती हैं, उलटे नुकसान पहुंचाती हैं। ऐसी स्थिति में जबकि आम आदमी पैसा बचाने के लिए अपने स्वास्थ्य और अन्य जरूरी आवश्यकताओं से भी समझौता करने के लिए मजबूर हो, भला कौन अपने वाजिब कार्य के लिए बेवजह धन खर्च करना चाहेगा? फिर भी लोग खर्च करते हैं तो जाहिर है कि वे ऐसा खुशी से तो नहीं ही करते हैं। यह आम जनता की मजबूरी हो गई है और वह इससे जल्द से जल्द निजात पाना चाहती है। ऐसा भी नहीं है कि इससे निजात दिलाने की कोशिशें नहीं हुई हैं। विजिलेंस विभाग सरकारी विभागों में व्याप्त भ्रष्टाचार की जाच-पड़ताल ही करता है और आए दिन ऐसे मामलों को लेकर सरकारी कर्मचारियों की धर-पकड़ व निलबन जैसी कार्रवाइया होती रहती हैं। इसके बावजूद कोई बड़ा बदलाव इस मामले में नहीं हो पा रहा है। आखिर क्यों?

सामान्य तौर पर यह देखा जाता है कि सरकारी कर्मचारी किसी काम के लिए रिश्वत की माग सीधे तौर पर नहीं करते हैं। वे हमेशा किसी न किसी बहाने काम को लटकाते हैं। कभी फॉर्म में किसी गलती के बहाने टाल देते हैं तो कभी कोई दस्तावेज न होने या निर्धारित फॉर्मेट में न होने के बहाने टाल देते हैं। कभी वे खुद सीट पर नहीं मिलते हैं और कभी उनके उच्चाधिकारी कहीं दौरे पर होते हैं। कई बार तो वे केवल इसीलिए काम करने से मना कर देते हैं कि खुद उनके ही द्वारा अपने लिए निर्धारित कार्य सूची के अनुसार उनके लिए वह दिन उस कार्य का नहीं होता है। इस तरह छोटा सा काम भी कई महीनों और कभी-कभी तो सालों तक के लिए लटक जाता है। जो काम दो-चार दिन में हो जाना चाहिए उसे बिना कोई धन खर्च किए कराने में दो-चार साल लग जाते हैं और अक्सर आदमी या तो थक-हार कर बैठ जाता है या फिर हताश होकर खुद उनसे पूछने लगता है कि बताइए साहब आपकी क्या सेवा करें। भ्रष्टाचार इसी तरह आदमी की मजबूरी बनता है और ऐसे ही बढ़ता है। सिटिजन चार्टर लागू हो जाने के बाद यह उम्मीद की जा सकती है कि लोगों को इस मामले में राहत मिलेगी, लेकिन व्यवस्था इतने से ही सुधर जाएगी और लोगों को वाकई राहत मिलने लगेगी, यह सोचना बेमानी है। इसकी वजह यह है कि सिटिजन चार्टर आ जाने के बाद भी काम को लटकाने के लिए सरकारी कर्मचारियों के पास बहानों की कमी नहीं पड़ेगी। अभी भी यह देखा जाता है कि सरकारी कर्मचारी एक बार में ही सारी खानापूर्ति नहीं बताते हैं। अक्सर ऐसा होता है कि जब कोई व्यक्ति एक कमी पूरी करके जाता है तो वे दूसरी बता देते हैं, दूसरी के बाद तीसरी और फिर चौथी। इस तरह कई दौर में वे कमिया बताते रहते हैं और आदमी बार-बार एक ही बात के लिए दौड़ लगाता रहता है। यहा तक कि अगर सारी खानापूर्ति हो जाए तो फाइल ही गायब हो जाती है और सबधित कर्मचारी को इसके लिए जिम्मेदार ठहराने जैसी कोई व्यवस्था भी नहीं है। इस समस्या का कोई न कोई निदान निकालना ही पड़ेगा और उसे ठीक समय से प्रभावी भी करना पड़ेगा।

इसमें कोई दो राय नहीं है कि सिटिजन चार्टर इस दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम हो सकता है, लेकिन बात केवल इतने से ही नहीं बनेगी। अभी सिटिजन चार्टर में अधिकतर जगहों पर व्यवस्था केवल इतनी ही दी गई है कि कितने दिनों में कौन सा काम हो जाना चाहिए और अगर उतने दिनों में कार्य न हुआ तो दंड का प्रावधान भी बनाया गया है। हालाकि दंड का यह प्रावधान कितना लागू हो पाएगा, यह आने वाला समय ही बताएगा। इसकी वजह यह है कि सरकारी कर्मचारी पहले की ही तरह काम न हो पाने के लिए बार-बार लोगों को ही जिम्मेदार ठहराते रहेंगे और सारी खानापूर्ति हो जाने के बाद फाइलें गायब करते रहेंगे। इस तरह लोग परेशान होते रहेंगे। इस प्रवृत्ति पर लगाम लगे, इसके लिए सभी प्रकार की आपत्तिया एक बार में ही लगाए जाने तथा समस्त खानापूर्ति करके दिए जाने के बाद ही पावती देने की व्यवस्था अनिवार्य रूप से लागू की जाए। अगर कोई कर्मचारी इसमें आनाकानी करता है तो उसके विरुद्ध कड़ी कार्रवाई का प्रावधान भी किया जाए। अगर ऐसा किया जा सके तो निश्चित रूप से समस्या के समाधान की दिशा में हम आगे बढ़ सकेंगे।