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सीएम के जिले में एक और प्रसूता की मौत,अब तक 15 ने दम तोड़ा

प्रदेश के विभिन्न अंचलों से. जोधपुर के महात्मा गांधी अस्पताल में रविवार को प्रसव के बाद एक और प्रसूता की मौत हो गई। अब तक यहां 15 प्रसूताएं दम तोड़ चुकी हैं। हैरानी यह है कि इतनी मौतों के बाद भी अभी तक राज्य सरकार इस दिशा में कोई पुख्ता कदम नहीं उठा पाई है।

यह स्थिति तब है, जब मुख्यमंत्री खुद जोधपुर इलाके से हैं और जांच के लिए दिल्ली से जोधपुर पहुंची टीम ने अस्पताल की व्यवस्थाओं को कटघरे में खड़ा कर दिया था। उम्मेद अस्पताल ही नहीं, प्रदेशभर के अधिकांश अस्पतालों में कमोबेश यही स्थिति है। स्त्री रोग विशेषज्ञों सहित डॉक्टरों के पद खाली पड़े हैं। हालात यह हैं कि ज्यादातर स्थानों पर नर्सिग स्टॉफ ही डिलीवरी में लगा है।

ग्लूकोज-इंजेक्शन की उपयोग से पहले जांच की कोई व्यवस्था नहीं है। ऑपरेशन थियेटर को संRमण मुक्त रखने के लिए नियमों की पूरी तरह पालना नहीं की जाती है तो लेबर रूम में भी साफ-सफाई के माकूल इंतजाम नहीं हैं। इस बीच आए दिन होने वाली हड़तालों से परेशानी और बढ़ जाती है। उम्मेद अस्पताल में रोजाना 60 से 70 प्रसव होते हैं।


रविवार को महात्मागांधी हॉस्पिटल में चांदना भाकर निवासी बेलू ने दम तोड़ा। बेलू २क् फरवरी को उम्मेद अस्पताल में भर्ती हुई थी। प्रसव के बाद ज्यादा रक्तस्त्राव होने पर उसे महात्मागांधी अस्पताल में रैफर किया गया था।

कहीं बैड नहीं तो कहीं डॉक्टर

सीकर: एसके अस्पताल में प्रसूताओं के लिए अलग से मातृ एवं शिशु कल्याण केंद्र तो बनाया है, लेकिन यहां बैड की संख्या सीमित होने के कारण प्रसूताओ को बाहर बरामदे में बेड पर लिटाया जाता है। संक्रमण रोकने के नाम पर केवल फिनाइल का पोछा लगाया जाता है।

पाली : जिला मुख्यालय पर स्थित बांगड़ अस्पताल में चिकित्साधिकारियों के 29 मेंसे 19 पद खाली हैं। कुछ दिन पहले ऑक्सीटोसीन के इंजेक्शन में फंगस मिला। प्रसूताओं को दिए जा रहे ग्लूकोज व इंजेक्शन आदि की जांच नहीं। अस्पताल के पीएमओ आर.के. पामेचा ने बताया कि जोधपुर में हो रही मौतों के बाद सतर्कता बरती जा रही है।

भीलवाड़ा : महात्मा गांधी अस्पताल में रोजाना होने वाली 20 डिलीवरी की जिम्मेदारी नर्सिग स्टाफ पर ही। एकमात्र गायनिकॉलोजिस्ट सभी डिलेवरी केस नहीं देख पाती है, ऐसे में नर्सिग स्टाफ से डिलीवरी करवाने के अलावा कोई विकल्प प्रशासन के पास नहीं है। शेष x पेज ४

बीकानेर :

संभाग मुख्यालय के अस्पताल में दो साल से स्त्री रोग विशेषज्ञ ही नहीं। यहां औसतन हर दिन तीन प्रसव हो रहे हैं मगर डॉक्टर के अभाव में सिजेरियन डिलीवरी नहीं हो पा रही है। महिला फिजिशियन या नर्सेज ही डिलीवरी करवा रही हैं। पीएमओ डॉ. एल.डी. यादव बताते हैं कि गायनोकोलॉजिस्ट के लिए सरकार को बार-बार लिखा जा चुका है, लेकिन कुछ नहीं हो पाया। पीबीएम अस्पताल के लेबररूम में होने वाली डिलीवरी की संख्या इतनी ज्यादा है कि हर डिलीवरी के बाद टेबल को संक्रमणमुक्त करने के नॉर्म्स का पालन नहीं हो पाता।

बाड़मेर : जिले के सबसे बड़े राजकीय हॉस्पिटल और नाहटा हॉस्पिटल बालोतरा में ग्लूकोज-इंजेक्शन के उपयोग से पहले जांच नहीं होती। इसके लिए लेबोरेट्री के इंतजाम नहीं।

जयपुर : चांदपोल स्थित जनाना हॉस्पिटल में रोजाना 30-35 प्रसव होते हैं जबकि सांगानेरी गेट स्थित महिला चिकित्सालय में 20 से 25 डिलीवरी होती हैं। इन दोनों में करीब 15 असिस्टेंट प्रोफेसरों की कमी चल रही है। यहां अन्य अस्पतालों की अपेक्षा सुविधाएं ठीक-ठाक हैं।

इस खामोशी के क्या हैं मायने?

उदयपुर के सर्किट हाउस में ठहरे स्वास्थ्य मंत्री दुरु मियां से जब प्रसूताओं की मौत के मामले में बात की गई तो उनका जवाब था ‘मैं शादी में आया हूं, कुछ तो प्राइवेसी रहने दो, कल बात करेंगे।’ दूसरी ओर राज्य के प्रमुख सचिव (स्वास्थ्य) बद्री नारायण शर्मा ने खुद को मीटिंग में व्यस्त बताकर फोन काट दिया।


यह थी जांच रिपोर्ट


प्रसूताओं की मौत के लिए वरिष्ठ डॉक्टरों की अनुपस्थिति और उम्मेद अस्पताल की लचर हालत जिम्मेदारअस्पताल में वरिष्ठ डॉक्टर पूरी तरह से नदारद थे। मरीजों को उपचार के लिए पूरी तरह से जूनियर डॉक्टरों के सहारे छोड़ दिया गया था।

जूनियर डॉक्टरों ने गर्भवती महिलाओं का उपचार किया, उन्हें उपचार के सही प्रोटोकॉल के बारे में भी जानकारी नहीं थी।